June 14, 2025 9:36 pm
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महिलाओं पर अपराध के बजाय मीडिया को भाती हैं खलनायिकाओं की कहानियां

इंदौर की सोनम केस में मीडिया का व्यवहार महिलाओं के खिलाफ एक पूर्वाग्रहपूर्ण माहौल बना रहा है। यह लेख बताता है कि कैसे TRP के खेल में स्त्री अपराध को सनसनी में बदला जा रहा है जबकि पुरुष अपराध सामान्य मान लिए जाते हैं

सोनम हनीमून किलर: मीडिया की सनसनी, महिलाओं के खिलाफ माहौल और TRP का खेल

जब कोई महिला अपराध करे, तो भारतीय मीडिया को जैसे नई ऑक्सीजन मिल जाती है। इंदौर की सोनम का केस इसका हालिया उदाहरण है — सोशल मीडिया, टीवी चैनल्स, इंस्टाग्राम रील्स हर जगह एक ही नाम गूंज रहा है: सोनम — हनीमून किलर।

एक तरफ पति राजा रघुवंशी की हत्या, दूसरी तरफ प्रेमी राज कुशवाहा का एंगल — और बस! हर जगह ‘क्राइम थ्रिलर’ की तरह परोसी जा रही है यह कहानी। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि सच्चाई सामने आने से पहले ही यह फैसला किसने कर लिया कि सोनम ही दोषी है?

📢 TRP की भूख और स्त्री विरोधी नैरेटिव

हमारे मीडिया को “सनसनी” चाहिए, लेकिन किस कीमत पर? यह TRP का भूख इतना बढ़ चुका है कि किसी महिला के अपराध की आशंका मात्र से ही उसे “डायन” बना दिया जाता है। ‘बेवफा बीवी’, ‘क्रूर स्त्री’, ‘मर्डरर लवर’ जैसे जुमलों से उसे lynch किया जाता है — बिना अदालत, बिना सुबूत, बिना प्रक्रिया।

जब तक अदालत दोष सिद्ध न करे, कोई भी अपराधी नहीं होता — लेकिन मीडिया इस “presumption of innocence” को नज़रअंदाज़ कर चुका है।

🎯 चयनात्मक गुस्सा क्यों?

इसी दौरान जब उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में एक बेटी सरस्वती माली को उसके ही पिता और भाई ने जला डाला, तब कोई प्राइम टाइम नहीं चला। कारण? कातिल पुरुष थे। मीडिया को उसमें TRP नहीं दिखती।

उत्तराखंड में बीजेपी नेता की बेटी के साथ गैंगरेप हुआ — लेकिन उसे भी डिब्बे में बंद कर दिया गया। क्यों?

और याद कीजिए — ज्योति मल्होत्रा केस, जिसमें महिला पर “पाकिस्तान से शादी और जासूसी” का आरोप था। लेकिन जब पुलिस ने कहा कि आरोप फर्जी हैं — मीडिया चुप हो गया। माफी नहीं दी।

💣 पुरुष वर्चस्व की पुनरावृत्ति

जब कोई पुरुष अपनी पत्नी को मारता है, तो हम सोचते हैं — “ये तो होता है…”। लेकिन जब कोई महिला प्रतिकार करती है, या किसी क्राइम में नाम आता है — तो वह खबर नहीं, मसाला बन जाती है।

यह मानसिकता, यह समाज — स्त्री को या तो देवी या राक्षसी बनाता है। एक इंसान नहीं मानता।

🎙️ मीडिया की जिम्मेदारी और हमारी चेतना

हमारे देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा आम बात है — लेकिन इन खबरों पर हमारे चैनलों की कोई रुचि नहीं। क्यों? क्योंकि इसमें TRP नहीं है, वो “ड्रामा” नहीं है।

मीडिया जब एक आरोपी महिला को अपराध सिद्ध होने से पहले ही “हत्यारिन” घोषित कर देता है — तो वो न सिर्फ संविधान के खिलाफ जाता है, बल्कि समाज में स्त्री विरोधी सोच को मज़बूत करता है।

🧭 निष्कर्ष:

मीडिया को सच दिखाना चाहिए, न कि “मनोरंजन” देना। अगर सोनम दोषी है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए। लेकिन अगर वो निर्दोष निकले — तो क्या मीडिया अपने TRP के लिए मांफी मांगेगा?

यह सवाल हम सबको खुद से पूछना होगा — क्या हम खबर चाहते हैं या सिर्फ मसाला?

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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