21वीं सदी का भारत: दलितों पर अत्याचार – एक अंतहीन सिलसिला
पूरी दुनिया में अगर कहीं सबसे ज्यादा तकलीफदेह और नियमित रूप से अनदेखी की जाने वाली त्रासदी है, तो वह है—भारत में दलितों पर होने वाली हिंसा। हम जिन घटनाओं को अख़बार की कोरी हेडलाइन समझकर आगे बढ़ जाते हैं, वे असल में उस सामाजिक सड़न की निशानी हैं जिसे हम “अब तो जाति ख़त्म हो गई” कहकर छुपा देना चाहते हैं।
हमारा यह लेख उन्हीं घटनाओं की परतें खोलता है—बिना भय, बिना संकोच।
दलितों पर अत्याचार: एक सिलसिला, जो थमता नहीं
महिलाओं के खिलाफ हिंसा
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि हर दो घंटे में एक दलित महिला बलात्कार की शिकार होती है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश इसमें शीर्ष पर हैं। यह शर्म की बात है कि इसे अब “नॉर्मल” मान लिया गया है।
हालिया घटनाएं: भारत के हर कोने से
📍 आंध्र प्रदेश, चित्तूर –
16 जून 2025 को सिरिशा नाम की एक महिला को गांव के लोगों ने पेड़ से बांधकर पीटा। उसका जुर्म? अपने अलग हो चुके पति का पुराने कर्ज से रिश्ता!
📍 महाराष्ट्र, बीड –
एक दलित युवक ने घायल लड़के को अस्पताल पहुंचाया, और बदले में उसे दबंगों ने बुरी तरह पीटा, लूटा और उसकी मां को गालियां दीं।
📍 कर्नाटक, मंड्या | पश्चिम बंगाल, कटवा | तमिलनाडु, तिरुचिरापल्ली –
दलितों को मंदिर में प्रवेश से रोका गया। कोई सामूहिक पूजा नहीं करने दी गई। समाज ने उन्हें अलग से पूजा कराई, फिर मंदिर बंद कर दिया गया।
जातिगत दंभ का प्रत्यक्ष प्रमाण: दलित दूल्हों पर हमले
- उत्तर प्रदेश के मथुरा और आगरा से लेकर मध्यप्रदेश के टिकमगढ़ और राजस्थान के जालौर तक, हर जगह दलित दूल्हों को घोड़ी से उतारा गया, बारातों पर हमला हुआ।
- पुलिस संरक्षण में फेरे लेने पड़े, क्योंकि समाज इसे स्वीकार नहीं करता कि दलित दूल्हा घोड़ी पर चढ़े।
पहनावे, मूंछ और चश्मा भी अपराध?
- गुजरात, सबरकांठा: दलित युवक ने चश्मा और साफा पहना, फोटो अपलोड की, पीटा गया।
- राजस्थान, सिरोही: जूते पहनने पर मारपीट, जूतों की माला पहनाई गई।
- गुजरात, वीरमगाम: मूंछें रखने पर मारपीट।
पानी भी नहीं पी सकते?
- राजस्थान, झुंझुनू (जनवरी 2025) – दलित ट्रैक्टर ड्राइवर की पीट-पीटकर हत्या, सिर्फ इसलिए कि उसने मटके से पानी पी लिया।
- यूपी, बुलंदशहर (जून 2023) – पानी भरने पर पूरे परिवार को पीटा गया।
- राजस्थान, जालौर (जुलाई 2022) – 9 साल का इंद्र मेघवाल, पानी के मटके को छूने पर मारा गया। बाद में उसकी मौत हो गई।
यह सब घटनाएं अपवाद नहीं हैं—यह भारत की वास्तविकता है
इन्हें अलग-अलग न देखें, यह कोई व्यक्तिगत घटनाएं नहीं हैं। यह एक खतरनाक और सुसंगठित जातिवादी सोच का नतीजा है, जो संविधान, न्याय और बराबरी के सभी सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा रही है।
कानून?
हाँ, SC/ST एक्ट है। लेकिन या तो FIR दर्ज नहीं होती, या फिर पुलिस पीड़ित पर ही केस ठोक देती है।
न्याय?
अदालतों में तारीख़ पे तारीख़ मिलती है। लेकिन न दलितों की इज्ज़त लौटती है, न उनका जीवन।
क्या कहें? मेरा भारत महान?
जब एक समाज इस हद तक सड़ जाए कि किसी इंसान को घोड़ी पर बैठने, पानी पीने, मंदिर जाने, साफा पहनने पर भी मारा जाए, तब “मेरा भारत महान” कहना गुनाह लगता है।
निष्कर्ष
यह लेख और वीडियो सिर्फ सूचना नहीं, दस्तावेज़ हैं—एक ऐतिहासिक साक्ष्य हैं, कि 2025 में भी जातिवाद हमारे भीतर जिंदा है। इसे मिटाने के लिए नारे नहीं, हिम्मत चाहिए। कानून नहीं, इच्छाशक्ति चाहिए। और सबसे पहले—सच का सामना करने की ताकत चाहिए।