August 8, 2025 11:30 pm
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वे डरते हैं किताबों से: जम्मू-कश्मीर में 25 किताबों पर प्रतिबंध क्यों?

जम्मू-कश्मीर में अरुंधति रॉय, ए.जी. नूरानी समेत 25 लेखकों की किताबों पर प्रतिबंध। जानिए सरकार ने क्यों लगाया बैन और क्या है असली वजह।

पाबंद किताबों में अरुंधति राय की ‘आज़ादी’ और ए.जी. नूरानी की The Kashmir Dispute भी

“वे डरते हैं! वे किताबों से डरते हैं। उन्हें डर है कि लोग पढ़ लेंगे और पहचान लेंगे उनके असली चेहरे।”
गोरख पांडे की कविता, आज के दौर में और अधिक प्रासंगिक हो उठती है।

सरकार को किताबों से डर क्यों?

5 अगस्त 2025 को, जब पूरा देश जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने की छठी बरसी पर सरकार की उपलब्धियों का ढोल पीट रहा था, उसी दिन गृह मंत्रालय के अधीन जम्मू-कश्मीर गृह विभाग ने एक चुपचाप लेकिन खौफनाक आदेश जारी किया — 25 किताबों पर प्रतिबंध और ज़ब्ती के आदेश

इन किताबों को अब पढ़ना, बेचना या अपने पास रखना ग़ैरक़ानूनी माना जाएगा।

प्रतिबंधित किताबें: किन लेखकों की रचनाएँ निशाने पर?

प्रतिबंधित किताबों में शामिल हैं:

  • अरुंधति रॉय की Azadi
  • ए.जी. नूरानी की The Kashmir Dispute 1947–2012
  • सुमित्रा बोस की Kashmir at the Crossroads
  • अनुराधा भसीन की The Untold Story of Kashmir After Article 370
  • ऐसर बतूल की Do You Remember Kunan Poshpora?
  • क्रिस्टोफ़र स्नेडन की Independent Kashmir
  • मौलाना अबुल आला मौदूदी की Al Jihad fil Islam
  • हसन अल बन्ना की Mujahid ki Azaan
  • सीमा काज़ी, देवदास बालराम, राधिका गुप्ता जैसे लेखकों की किताबें

ये सभी किताबें या तो कश्मीर के सच को बयान करती हैं, या सत्ता की व्याख्या को चुनौती देती हैं।

सरकार का तर्क क्या है?

गृह विभाग का कहना है कि इन किताबों में विभाजनकारी विचार और झूठे नैरेटिव्स हैं, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालते हैं।

लेकिन यही तर्क अंग्रेजी हुकूमत का भी था, जब वह भारत में आज़ादी की आवाज़ों को दबाने के लिए किताबें जब्त करती थी।

क्या किताबें सच में खतरा हैं?

इतिहास गवाह है कि किताबों पर प्रतिबंध लगाने से वे और अधिक पढ़ी जाती हैं
जो नहीं जानते थे, वे जानना चाहते हैं — कि आख़िर ऐसा क्या है इन पन्नों में जिसे सरकार छिपाना चाहती है।

जैसे आज़ादी के दौर में “जब्तशुदा नज़्में” किताब को रोका गया था क्योंकि वह क्रांतिकारी कवियों की आवाज़ थी, वैसे ही आज इन किताबों को रोकना दरअसल विचारों को बंदी बनाने की कोशिश है।

5 अगस्त की टाइमिंग: इत्तेफ़ाक नहीं इशारा है

यह आदेश उसी दिन आया जब 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीना गया था। यह महज़ तारीख नहीं है — यह मोदी सरकार की याद दिलाने की रणनीति है:

“याद रखो, हम तुम्हारे इतिहास, पहचान, और विचारों को मिटा सकते हैं।”

निष्कर्ष: किताबें कभी चुप नहीं होतीं

सरकारें आती हैं और जाती हैं, लेकिन किताबें रह जाती हैं।
वे हमेशा बोलती हैं — ज़्यादातर तब, जब उन्हें चुप कराने की कोशिश होती है।

आज किताबों पर प्रतिबंध नहीं लगा है, यह दरअसल सोचने, जानने और असहमति जताने के अधिकार पर हमला है।

मुकुल सरल

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