चुनाव आयोग पर फिर उठे सवाल – मरे हुए वोट देंगे, ज़िंदा लोग रह जाएंगे बाहर?
चुनाव आयोग – यानी वो संस्था जिस पर लोकतंत्र की बुनियाद टिकी होती है। लेकिन आजकल इस संस्था की करतूतें देखकर एक ही लाइन याद आती है:
“अजब तेरी लीला, गजब तेरा खेल, छछुंदर के सर पे चमेली का तेल।”
बिहार से लेकर बंगाल और मणिपुर तक, Special Intensive Revision (SIR) के नाम पर एक ऐसा रायता फैलाया गया है, जिसे समेटना अब मुश्किल ही नहीं, बल्कि खतरनाक साबित हो सकता है।
बिहार में रायता: मृतकों के नाम, जीवितों के गायब
- सैकड़ों शिकायतें रोजाना: वोटर लिस्ट में मृतक नागरिकों के नाम, जीवित लोगों को ‘मृत’ घोषित करना, और एक ही व्यक्ति का नाम तीन-तीन जगह शामिल कर देना — ये अब आम बात हो गई है।
- IAS अफसर तक चौंके: रिटायर्ड मुख्य सचिव जैसे अफसर तक जिनका नाम लिस्ट से गायब है, वो अब सार्वजनिक रूप से चुनाव आयोग की साख पर सवाल उठा रहे हैं।
- मुसहर और महादलित समुदाय निशाने पर: मिथिलांचल जैसे इलाकों में मुसहर, रिशीदेव और अन्य अति-पिछड़े समुदायों के नाम सामूहिक रूप से हटा दिए गए हैं।
ध्यान रहे, ये वही तबका है जो रोज़मर्रा की मजदूरी में जुटा होता है, और इसी कारण वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के समय अपने घरों में नहीं मिलते।
अब बारी पश्चिम बंगाल की: ‘SIR’ का नया रंग
बिहार में झमेला अभी थमा नहीं था कि चुनाव आयोग ने अब पश्चिम बंगाल और मणिपुर (जहाँ राष्ट्रपति शासन है) में भी SIR की प्रक्रिया शुरू कर दी।
- विरोध तेज: संसद से लेकर सड़कों तक इंडिया गठबंधन रोजाना विरोध दर्ज करा रहा है।
- नई संसद बन गई जंतर मंतर: संसद के द्वार पर रोज प्रदर्शन — एक ही नारा: “वोट चोर गद्दी छोड़”।
बड़ी बात: वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट हमारे पास है
चौंकाने वाला तथ्य यह है कि ड्राफ्ट लिस्ट से साफ पता चलता है कि लाखों लोगों के नाम काटे गए हैं।
- 66 लाख से ज्यादा नामों पर संकट: जो “permanently shift” हो गए हैं या जिनसे चुनाव आयोग को कोई जवाब नहीं मिला, उन्हें बाहर किया जा रहा है।
- बिहार से तमिलनाडु तक रायता: आयोग ने तमिलनाडु में बिहार के 6.5 लाख लोगों के नाम एड कर दिए — बिना उनके सहमति या जानकारी के।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री M.K. स्टालिन ने इस पर खुला आरोप लगाया कि यह एक सोची-समझी डेमोग्राफिक छेड़छाड़ है।
राजनीतिक नारा बनता विरोध: “वोट चोर, गद्दी छोड़”
- भाकपा (माले) के धीरेंद्र जैसे नेता मुसहर समुदाय के नाम गायब होने को लेकर ज़मीनी स्तर पर अभियान चला रहे हैं।
- बूथ चलो, मताधिकार बचाओ अभियान बिहार भर में फैल चुका है।
- ये सिर्फ तकनीकी गलती नहीं, एक सुनियोजित राजनीतिक साजिश है।
निष्कर्ष: लोकतंत्र की बुनियाद पर खतरा
चुनाव आयोग पर जो आरोप लग रहे हैं, वो सिर्फ गड़बड़ियों के नहीं हैं — वो विश्वासघात के आरोप हैं।
मरे हुए लोगों को वोट देने की ताक़त दी जा रही है, जबकि ज़िंदा लोगों से उनका लोकतांत्रिक हक छीन लिया गया है।
और यही कारण है कि सवाल अब सीधे चुनाव आयोग से नहीं, बल्कि मोदी सरकार से पूछे जा रहे हैं। क्या यह सब सरकारी समर्थन के बिना संभव है?
देश को चाहिए साफ-सुथरा चुनाव, न कि साफ-सुथरी लिस्ट से लोगों को गायब कर देना।