August 8, 2025 11:35 pm
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तेल, टैरिफ और मोदी-अंबानी समीकरण की असली कहानी

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को टैरिफ की धमकी दी है। क्या मोदी सरकार ने करारा जवाब दिया या फिर अंबानी-अडानी के कारोबारी हितों को बचाने में लगी है? पढ़ें बेबाक विश्लेषण।

‘ट्रंप का टैरिफ डंडा और मोदी सरकार की गुल्ली’: क्या भारत ने सच में मुंहतोड़ जवाब दिया?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को लेकर फिर एक धमकी दी है — इस बार 25% टैरिफ लागू कर भारत से आने वाले सामान पर भारी शुल्क लगाने की बात कही गई है। 1 अगस्त से यह नया शुल्क लागू हो चुका है और 6 अगस्त से जुर्माना भी शुरू होने वाला है। ट्रम्प ने साफ-साफ आरोप लगाया कि भारत रूस से भारी मात्रा में सस्ता कच्चा तेल खरीदकर उसे वैश्विक बाजार में ऊंचे दामों पर बेच रहा है। लेकिन इस बार भारत की ओर से एक छोटा-सा जवाब आया — वह भी मोदी सरकार के प्रवक्ता के ज़रिए, न कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से।

विडंबना देखिए, जिस मोदी सरकार ने पहले पाकिस्तान को ‘गोली के बदले गोला’ देने की बात कही थी, वही सरकार अब अमेरिका के टैरिफ डंडे के जवाब में एक प्रेस स्टेटमेंट तक सीमित रह गई है।

क्या था ट्रंप का आरोप?

ट्रंप ने कहा कि भारत न केवल रूसी तेल खरीद रहा है, बल्कि उसे मुनाफे के लिए खुले बाजार में बेच भी रहा है — यानी रूस के साथ चल रहे युद्ध से लाभ उठा रहा है। अमेरिका की यह नाराज़गी सीधे मोदी सरकार के व्यापारिक रुख को लेकर है।

लेकिन ट्रंप का यह बयान तब और खोखला हो जाता है जब भारत ने जवाब में यूरोपीय संघ और अमेरिका की खुद की रूसी खरीद का पूरा ब्यौरा दे डाला।

भारत का जवाब: एक आधा-अधूरा प्रेस नोट

भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा:

“जैसे बाकी देश राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेते हैं, भारत भी अपनी ऊर्जा सुरक्षा और उपभोक्ताओं के लिए किफायती विकल्प सुनिश्चित करने के लिए वही करेगा जो ज़रूरी है।”

इसके साथ ही भारत ने यूरोपीय संघ के रूस से 67.5 बिलियन यूरो के व्यापार, 16.5 मिलियन टन एलएनजी खरीद, और अमेरिका द्वारा रूस से यूरेनियम, फर्टिलाइजर, और केमिकल आयात के आंकड़े भी पेश किए।

लेकिन सवाल बना रहता है — ये जवाब जनता को क्यों नहीं दिखता? क्यों प्रधानमंत्री खुद कुछ नहीं कहते?

तेल की सच्चाई: आम जनता को नहीं मिला कोई फायदा

सबसे बड़ा सवाल यह है कि रूस से सस्ते तेल की खरीद का लाभ आखिर किसको मिला?

  • सरकार ने दावा किया कि इससे 2.37 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई।
  • लेकिन इस बचत का एक भी हिस्सा आम जनता को नहीं मिला — पेट्रोल-डीजल के दाम जस के तस हैं।
  • सस्ती खरीद से सबसे ज्यादा लाभ कॉर्पोरेट घरानों — खासकर अंबानी-अडानी को मिला।

सुप्रिया श्रीनेत, संजय झा, जैसे कई राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी नेताओं ने इस पर सवाल उठाए हैं कि क्यों जनता को कोई राहत नहीं दी गई?

ट्रम्प बनाम अंबानी-अडानी समीकरण

ट्रंप के बयान का सीधा मतलब है कि भारत, खासकर रिलायंस और अदानी समूह, सस्ते तेल से कमाई कर रहा है।

  • अंबानी: रूस से सस्ता तेल खरीदकर यूरोप को ऊंचे दामों में बेचते रहे, भारत में पेट्रोल सस्ता नहीं हुआ।
  • अडानी: ट्रंप की आलोचना का खास निशाना, क्योंकि आरोप है कि उन्होंने चोरी-छिपे रूस से तेल लेकर दूसरे देशों को बेचा।

इस त्रिकोणीय खेल में मोदी सरकार का रुख एक कॉरपोरेट हितैषी रवैये की ओर इशारा करता है। क्या यही ‘राष्ट्रहित’ है?

मोदी की चुप्पी क्यों?

प्रधानमंत्री मोदी ने अब तक ट्रम्प के बयान पर एक शब्द भी नहीं कहा। विदेश मंत्रालय ने जरूर जवाब दिया, लेकिन यह भाषा इतनी नर्म थी कि उसे ‘मूतोड़’ नहीं कहा जा सकता।

अगर ट्रंप सार्वजनिक रूप से भारत पर हमला कर रहे हैं, तो क्या यह अपेक्षित नहीं कि प्रधानमंत्री खुद सामने आएं और 140 करोड़ भारतीयों की ओर से ट्रंप को करारा जवाब दें?

निष्कर्ष: क्या भारत ट्रंप के सामने झुका या चुपचाप खड़ा है?

भारत ने जो जवाब दिया, वह कूटनीतिक रूप से सूझ-बूझ वाला जरूर है, लेकिन राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद कमजोर दिखता है। देश की संसद चल रही है, मंहगाई चरम पर है, और सरकार की नीतियां सवालों के घेरे में हैं — ऐसे में प्रधानमंत्री की चुप्पी, खासकर ऐसे समय में, जब उनके पुराने ‘मित्र’ ट्रम्प भारत पर सीधा हमला कर रहे हैं, बहुत कुछ कहती है।

अब वक्त आ गया है कि मोदी सरकार को अमेरिका से भी ‘56 इंच’ का जवाब देना होगा — ताकि देश की संप्रभुता कॉरपोरेट लॉबी की आड़ में दबने न पाए।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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