June 17, 2025 5:54 am
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राष्ट्रपति के गांव में आदिवासियों के घर गिराए, खनन के लिए कॉरपोरेट को खुली छूट

ओडिशा में आदिवासियों की जमीन, जंगल और हक की लड़ाई—पढ़िए नरेंद्र मोहंती से यह खास इंटरव्यू जहां वे बताते हैं असली हालात।

“हमारी राष्ट्रपति भी आदिवासी, मुख्यमंत्री भी, फिर भी आदिवासी ही बेघर” — ओडिशा में जमीनी हक की लड़ाई पर नरेंद्र मोहंती से विशेष बातचीत

🔴 बातचीत की शुरुआत: राज्य में सबसे बड़ा संकट क्या है?

“आज सबसे बड़ा संकट यह है कि जो आदिवासी, दलित और वंचित समुदाय जल-जंगल-जमीन पर अपना हक चाहते हैं, उन्हें राज्य की मशीनरी और कॉर्पोरेट गठजोड़ से सीधा खतरा है।”

नरेंद्र मोहंती का साफ कहना है कि ओडिशा सरकार की प्राथमिकता लोगों की ज़रूरत नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट की मुनाफाखोरी है। खनिज संसाधन, जल स्रोत, जंगल—सब कॉर्पोरेट को सौंपे जा रहे हैं, और इसका सीधा असर सबसे पहले आदिवासियों पर पड़ रहा है।

📍 क्यों नहीं पहुंचने दिया गया मेधा पाटकर को?

6 जून, विश्व पर्यावरण दिवस पर काशीपुर (रायगड़ा) में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें मेधा पाटकर, नरेंद्र मोहंती और कई स्थानीय कार्यकर्ता शामिल होने जा रहे थे। लेकिन उन्हें जिला प्रशासन ने कार्यक्रम स्थल पर ही रोक दिया

“हमें एक सरकारी लिस्ट दिखाई गई जिसमें 25 लोगों के नाम थे। कुछ डॉक्टर, कुछ शोधकर्ता और बाकी एक्टिविस्ट—all labelled as ‘threats’।”

कार्यक्रम रोकने के साथ ही मोहंती को दो महीने तक रायगड़ा ज़िले में प्रवेश पर रोक का आदेश मिला।

🏠 राष्ट्रपति का गांव, आदिवासी उजड़ते क्यों?

नरेंद्र मोहंती ने चौंकाने वाला खुलासा किया—

“राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का गांव रायरंगपुर है। उसी गांव में एक पुराने हवाईअड्डे के विस्तार के नाम पर 43 आदिवासी परिवारों के घर तोड़े गए—बिना ग्रामसभा, बिना मुआवज़े।”

MP, MLA, Collector—सभी आदिवासी थे। बावजूद इसके, बिजली काट दी गई, घर टूटे, मीडिया चुप रहा और लोगों को उखाड़ दिया गया।

🔒 झूठे केस: 700 से ज़्यादा आदिवासी जेल में

2006 से 2010 के बीच 700 से ज़्यादा लोग—जिनमें 90% आदिवासी थे—फर्जी माओवादी मामलों में जेल में डाल दिए गए। मोहंती बताते हैं:

“हमने देखा कि जिनके पास कोई प्रोफाइल नहीं था, जैसे दैनिक मज़दूर, किसान—they had no way to fight in court.”

इसीलिए उन्होंने 2012 में Abhiyan Against Fabricated Cases नाम से अभियान शुरू किया। अब तक 200 से ज़्यादा निर्दोषों को रिहा कराने में सफलता मिली है।

🧾 सवाल: क्या सरकार अब सिर्फ कॉर्पोरेट की सेवा में है?

“ये सरकार अब ‘कॉर्पोरेट सरकार’ है। प्रधानमंत्री कार्यालय सीधे राज्य के मुख्य सचिव से बात करता है। पेसा कानून, पंचायती अधिकार, सब ध्वस्त कर दिए गए हैं।”

नरेंद्र मोहंती का मानना है कि प्रगति पोर्टल, जो केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय का माध्यम था, अब एक कॉर्पोरेट सप्लाई चैन बन चुका है।

📌 बड़ी बातें जो निकल कर आईं:

  • राष्ट्रपति आदिवासी हैं, मुख्यमंत्री आदिवासी हैं—लेकिन नीतियां कॉर्पोरेट समर्थक हैं।
  • मेधा पाटकर को जन कार्यक्रम में शामिल होने से रोका गया।
  • रायगड़ा जैसे जिले में स्थानीय लोगों को भी प्रवेश से रोका जा रहा है
  • आदिवासियों को ग्राम सभा से पहले उजाड़ा जा रहा है।
  • हजारों झूठे केसों में निर्दोष आदिवासी जेल में हैं।

🧠 निष्कर्ष:

“चेहरे बदलने से नीति नहीं बदलती।”

नरेंद्र मोहंती की यह बात इस पूरे इंटरव्यू की आत्मा है। ओडिशा में जिस तरह से नए रूप में पुराने औपनिवेशिक ढांचे को लागू किया जा रहा है, वह चिंता का विषय है। आदिवासियों के जीवन, जमीन और जंगल की रक्षा का सपना अब भी अधूरा है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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