August 15, 2025 2:29 am
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चुनाव आयोग ने मुँह की खाई, सुप्रीम कोर्ट ने लगाया अंकुश, वोट चोरी पर नकेल

बिहार में SIR विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 65 लाख वोटरों की सूची सार्वजनिक करने और आधार को मान्य दस्तावेज़ मानने का आदेश दिया। जानें, अदालत में क्या हुई बहस और क्यों यह फैसला ऐतिहासिक है।

सख़्त फटकार: बिहार के 65 लाख वोटरों के नाम सार्वजनिक करें, आधार को मान्य दस्तावेज़ के रूप में स्वीकारें

14 अगस्त 2025, स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मतदाताओं के लिए राहत भरा और ऐतिहासिक आदेश जारी किया। यह फैसला सीधे-सीधे चुनाव आयोग (ECI) की पारदर्शिता पर सवाल उठाने वाला है, जिसमें अदालत ने दो टूक कहा कि —

“मतदाता का यह मौलिक अधिकार है कि वह जाने कि उसका नाम मतदाता सूची में है या नहीं, और अगर नाम हटाया गया है तो क्यों।”

पृष्ठभूमि: SIR और विवाद की शुरुआत

जून 2025 में चुनाव आयोग ने बिहार में Special Intensive Revision (SIR) की प्रक्रिया शुरू की। इसके तहत एक महीने में मतदाता सूची की समीक्षा कर 65 लाख नाम हटा दिए गए।

  • इस प्रक्रिया पर आरोप लगे कि यह “इंक्लूजन” (शामिल करने) के बजाय “एक्सक्लूजन” (निकालने) की कवायद थी।
  • मतदाताओं को यह जानने का कोई सीधा साधन नहीं था कि उनका नाम सूची में है या नहीं।
  • ECI ने searchable voter list हटा दी, जिससे EPIC नंबर डालकर भी नाम खोज पाना असंभव हो गया।

इस मनमानी के खिलाफ राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन, ADR और नागरिक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

मानवीय चेहरा: “हम जिंदा हैं”

इस कानूनी लड़ाई का सबसे मार्मिक पहलू था दो ग्रामीण महिलाओं की गवाही। बिहार के राघवपुर से आई इन महिलाओं ने अदालत में खड़े होकर कहा —

“हम जिंदा हैं, फिर हमें मृतक दिखाकर वोटर लिस्ट से क्यों हटाया गया?”

इनकी हिम्मत ने न केवल अदालत का ध्यान खींचा, बल्कि पूरे मामले को जनहित के स्तर पर ला दिया। बाद में इन्हें राहुल गांधी ने दिल्ली में अपने घर बुलाकर चाय पर चर्चा भी की और व्यंग्य में कहा —

“पहली बार मैं ऐसे लोगों के साथ चाय पी रहा हूँ जिन्हें सरकार ने ‘मरा हुआ’ घोषित कर दिया है।”

अदालत में हुई बहस: प्रमुख चेहरे और दलीलें

  • वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण: “ECI को अधिक पारदर्शी होना होगा, 65 लाख नाम हटाने के ठोस कारण सार्वजनिक करने होंगे।”
  • वकील वृंदा ग्रोवर और अभिषेक मनु सिंघवी: searchable format में लिस्ट जारी करने की मांग।
  • राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव: “अगर किसी उम्मीदवार का नाम चुनाव से ठीक पहले हटा दिया जाए तो अपील करने का समय नहीं बचेगा, यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है।”
  • ADR और Reporters Collective की रिपोर्ट: 5,000 से अधिक यूपी वोटरों के नाम बिहार की वोटर लिस्ट में शामिल, और भारी गड़बड़ी के सबूत।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुख्य बिंदु

  1. 65 लाख डिलीटेड नामों की पूरी सूची सार्वजनिक
    1. searchable format में वेबसाइट पर उपलब्ध कराना।
    1. अखबार, सोशल मीडिया और स्थानीय भाषाओं में प्रकाशन।
    1. कारण स्पष्ट करना कि नाम क्यों हटाया गया।
  2. आधार को वैध दस्तावेज़ के रूप में मान्यता
    1. अदालत ने पूछा कि जब 11 दस्तावेज़ मांगे गए हैं, तो आधार को क्यों बाहर रखा गया।
    1. बिहार में जन्म प्रमाणपत्र, निवास प्रमाणपत्र जैसे कई दस्तावेज़ आधार के बिना बनते ही नहीं, इसलिए इसका बहिष्कार अनुचित है।
  3. समय सीमा
    1. अगले मंगलवार तक (19 अगस्त 2025) ECI को दोनों कार्य पूरे करने होंगे।

संसद और सड़क पर संघर्ष

21 जुलाई से मानसून सत्र के अंत तक विपक्षी दलों ने संसद के बाहर रोज़ाना प्रदर्शन किया।

  • नारा था — “SIR मतलब वोट चोरी”।
  • विपक्ष ने संविधान की प्रति हाथ में लेकर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा दिए गए “एक वोट, एक अधिकार” के सिद्धांत को याद दिलाया।

यह फैसला क्यों अहम है?

  • यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता की बुनियादी जीत है।
  • SIR जैसी प्रक्रिया में बिना ठोस कारण नाम हटाना चुनावी हेरफेर का दरवाजा खोलता है।
  • सुप्रीम कोर्ट का आदेश यह स्पष्ट संदेश है कि मताधिकार से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं होगा

आगे की राह

हालांकि यह फैसला राहत देता है, लेकिन चुनावी ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिए सतत निगरानी और नागरिक भागीदारी जरूरी है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव और अन्य पत्रकार समूहों ने संकेत दिया है कि आने वाले दिनों में इस डेटाबेस के विश्लेषण से और चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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