August 13, 2025 8:24 pm
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Environment पर वोट नहीं मिलते इसलिए नेताओं को कोई फ़र्क नहीं पड़ता

धराली हादसे पर अतुल सती का बेबाक इंटरव्यू – जलवायु परिवर्तन, बड़े निर्माण और पर्यटन से हिमालय के बढ़ते संकट की गहरी पड़ताल।

धराली हादसा: हिमालय पर विकास मॉडल का प्रहार – अतुल सती से बेबाक बातचीत

बेबाक भाषा ने हाल ही में उत्तराखंड के जाने-माने जलवायु कार्यकर्ता अतुल सती से बातचीत की। विषय था – धराली में हाल का हादसा, और उससे जुड़ी वह व्यापक बहस, जिसमें जलवायु परिवर्तन, बड़े निर्माण कार्य और असंयमित पर्यटन विकास की नीतियों का गहरा असर शामिल है। यह चर्चा केवल एक हादसे की कहानी नहीं, बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र के भविष्य का सवाल है।

प्रकृति में बदलाव – दोहरी मार

बेबाक भाषा: अतुल जी, धराली हादसे के पीछे आपको कौन से मुख्य कारण नज़र आते हैं?
अतुल सती: इसमें दो तरह के बदलाव हैं।

  1. प्राकृतिक बदलाव – जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम की चरम घटनाएं (अतिवृष्टि, बादल फटना) बढ़ रही हैं।
  2. मानव-जनित बदलाव – बड़े पैमाने पर सड़क चौड़ीकरण, पेड़ों की कटाई, ब्लास्टिंग, जलविद्युत परियोजनाएं, रेलवे सुरंगें, और होटलों व रिसॉर्ट्स का अनियंत्रित निर्माण।

ये दोनों कारक मिलकर एक खतरनाक “विनाशकारी कॉकटेल” तैयार कर रहे हैं।

पर्यटन का दबाव और सरकार की प्राथमिकताएं

अतुल सती बताते हैं कि चौड़ी सड़कों और नए बुनियादी ढांचे ने तीर्थाटन और पर्यटन को कई गुना बढ़ा दिया है। सरकारें इसे अपनी “उपलब्धि” मानती हैं – कितने लाख या करोड़ लोग आए, यह उनके लिए विकास का पैमाना है।
लेकिन, अधिक भीड़ का सीधा असर स्थानीय पारिस्थितिकी पर पड़ता है, जिससे खतरा और बढ़ जाता है।

ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट और चेतावनी सिस्टम का अभाव

धराली, हरसिल और अन्य क्षेत्रों में हादसों के पीछे ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट भी संभावित कारण है।
अतुल सती का आरोप है कि अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित नहीं किया गया, जबकि 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद बनी हाई पावर कमेटी ने इसकी सिफारिश की थी।

2013 से 2025 – क्या सबक मिला?

2013 की आपदा को अतुल सती “सदी की आपदा” मानते हैं।
उसके बाद आई कमेटी रिपोर्ट ने कहा था –

  • नदी से 200 मीटर दायरे में निर्माण रोका जाए
  • बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक लगे
  • कैरिंग कैपेसिटी तय की जाए
    लेकिन, सरकार खुद नियम तोड़कर आर्मी कैंप, हेलीपैड और अन्य निर्माण नदी के किनारे कर रही है।

न्यायपालिका के विरोधाभासी रुख

अतुल सती का कहना है कि एक तरफ सुप्रीम कोर्ट हिमाचल के मामले में कहता है कि “बड़ी परियोजनाएं हिमालय के लिए खतरा हैं”, लेकिन चारधाम हाईवे जैसे मामलों में वही कोर्ट राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर परियोजनाओं को हरी झंडी देता है।
यह दोहरा रवैया पर्यावरणीय न्याय को कमजोर करता है।

जोशीमठ – वादों और हकीकत के बीच

जोशीमठ धंसाव के बाद केंद्र ने 1,240 करोड़ रुपये देने की घोषणा की, लेकिन दो साल बाद भी अधिकांश राशि खर्च नहीं हुई।
लोग आज भी टूटे मकानों में रह रहे हैं, जबकि वैज्ञानिक रिपोर्ट्स साफ़ कहती हैं कि तत्काल स्थिरीकरण के कदम उठाने चाहिए।

मुआवज़ा बनाम समाधान

सरकार के लिए मुआवज़ा देना आसान है, लेकिन असली चुनौती है विनाशकारी विकास मॉडल को रोकना।
अतुल सती का कहना है – “जब इतनी बड़ी आपदा के बाद भी केवल मुआवज़ा देकर मामला खत्म कर दिया जाता है, तो बाकी जगहों पर, जहां मीडिया या आंदोलन नहीं है, वहां क्या उम्मीद की जा सकती है?”

निष्कर्ष

धराली हादसा केवल एक भौगोलिक घटना नहीं, बल्कि हिमालय के सामने खड़े उस संकट की निशानी है, जिसे हमने अपनी विकास नीतियों से और गहरा किया है।
अतुल सती की चेतावनी साफ है –

अगर हमने हिमालय की पारिस्थितिकी के खिलाफ यह “विकास युद्ध” नहीं रोका, तो आने वाली पीढ़ियां केवल हादसों और विस्थापन की कहानियां ही विरासत में पाएंगी।

उपेंद्र स्वामी

पैदाइश और पढ़ाई-लिखाई उदयपुर (राजस्थान) से। दिल्ली में पत्रकारिता में 1991 से सक्रिय। दैनिक जागरण, कारोबार, व अमर उजाला जैसे अखबारों में लंबे समय तक वरिष्ठ समाचार संपादक के रूप

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