June 14, 2025 7:58 pm
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क्या देश की सुरक्षा से खिलवाड़ है स्टारलिंक को मंजूरी

भारत सरकार ने स्टारलिंक को बिना नीलामी स्पेक्ट्रम देकर भारी बहस छेड़ दी है। क्या यह डिजिटल क्रांति है या राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट?

भारत में एलन मस्क की स्टारलिंक को मंजूरी: उपलब्धि या खतरे की घंटी!

“गांव-गांव इंटरनेट पहुंचेगा”, “डिजिटल इंडिया मजबूत होगा” — एलन मस्क की स्टारलिंक को भारत में मंजूरी मिलने के साथ ही ऐसे दावे किए जा रहे हैं। लेकिन क्या सच में यही कहानी है? या फिर इसके पीछे छुपे हैं कुछ गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा और नीति से जुड़े सवाल?

बेबाक भाषा में आपका स्वागत है। मैं हूं मुकुल सरल, और आज हम बात करेंगे स्टारलिंक की भारत में एंट्री की, और उससे जुड़े खतरे और विवाद की।

🌐 बिना नीलामी स्पेक्ट्रम: क्या सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन हुआ?

पूर्व सचिव ई.ए.एस. शर्मा, जो कि भारत सरकार के 1965 बैच के अनुभवी IAS अधिकारी रहे हैं, उन्होंने 9 जून 2025 को कैबिनेट सचिव टीवी सोमनाथन को एक सख्त पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई। उन्होंने कहा:

“स्टारलिंक को बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम देना न केवल सुप्रीम कोर्ट के 2G मामले में दिए गए निर्णय का उल्लंघन है, बल्कि यह सरकारी खजाने और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों पर गंभीर चोट है।”

🧾 2G स्पेक्ट्रम मामला और याद दिलाता इतिहास

साल 2012 में, सुप्रीम कोर्ट ने 2G स्पेक्ट्रम घोटाले पर ऐतिहासिक निर्णय दिया था — जिसमें कहा गया कि स्पेक्ट्रम जैसी कीमती संसाधन केवल पारदर्शी नीलामी से ही आवंटित हो सकते हैं। मनमोहन सरकार पर इसी मसले को लेकर भारी आलोचना हुई थी। और अब उसी अदालत के आदेश को दरकिनार कर मस्क की कंपनी को “सीधा प्रवेश” दिया जा रहा है।

⚠️ राष्ट्रीय सुरक्षा पर उठते सवाल

स्टारलिंक एक अमेरिकी कंपनी है और इसका डेटा ट्रांसफर व प्रबंधन अमेरिका के कंट्रोल में होता है। ऐसे में, भारत के रक्षा प्रतिष्ठान, नागरिक डेटा और संप्रभुता पर खतरा मंडराने लगता है।

शर्मा का कहना है:

“स्टारलिंक से गुजरने वाला संचार भारत सरकार के नियंत्रण से बाहर होगा, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।”

🔍 नीति में पक्षपात?

सरकार का यह कदम अन्य भारतीय टेलीकॉम कंपनियों के लिए नीतिगत भेदभाव भी दर्शाता है। जब देशी कंपनियों को हर कदम पर नियमों और नीलामी का सामना करना पड़ता है, तो एक विदेशी अरबपति को बिना किसी प्रतिस्पर्धा के इतनी बड़ी सुविधा कैसे दी जा सकती है?

🌍 डिजिटल इंडिया या डिजिटल निर्भरता?

यह तर्क दिया जा रहा है कि स्टारलिंक भारत के दूरदराज के क्षेत्रों तक इंटरनेट पहुंचाएगा। लेकिन क्या हम इस सुविधा के बदले डिजिटल उपनिवेशवाद की ओर तो नहीं बढ़ रहे? क्या सरकार ने डेटा संप्रभुता और साइबर सुरक्षा के खतरे पर कोई नीति स्पष्ट की है?

🧭 निष्कर्ष:

स्टारलिंक का भारत में आना, तकनीकी दृष्टिकोण से क्रांतिकारी कदम हो सकता है, लेकिन नीति, पारदर्शिता और सुरक्षा के मोर्चे पर यह कई सवाल खड़े करता है।
हमें आत्मनिर्भरता की दिशा में सोचने की ज़रूरत है — न कि किसी विदेशी कंपनी के हाथों अपना इंटरनेट भविष्य गिरवी रखने की।

मुकुल सरल

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