ट्रंप के टैरिफ़ डंडे और ब्रिटेन से CETA समझौते के ख़िलाफ़ मज़दूर-किसानों का मोर्चा
9 जुलाई की ऐतिहासिक देशव्यापी हड़ताल के बाद, जिसमें चार श्रम संहिताओं, खेती-किसानी और कर्मचारियों के भविष्य से जुड़े मुद्दों पर व्यापक विरोध दर्ज हुआ, अब एक बार फिर मज़दूर और किसान संगठनों ने संयुक्त संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है।
10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और संयुक्त किसान मोर्चा ने मिलकर 13 अगस्त को “कॉरपोरेट भारत छोड़ो दिवस” मनाने का ऐलान किया है। यह दिन, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की तर्ज पर, भारत की संप्रभुता और आर्थिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए व्यापक प्रतिरोध का प्रतीक होगा।
आंदोलन की मुख्य मांगें
- ट्रंप का टैरिफ डंडा नहीं चलेगा – अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% निर्यात शुल्क और 25% पेनल्टी लगाई है, यानी कुल 50% तक का टैरिफ।
- अमेरिकी दबाव का विरोध – यह टैरिफ इसलिए लगाया गया क्योंकि भारत रूस से तेल खरीदता है और अपने कृषि व डेयरी बाजार को अमेरिका के लिए नहीं खोल रहा।
- ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौते की समीक्षा – UK के साथ किया गया आर्थिक व्यापार समझौता (CETA) किसानों और मजदूरों के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए इसकी तत्काल समीक्षा की मांग।
- स्वतंत्र व्यापार का अधिकार – भारत को सभी देशों, विशेषकर रूस, के साथ स्वतंत्र रूप से व्यापार करने का अधिकार सुनिश्चित करना चाहिए।
- पारदर्शिता और संसदीय निगरानी – भविष्य के सभी व्यापारिक समझौते संसद की निगरानी में हों, न कि गुप्त प्रक्रियाओं के तहत।
विरोध के तरीके
आयोजक संगठनों ने घोषणा की है कि 13 अगस्त को देशभर में विभिन्न तरह के प्रतिरोध कार्यक्रम होंगे, जिनमें शामिल हैं:
- ट्रैक्टर और मोटरसाइकिल रैलियां
- सार्वजनिक सभाएं
- प्रदर्शन और धरने
सभी वर्गों की भागीदारी का आह्वान
संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने छात्रों, मजदूरों, किसानों और आम नागरिकों से इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की अपील की है। यह सिर्फ मजदूर-किसान का संघर्ष नहीं, बल्कि देश की संप्रभुता और आर्थिक स्वतंत्रता का सवाल है।