June 17, 2025 12:45 am
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किस मजबूरी ने मोदी सरकार को इज़रायल के पक्ष में झुका दिया है

इस्राइल-ईरान युद्ध में भारत की चुप्पी और मोदी-अडानी ट्रम्प समीकरण पर सवाल उठ रहे हैं। क्या भारत की विदेश नीति अब व्यवसायिक दबाव में है

भारत की चुप्पी, अडानी का पोर्ट और ट्रम्प की धमकी – एक जटिल त्रिकोण

2025 में जब दुनिया एक संभावित तीसरे विश्व युद्ध की आशंका से कांप रही है, भारत की चुप्पी ज़ोर से गूंज रही है। इस्राइल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष में भारत का रुख स्पष्ट नहीं है—कहीं समर्थन नहीं, न ही विरोध। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है:
भारत डर से चुप है या मजबूरी से?

🇮🇳 मोदी सरकार की ‘अब्सटेन डिप्लोमेसी’

हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में गाज़ा सीज़फायर प्रस्ताव और SCO (Shanghai Cooperation Organisation) के इस्राइल के खिलाफ बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
यानी एक लोकतांत्रिक देश होते हुए भी भारत ने जेनोसाइड, अस्पतालों पर हमले और बच्चों की मौत पर चुप्पी साध ली।

यह वही भारत है, जो कभी NAM (गुटनिरपेक्ष आंदोलन) का अग्रणी था। अब वह इस्राइल के पक्ष में खड़ा नज़र आ रहा है।

💼 क्या है अडानी फैक्टर?

ईरान ने हाल ही में इस्राइल के हाफिया पोर्ट पर बैलिस्टिक मिसाइल से हमला किया। इस पोर्ट का 70% हिस्सा अडानी पोर्ट्स एंड SEZ लिमिटेड के पास है।

  • 2023 में अडानी ने यह पोर्ट $1.2 बिलियन में खरीदा था — मार्केट वैल्यू से भी ऊंचे दाम पर।
  • अब यही पोर्ट ईरान के निशाने पर है।

क्या अडानी की सुरक्षा में भारत की विदेश नीति बंधक बन गई है?
या फिर यह निवेश मोदी-अडानी के गहरे रिश्तों की राजनीतिक कीमत है?

💣 ट्रम्प कार्ड: अमेरिका की मूक धमकी

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प (2025) बार-बार दावा कर चुके हैं कि:

  • भारत-पाकिस्तान में उन्होंने सीज़फायर कराया।
  • ईरान पर इस्राइल का हमला उनकी ‘अनुमति’ से हुआ।
  • अडानी ने अमरीकी प्रतिबंधों को तोड़ते हुए ईरान से तेल खरीदा

यह सब सार्वजनिक रूप से मौजूद हैं।
क्या अमेरिका अब भारत को अपनी शर्तों पर चला रहा है?
भारत की चुप्पी शायद इस डर की वजह से है कि कहीं ट्रम्प की फाइलें खुल न जाएं।

⚔️ चीन, रूस, नॉर्थ कोरिया: अब खुलकर मैदान में

  • चीन ने इरान को मिलिटरी सपोर्ट भेजना शुरू कर दिया है।
  • रूस और नॉर्थ कोरिया भी खुलकर इस्राइल के खिलाफ खड़े हैं।
  • पाकिस्तान और भूटान जैसे पड़ोसी देश तक संयुक्त राष्ट्र में इस्राइल के खिलाफ वोट कर चुके हैं।

भारत अकेला खड़ा है—न समर्थन में, न विरोध में। सिर्फ अब्सटेन।

🔥 डिप्लोमेसी या व्यापारिक आत्मसमर्पण?

इस पूरे घटनाक्रम में भारत की छवि एक विश्वगुरु की नहीं बल्कि एक बिज़नेस पार्टनर की बन गई है जो अमेरिका और इस्राइल की नाराज़गी से डरता है।

क्या मोदी सरकार की चुप्पी सिर्फ “अडानी के शेयर” की मजबूरी है?

विपक्ष ने भी सवाल उठाए हैं—कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भारत की विदेश नीति को “ट्रम्प की परछाई” बताया है। SCO के बयान से भारत के पीछे हटने पर वैश्विक कूटनीति विशेषज्ञों ने भी चिंता जताई है।

📷 वीडियो, पोस्ट और सोशल मीडिया के ट्रेंड

  • सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरें:
    • अडानी पोर्ट पर ईरान की मिसाइलें।
    • इस्राइल के एआई डिफेंस सेंटर पर आग।
    • भारतीय विदेश मंत्री का अजीब ट्वीट—“फोन आया था!”

“कूटनीति अब ट्वीटों में बदल गई है, और भारत की विदेश नीति अब अप्रिय सवालों से डरने लगी है।”

🧠 निष्कर्ष: भारत की निष्क्रियता सबसे खतरनाक है

इस लेख का उद्देश्य किसी पक्ष का समर्थन नहीं, बल्कि भारत की कूटनीतिक चुप्पी की पड़ताल करना है। अगर दुनिया युद्ध की ओर बढ़ रही है और भारत यह तय नहीं कर पा रहा कि वह मानवता के साथ है या व्यापार के साथ—तो यह सचमुच गंभीर सवाल है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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