August 9, 2025 2:15 am
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धर्मस्थला विवाद: आस्था की ज़मीन पर लाशों का सच!

कर्नाटक के धर्मस्थला मंदिर पर चौंकाने वाला आरोप — 20 साल में सैकड़ों लाशें दफन। SIT जांच जारी, राजनीति और समाज में हलचल।

कर्नाटक के धर्मस्थळा में दफ़्न हैं कितने राज़, कितनी लाशें, कितनी चीखें!

“आप किसी मंदिर, धर्मस्थल या तीर्थस्थल पर क्यों जाते हैं? आस्था के लिए, विश्वास के लिए, शांति के लिए, या उस भरोसे के लिए कि प्रभु के सामने हाथ जोड़ने से मन हल्का हो जाएगा? लेकिन सोचिए, अगर उसी धर्मस्थल की जमीन से लाशें निकलने लगें तो?”

विवाद की शुरुआत: चौंकाने वाला आरोप

कर्नाटक के मशहूर धर्मस्थला तीर्थ क्षेत्र — जहाँ मंजुनाथ स्वामी की पूजा होती है, जैन परिवार प्रबंधन करता है, और जहां सभी धर्मों के श्रद्धालु आते हैं — पर एक पूर्व सफाईकर्मी का सनसनीखेज दावा।

उसका आरोप है कि 1995 से 2014 तक उसे सैकड़ों लाशें दफनाने के लिए मजबूर किया गया। इनमें महिलाएं, नाबालिग लड़कियां शामिल थीं। कई पर बलात्कार और गला घोंटकर हत्या के संदेह हैं।

SIT जांच और शुरुआती सबूत

जनता और महिला संगठनों के दबाव के बाद, कर्नाटक सरकार ने जुलाई में विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया।
जांच में अब तक:

  • कुछ स्थानों की खुदाई
  • हड्डियों और कंकालों के अवशेष बरामद
  • संभावित यौन हिंसा और हत्या के संकेत
  • संस्थागत संलिप्तता की जांच

मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने SIT को पूर्ण स्वायत्तता और तकनीकी सहयोग देने की घोषणा की।

धर्मस्थला प्रबंधन का पक्ष

धर्मस्थला के धर्माधिकारी डॉ. वीरेंद्र हेगड़े, जो 1968 से इस पद पर हैं और पद्मभूषण प्राप्त कर चुके हैं, का कहना है:
“कोई गलत काम नहीं हुआ। जांच में पूरा सहयोग देंगे।”

लेकिन इसी बीच उनके भाई हर्षेंद्र कुमार ने कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के खिलाफ मानहानि का केस दायर कर मीडिया कवरेज पर अस्थायी रोक लगवा दी।

मीडिया बैन और कोर्ट ड्रामा

  • बेंगलुरु की सिविल अदालत के एक जज ने 8,842 खबरों, वीडियो और लिंक पर बैन का आदेश दिया।
  • कई मीडिया संस्थान (NewsLaundry, The Wire आदि) ने इसे अनुच्छेद 19(1)(a) यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी।
  • बाद में मामला दूसरे जज को सौंपा गया और बैन हटा।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

  • बीजेपी: SIT जांच का समर्थन, लेकिन चेतावनी कि “हिंदू धार्मिक स्थलों को बदनाम करने की साजिश” न बने।
  • कांग्रेस (सत्ता पक्ष): आरोपों की गंभीरता को देखते हुए जांच जरूरी।
  • CPI: NIA से जांच कराने की मांग, इसे संभावित संगठित अपराध बताया।
  • महिला संगठन: अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (AIDWA) ने इसे स्त्री विरोधी हिंसा और संस्थागत चुप्पी का उदाहरण बताया।

बड़ा सवाल

यह मामला सिर्फ गुमशुदा लोगों या संभावित हत्याओं का नहीं है।
यह सवाल है:

  • धार्मिक संस्थानों की जवाबदेही का
  • आस्था के नाम पर शोषण और हिंसा का
  • सत्ता की पारदर्शिता का
  • और महिलाओं की गरिमा का

धर्मस्थला आज भी हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, लेकिन अब वहाँ जवाबदेही की मांग भी गूंज रही है।

मुकुल सरल

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