सोनम केस पर गिद्ध मीडिया और नैतिकता की राजनीति: हत्या से ज़्यादा मुनाफ़े की भूख
भारत की पत्रकारिता इस समय एक गहरे संकट से गुजर रही है, और इस संकट का सबसे नग्न और वीभत्स चेहरा सोनम रघुवंशी हत्याकांड की रिपोर्टिंग में सामने आया है। एक क्राइम स्टोरी कैसे एक पूरे देश की मीडिया का “गिद्ध भोज” बन जाती है, यह आज हम देख रहे हैं।
🎭 सोनम पर मीडिया की गिद्ध दृष्टि
मध्यप्रदेश के इंदौर में एक निजी हत्याकांड — जिसमें आरोप है कि सोनम ने अपने पति राजा रघुवंशी की हत्या की — ने मीडिया के लिए एक “परफेक्ट मसाला क्राइम थ्रिलर” की तरह काम किया। लेकिन सवाल है, क्या मीडिया सचमुच न्याय की खोज में है या टीआरपी की?
- माएं कैमरे की रोशनी में रो रही हैं
- रिपोर्टर पीड़िता की माँ से पूछ रहा है: “क्या आपको पता था आपकी बेटी हत्यारिन है?”
- हर चैनल के हेडलाइन में सोनम, हर बुलेटिन में सोनम, हर रील, हर पोस्ट में “वल्चर मीडिया” का तमाशा जारी है
🧟 नेता बोले: पूतना, ममता और शर्म
जब मीडिया गिरावट की हदें पार करता है, तब नेताओं को भी अपनी नैतिकता चमकाने का मंच मिल जाता है।
कैलाश विजयवर्गीय, जो खुद विवादित बयानों और अपने बेटे की बदमाशी के लिए कुख्यात हैं, सोनम को “पूतना” बताते हैं और “संस्कार” न मिलने का आरोप लगाते हैं।
“महिला में शर्म, ममता और ममता नहीं हो तो वह महिला नहीं पूतना बन जाती है।”
लेकिन क्या यही कैलाश जी कभी अपने बेटे की सार्वजनिक गुंडागर्दी पर बोले?
क्या उन्होंने भाजपा नेताओं द्वारा चलाए गए सेक्स रैकेट या गैंगरेप आरोपियों पर भाषण दिया?
🔥 सेक्स रैकेट चलाने वाले नेता और मौन मीडिया
एक ओर सोनम का चेहरा हर टीवी पर, हर अख़बार में है। दूसरी ओर:
- अतुल चौरसिया, भाजपा नेता, सेक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार
- उत्तराखंड में भाजपा महिला नेता, अपनी ही बेटी का गैंगरेप करवाने के मामले में आरोपी
- बनारस गैंगरेप केस, जिसमें आरोपी भाजपा नेताओं के साथ सेल्फी में दिखते हैं
इन खबरों पर मेनस्ट्रीम मीडिया चुप है।
ना कोई “एक्सक्लूसिव”, ना कोई नैतिक प्रवचन। क्यों?
🎥 मीडिया: अपराध से अधिक मनोरंजन
एक समय था जब पत्रकारिता न्याय का माध्यम हुआ करती थी। आज:
- सोनम की हत्या की खबर को हॉलीवुड क्राइम थ्रिलर की तरह पैकेज किया जा रहा है
- 40 से अधिक ट्वीट ANI द्वारा सिर्फ इसी मुद्दे पर
- बीएसएफ जवान ट्रेन की दुर्दशा से इनकार कर रहे, लेकिन वो खबर नहीं
यह सिर्फ “रिपोर्टिंग” नहीं, नाटक है, और दर्शक को गिद्ध भोज परोसने का नया तरीका।
🧨 सामाजिक गिरावट या मीडिया की मुनाफाखोरी?
सवाल यह नहीं कि सोनम निर्दोष है या दोषी।
सवाल है कि क्या एक हत्या को पूरे राष्ट्र की प्राथमिकता बना देना पत्रकारिता का धर्म है?
- क्या महिला की मां को टीवी पर लाकर रोने को कंटेंट बनाना उचित है?
- क्या असली मुद्दों — जैसे महिला हिंसा, गैंगरेप, बाल तस्करी, राजनीतिक संरक्षण — को दबाकर सिर्फ एक नाम पर टीआरपी बटोरना मीडिया की सच्चाई है?
🗣️ हमारा सवाल:
- क्या बीजेपी के नेताओं को महिलाओं पर भाषण देने से पहले खुद के घरों में झांकना चाहिए?
- क्या मीडिया को “सनसनी” और “सच्चाई” में फर्क समझना चाहिए?
- क्या हम, दर्शक, इस गिद्धनोच को चुपचाप देखेंगे?