हाथी के लिए आंदोलन: कोल्हापुर ने महादेवी को वनतारा भेजे जाने पर किया जियो का बहिष्कार
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में इन दिनों एक हथिनी को लेकर जबरदस्त जनभावनाएं उमड़ी हुई हैं। यह हथिनी कोई साधारण जानवर नहीं, बल्कि शहरवासियों की ‘महादेवी’ है — जिसे लोग ‘माधुरी’ नाम से भी जानते हैं। लेकिन अब यही महादेवी कोल्हापुर छोड़ चुकी है। उसे सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर गुजरात के जामनगर स्थित अंबानी परिवार के वनतारा (Vantara) केंद्र में भेज दिया गया है — और इसी के खिलाफ शहर उबल पड़ा है।
30 साल की साथी को कोल्हापुर ने ऐसे विदा किया जैसे कोई अपना गया हो
36 साल की महादेवी पिछले तीन दशकों से कोल्हापुर के नंदिनी कस्बे में एक जैन विहार में रह रही थी। छोटी सी उम्र में, महज 6 साल की थी जब उसे कर्नाटक से कोल्हापुर लाया गया था। स्थानीय लोग, खासतौर पर जैन समुदाय, उसे घर के सदस्य की तरह मानते थे।
विहार में एक हाथी शिविर (elephant camp) भी है, जहां महादेवी की देखभाल की जाती थी। लेकिन 16 जुलाई को बॉम्बे हाई कोर्ट ने PETA की याचिका पर आदेश दिया कि उसकी सेहत खराब है, और उसे बेहतर देखभाल के लिए वनतारा भेजा जाए। 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आदेश को बरकरार रखा।
28 जुलाई को आंखों में आंसू लेकर कोल्हापुर ने महादेवी को विदा किया। लेकिन उसके बाद जो हुआ, वह पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गया।
जियो के सिम हटाए, अनंत अंबानी के वनतारा का विरोध शुरू
महादेवी को वनतारा भेजने के फैसले के खिलाफ शहर भर में गुस्सा फूट पड़ा। जामनगर का वनतारा, जो मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी की देखरेख में चलता है, उसका नाम आते ही लोगों ने जियो के सिम कार्ड हटाने शुरू कर दिए। सैकड़ों नहीं, हजारों लोगों ने अपने नंबर पोर्ट कर लिए।
इस विरोध ने जब और ज़ोर पकड़ा, तो 2 लाख से अधिक लोगों ने एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके राष्ट्रपति को भेजा।
45 किलोमीटर का पैदल मार्च, सरकार तक पहुंचा जनाक्रोश
रविवार को हजारों लोगों ने नंदिनी से कोल्हापुर के जिलाधिकारी कार्यालय तक 45 किलोमीटर लंबा शांतिपूर्ण मार्च निकाला। हाथों में महादेवी की तस्वीरें, नारों से भरे पोस्टर और दिल में एक ही मांग — महादेवी को वापस लाओ।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को इस जन आंदोलन की खबर लेनी पड़ी और उन्होंने मंगलवार को इस विषय पर बैठक बुलाने की बात कही।
पेटा और वनतारा के दावे, जनता के सवाल
PETA ने अदालत में कहा कि महादेवी की हालत खराब है, उसे दांत और पैर की समस्या है, और उसकी देखभाल ठीक से नहीं हो रही। वहीं वनतारा ने दावा किया कि महादेवी का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा था — जुलूसों, मुहर्रम और यहां तक कि भीख मांगने में।
वनतारा के अनुसार, 2012 से 2023 के बीच महादेवी को 13 बार बिना वन विभाग की अनुमति के महाराष्ट्र से तेलंगाना ले जाया गया।
वनतारा के पास इन गतिविधियों के फोटो और वीडियो होने का दावा किया गया। लेकिन जनता पूछ रही है — ये सब सुबूत वनतारा के पास कैसे पहुंचे? क्या पहले से ही किसी योजना के तहत यह सब किया गया?
हाथी की सेहत या कॉर्पोरेट कब्जा?
सबसे बड़ा सवाल — अगर वाकई महादेवी की सेहत ठीक नहीं थी, तो उसे सिर्फ वनतारा ही क्यों भेजा गया? देश में हाथियों की देखभाल के कई सरकारी और गैरसरकारी संस्थान हैं। फिर वनतारा ही क्यों?
लोग इस पूरे प्रकरण को कॉर्पोरेट और न्यायिक गठजोड़ का हिस्सा मान रहे हैं।
कोल्हापुर का प्यार: एक हथिनी के लिए जन आंदोलन
महादेवी के लिए कोल्हापुर का प्रेम एक नई मिसाल है। यह न सिर्फ एक जानवर के लिए उठे जनभावनाओं की कहानी है, बल्कि इस देश में पूंजी और अदालत के गठजोड़ पर जनता की चुप्पी तोड़ने वाला आंदोलन भी है।
महादेवी अकेली नहीं, वह अब कोल्हापुर की चेतना बन चुकी है।