BBC की रिपोर्ट ने योगी सरकार के दावों पर खड़े किए सवाल
29 जनवरी 2025 — यह दिन उत्तरप्रदेश के इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज हो चुका है। मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में भयानक भगदड़ मची, और लोग कुचले गए, मारे गए, बिछुड़ गए।
उत्तरप्रदेश सरकार ने इस त्रासदी में केवल 37 मौतों की बात मानी। लेकिन अब BBC की एक साहसिक रिपोर्ट ने इन आंकड़ों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
📊 BBC ने क्या खुलासा किया?
BBC की रिपोर्ट के अनुसार:
- 11 राज्यों में जाकर 100 से अधिक परिवारों से बातचीत की गई।
- 82 लोगों की मौत का सत्यापन किया गया।
- इनमें से 19 ऐसे नाम सामने आए जिन्हें अब तक आधिकारिक तौर पर मृतकों में गिना ही नहीं गया।
सबसे चौंकाने वाली बात?
इनमें से कई मृतकों के परिवारों को किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिली, और 26 परिवारों को अचानक 5-5 लाख की राशि दी गई, लेकिन योगी सरकार ने इस पर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया कि यह राशि किस मद से दी गई।
🧾 सरकार की चुप्पी क्यों?
चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन सरकार ने मृतकों की आधिकारिक सूची तक सार्वजनिक नहीं की। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि:
- क्या सरकार कुछ छिपाने की कोशिश कर रही है?
- यदि BBC 82 नाम सामने ला सकता है, तो सरकारी तंत्र क्यों विफल रहा?
- मृतकों की लिस्ट छिपाना क्या संवैधानिक और नैतिक रूप से जायज है?
🎥 मीडिया की भूमिका पर सवाल
BBC की रिपोर्ट एक सवाल और उठाती है — बाकी मीडिया संस्थान चुप क्यों रहे?
भगदड़ के तुरंत बाद जब परिजन गला फाड़ कर मीडिया से न्याय की गुहार कर रहे थे, तब ज़्यादातर चैनल सिर्फ सरकारी आंकड़ों की तुरही बजा रहे थे।
क्या मीडिया का काम सवाल पूछना नहीं था? क्या उसकी भूमिका सिर्फ सरकार के बयान दोहराना भर रह गई है?
🔥 कौनसे मुद्दे दबा दिए गए?
- 82 मृतकों में सभी हिंदू थे, लेकिन कथित “हिंदू रक्षक ब्रिगेड” इस त्रासदी पर क्यों मौन रही?
- बेंगलुरु में 11 लोग मारे जाते हैं, तब पूरा देश जाग जाता है।
लेकिन महाकुंभ की यह मौतें सिर्फ एक आंकड़ा बन कर क्यों रह गईं?
यह चयनात्मक संवेदना और चुनिंदा रिपोर्टिंग लोकतंत्र और मानवाधिकारों दोनों पर प्रश्नचिन्ह है।
🤔 अब आगे क्या?
महाकुंभ एक धार्मिक पर्व नहीं, राष्ट्रीय स्तर की मेगा इवेंट होती है, जिसमें करोड़ों की भीड़ जुटती है। ऐसे में:
- प्रबंधन की विफलता,
- असली आंकड़ों का छिपाया जाना,
- और संवेदनशील रिपोर्टिंग की गैर-मौजूदगी,
सभी बेहद खतरनाक हैं।
योगी आदित्यनाथ सरकार को इन सवालों का जवाब देना होगा — आज नहीं तो कल।