मानवता और पशु अधिकारों के बीच टकराव – क्या यह आदेश सुरक्षा देगा या निर्दयता को बढ़ाएगा?
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और NCR क्षेत्र में करीब 11 लाख आवारा कुत्तों को सड़क से हटाकर शेल्टर होम में डालने का आदेश जारी किया है। कोर्ट का कहना है कि बढ़ते डॉग-बाइट्स और रेबीज के खतरे को देखते हुए यह कदम जरूरी है। आदेश के मुताबिक, सभी कुत्तों को आठ हफ्तों के भीतर सड़क से हटाया जाना है।
लेकिन यह फैसला लागू होते ही पशु अधिकार कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार समूहों और कई नागरिकों ने इसे अव्यावहारिक, अमानवीय और खतरनाक करार दिया है।
गरीब इंसानों के लिए जगह नहीं, कुत्तों के लिए शेल्टर?
पिछले तीन महीनों में दिल्ली में 50-60 हजार लोग बेघर हुए, जिनके घर और झुग्गियां यह कहकर तोड़ दी गईं कि वे “अवैध” हैं। उनके लिए न तो सुप्रीम कोर्ट ने suo-moto लिया, न सरकार ने शेल्टर की व्यवस्था की।
सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं — “जब इंसानों के लिए जगह नहीं, तो 11 लाख कुत्तों के लिए शेल्टर कैसे बनेंगे?”
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और RWA का रुख
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कई RWA (Resident Welfare Associations) ने इस फैसले का स्वागत किया है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने कहा:
“यह फैसला पूरे देश में लागू होना चाहिए।”
हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह सोच समाज के उस वर्ग से आती है जो महंगे नस्ल के पालतू कुत्ते पालता है और आवारा कुत्तों को “नासूर” मानता है।
पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की आपत्ति
प्रिंट में एसोसिएट एडिटर गीतांजलि दास ने लिखा:
“Stray dogs have a right to live. Supreme Court order can trigger a wave of animal cruelty. Dog bites have risen purely from the government’s failure of sterilisation, community feeding and rehabilitation. You cannot banish animals you see as a nuisance.”
एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट्स का कहना है कि सड़क के कुत्ते इंसानों के साथ रहकर ही जीवित रह सकते हैं। IIT मद्रास का उदाहरण दिया जा रहा है, जहां सभी आवारा कुत्तों को कैम्पस से हटाकर शेल्टर में रखा गया और कुछ ही महीनों में वे मर गए।
टाइम्स ऑफ इंडिया की आलोचना
टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय में सीधे सवाल उठाया गया:
“Forget the rules? Supreme Court itself has ruled earlier that street animals cannot be forcibly relocated. How can the court now ignore its own orders and established advisories?”
दोहरा मानदंड?
आलोचकों का तर्क है कि अगर सड़क से कुत्तों को हटाना जरूरी है, तो क्या कोर्ट गाय, बंदर और कबूतरों के लिए भी ऐसा ही आदेश देगा?
गायों के मामले में यह असंभव है, क्योंकि उन्हें धार्मिक रूप से “माता” का दर्जा प्राप्त है।
इंफ्रास्ट्रक्चर और बजट की चुनौती
दिल्ली में फिलहाल ऐसा कोई शेल्टर नहीं है जो लाखों कुत्तों को रख सके।
प्रति दिन खाने, देखभाल और मेडिकल जरूरतों के लिए करोड़ों रुपये का खर्च आएगा।
जब सरकार अपने गरीब नागरिकों को घर, स्कूल और अस्पताल नहीं दे पा रही, तो कुत्तों के लिए इतनी बड़ी व्यवस्था कैसे करेगी?
निष्कर्ष
यह आदेश न केवल व्यावहारिक रूप से कठिन है, बल्कि मानवता और सह-अस्तित्व की भावना के खिलाफ भी है।
सही समाधान है —
- नसबंदी (Sterilisation)
- वैक्सीनेशन
- कम्युनिटी केयर
ताकि इंसान और जानवर एक सुरक्षित और संतुलित वातावरण में रह सकें।