“बांग्ला हुई बांग्लादेशी” – क्या अब भाषा भी देशद्रोह का प्रमाण बन गई है?
देश की राजधानी दिल्ली में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां दिल्ली पुलिस की एक आधिकारिक चिट्ठी में बांगला भाषा को “बांग्लादेशी लैंग्वेज” बताया गया है। यह चिट्ठी सीधे “बांगा भवन” के प्रभारी को लिखी गई थी, जिसमें कहा गया कि आठ लोगों के दस्तावेजों का अनुवाद “बांग्लादेशी भाषा” से हिंदी या अंग्रेज़ी में किया जाए।
अमित शाह के अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस से यह चूक नहीं, बल्कि नफरत की संगठित अभिव्यक्ति लगती है।
इस एक वाक्य ने पूरे देश में तूफान खड़ा कर दिया। क्या यह केवल एक अधिकारी की गलती थी, जैसा कि दिल्ली पुलिस ने बाद में कहा? या यह सरकार के उस मनोविज्ञान को उजागर करता है, जिसमें बांगला बोलने वाला हर गरीब मज़दूर या घरेलू कामगार संदिग्ध बांग्लादेशी माना जाता है?
“बांग्ला बोलो, तो बांग्लादेशी हो” – ये कैसा गणराज्य है?
इस विवाद ने एक बेहद खतरनाक प्रवृत्ति को उजागर किया है: भाषा के आधार पर नागरिकता और देशभक्ति का निर्धारण। क्या बांगला भाषा में बात करने वाला हर व्यक्ति घुसपैठिया है? क्या बंगाल से आया श्रमिक, बांग्ला बोलने वाली घरेलू सहायिका या प्रेस करने वाला हर शख्स अब संदेह के घेरे में रहेगा?
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद बांगला में भाषण देते हैं, जब “जन गण मन” और “वंदे मातरम” जैसे राष्ट्रगान और गीत बांगला में रचे गए हैं, तो फिर उसी भाषा को “विदेशी” और “घुसपैठिया भाषा” बताना किस मानसिकता को दर्शाता है?
मोदी का बांगला भाषण, लेकिन दिल्ली पुलिस के लिए बांगला ‘घुसपैठिया भाषा’?
प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिम बंगाल की रैली में बांगला में भाषण दिया। उन्होंने “भालो आछेन?” कहकर जनता से संवाद शुरू किया। तो क्या यह विदेशी भाषा थी? यदि नहीं, तो क्या बांगला बोलने वाला मज़दूर या दिहाड़ी मजदूर विदेशी हो जाता है और प्रधानमंत्री नहीं?
CPM, ममता बनर्जी और स्टालिन का करारा हमला
- ममता बनर्जी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और इसे “language terrorism” बताया। उन्होंने इसे बंगाली अस्मिता का अपमान बताया और मोदी सरकार पर संवैधानिक मूल्यों को तोड़ने का आरोप लगाया।
- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने भी कहा कि दिल्ली पुलिस के इस रवैये ने पूरे संविधान का अपमान किया है। उन्होंने इसे भाषा के आधार पर भेदभाव और भारत की विविधता पर हमला करार दिया।
दिल्ली पुलिस का लीपापोती वाला जवाब
चूंकि मामला तूल पकड़ चुका था, दिल्ली पुलिस ने सफाई दी कि यह एक स्थानीय इंस्पेक्टर की गलती थी और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लेकिन पत्र की भाषा में “Bangladeshi Language” को कई बार लिखा गया है। यह लिपिकीय भूल नहीं, गंभीर वैचारिक गड़बड़ी का संकेत है।
क्या यह केवल गलती है या रणनीतिक नफरत?
- बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने ममता बनर्जी को निशाना बनाकर बांग्ला भाषा से ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठियों पर फोकस किया।
- लेकिन सवाल बना रहता है – क्या ममता बनर्जी की आलोचना के लिए पूरे बंगाली समाज को बलि चढ़ा देना सही है?
भारत में बांगला का महत्व – क्या सब भूल जाएंगे?
- रविंद्रनाथ टैगोर – जन गण मन और आमार सोनार बांगला के रचयिता।
- बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय – वंदे मातरम के लेखक।
- सत्यजीत रे, किशोर कुमार, महाश्वेता देवी, सुभाष चंद्र बोस – ये सब बंगाली थे और बांगला में रचते थे। क्या इन्हें भी “विदेशी” माना जाएगा?
निष्कर्ष: भारत की आत्मा पर हमला है यह
भाषा, धर्म, जाति – सबको टुकड़ों में बांट कर नफरत का जो खेल बीजेपी सरकार ने रचा है, उसका यह एक और अध्याय है। दिल्ली पुलिस की यह चिट्ठी एक अफसर की भूल नहीं, राजनीतिक संस्कृति की रचना है, जहां हर अलग भाषा, हर अलग पहचान को संदेह और घृणा से देखा जाता है।
समाप्ति:
यह समय है जब हर भारतीय को आवाज़ उठानी चाहिए। बांगला भारतीय है, बंगाली भारतीय हैं – और यह कहना आज देशभक्ति है। क्योंकि यदि यह नहीं कहा गया, तो कल आपकी भाषा, आपकी संस्कृति और आपकी पहचान भी “विदेशी” ठहरा दी जाएगी।