August 13, 2025 8:27 pm
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ग़ाज़ा में अल-जज़ीरा के सारे पत्रकारों की हत्या की इज़रायल ने

गाज़ा में इस्राइली सेना ने 7 पत्रकारों को निशाना बनाकर मार डाला, जिनमें 5 अलजज़ीरा के थे। प्रेस स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर सीधा हमला।

पत्रकारों की टार्गेट किलिंग यानि युद्धभूमि में सच दिखाने की सज़ा

गाज़ा में एक बार फिर पत्रकारों का खून बहा है। इस्राइली सेना ने सात पत्रकारों को निशाना बनाकर मार दिया, जिनमें पाँच अलजज़ीरा के बहादुर रिपोर्टर और कैमरामैन शामिल हैं। यह घटना न केवल पत्रकारिता पर हमला है, बल्कि युद्धक्षेत्र में सच दिखाने वालों के लिए स्पष्ट चेतावनी भी है।

पत्रकारिता की असली कीमत

पत्रकारिता की कीमत भारत के “ग़ुलाम” गोदी मीडिया से मत पूछिए, और न ही उनसे जो इस्राइली सेना के पीछे छुपकर या नेतन्याहू से हाथ मिलाकर फ़िलिस्तीन और ईरान की जंग कवर करते हैं। असली कीमत उनसे पूछिए जो गाज़ा के बमबारी वाले इलाकों में खड़े होकर दुनिया को सच दिखा रहे हैं — और इनमें सबसे आगे हैं अलजज़ीरा के पत्रकार।

शहीद हुए पत्रकारों के नाम

अलजज़ीरा के इन बहादुर पत्रकारों ने ग्राउंड ज़ीरो से इस्राइल की बर्बरता, जनसंहार और उसके समर्थक अमेरिका की करतूतों को दुनिया के सामने लाने का साहस दिखाया।
इस हमले में मारे गए पत्रकारों के नाम हैं:

  • अनस अल शरीफ
  • मोहम्मद करीके
  • इब्राहिम जहीर
  • मोहम्मद नौफूल
  • मौमन अलीवा
    इनके अलावा दो अन्य पत्रकार भी इस हमले में शहीद हुए।

अल-शिफा अस्पताल के बाहर हमला

ये सभी पत्रकार गाज़ा में अल-शिफा अस्पताल के बाहर बने टेंट में मौजूद थे, जब इस्राइली सेना ने उन्हें निशाना बनाकर मार दिया। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि इन पत्रकारों को लगातार धमकियां मिल रही थीं और यह हमला पूरी तरह पूर्व-नियोजित था। उन्होंने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया।

पत्रकारों पर बढ़ते हमले

पिछले दो सालों में, जब से इस्राइल ने गाज़ा और फ़िलिस्तीन के खिलाफ एकतरफा युद्ध छेड़ा है, करीब 230 पत्रकार इस तरह के हमलों में मारे जा चुके हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

इस हमले की दुनिया भर में निंदा हो रही है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) ने इसे “युद्ध अपराध” करार दिया और संयुक्त राष्ट्र से तत्काल जांच की मांग की। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) ने कहा कि गाज़ा में पत्रकारों को जानबूझकर निशाना बनाना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है और दोषियों को जवाबदेह ठहराना जरूरी है।
अमेरिकी और यूरोपीय मानवाधिकार संगठनों ने भी इस्राइल पर दबाव डालने की अपील की है, ताकि युद्ध क्षेत्र में पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

मानवाधिकार संगठनों का रुख

एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस घटना को प्रेस स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि यह न केवल पत्रकारों के जीवन के साथ खिलवाड़ है, बल्कि युद्ध अपराध की श्रेणी में भी आता है।
इन संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) से आग्रह किया है कि वह इस घटना की जांच को प्राथमिकता में रखे और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे।

निष्कर्ष

गाज़ा में हुई यह घटना दिखाती है कि युद्ध केवल सैनिकों के लिए नहीं, बल्कि सच्चाई को सामने लाने वाले पत्रकारों के लिए भी जानलेवा है। यह हमला न केवल प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रहार है, बल्कि मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानून की खुली अवहेलना भी है।

मुकुल सरल

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