जब कोई दोषी नहीं होता, तो क्यों रोते हैं सिस्टम से पीड़ित लोग?
“मेरी बच्ची अस्पताल में भर्ती है… मैं यहीं पर था ड्यूटी पर… मैं क्यों निकाल दिया गया?”
डॉ. अनिल की आंखों से बहते आंसू अब सवाल बन चुके हैं।
अहमदाबाद विमान हादसे के बाद यह सिर्फ एक दर्दभरी चीख नहीं, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता पर सीधा आरोप है।
💥 एक हादसा, दो त्रासदी
12 जून को अहमदाबाद में एयर इंडिया का विमान जब डॉक्टर्स हॉस्टल पर गिरा, तो सिर्फ लाशें नहीं गिरीं, कई परिवारों की ज़िंदगियाँ भी मलबे में दब गईं।
एक तरफ:
- हादसे में मेडिकल छात्रों और डॉक्टरों की जानें गईं।
दूसरी तरफ:
- जो बचे, उनसे कहा गया: “24 घंटे में हॉस्टल खाली करो।”
और यह सब ऐसे समय में जब:
- डॉक्टर ड्यूटी पर थे,
- उनका परिवार हॉस्टल में ही था,
- और उनकी बेटी अस्पताल में भर्ती थी।
🧍 डॉ. अनिल की दास्तान: दोषी कौन?
“मैं प्लेन में नहीं था, मेरी कोई गलती नहीं… फिर भी मुझे सज़ा क्यों?”
डॉ. अनिल और उनकी पत्नी दोनों मेडिकल प्रोफेसर हैं। उस दिन वे हॉस्पिटल में ड्यूटी कर रहे थे।
विमान हादसे ने उनके रहने की जगह छीन ली, और सिस्टम ने उनके आंसुओं को जवाब देने की बजाय बेदखली का अल्टीमेटम थमा दिया।
⚰️ बिजनौर से आई एक और तस्वीर: सरफराज की मौत
अस्पताल में भर्ती 26 वर्षीय सरफराज डायलिसिस पर थे।
बिजली गई, इन्वर्टर फेल हुआ, डीज़ल नहीं था, और उसका दिल का खून मशीन में जम गया।
मेडिकल अफसरों ने खुद कहा – “यह लापरवाही नहीं, हत्या है।”
क्या यह “हादसा” था? या फिर एक ऐसे सिस्टम का “क्राइम” जो मुनाफे के लिए ज़िंदगियों को कुर्बान करता है?
🗣️ और इस बीच गृह मंत्री का बयान
“यह एक्सिडेंट है। एक्सिडेंट को रोका नहीं जा सकता।”
सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री अमित शाह का यह बयान व्यवस्था की बेशर्मी का परिचायक है।
जब जनता सवाल पूछ रही है:
- कितने डॉक्टर मरे?
- कितने ज़ख्मी हुए?
- कितने विस्थापित हुए?
सरकार अब भी गिनती छुपा रही है।
📰 मीडिया की चुप्पी: राजा हत्याकांड को घंटों कवरेज, डॉक्टरों के आँसू नहीं दिखते?
राजा-सोनम केस पर हर टीवी एंकर की पल-पल की रिपोर्टिंग
लेकिन एक डॉक्टर की चीख—जो सिर्फ़ इंसानियत मांग रहा था—वह कहीं नहीं दिखाई देती।
⚖️ जब सिस्टम आँसू भी नहीं देखता…
डॉक्टर अनिल की हालत यह दिखाती है कि सिस्टम:
- मशीनरी बन गया है, मानवीयता नहीं बची।
- सरकारें आंकड़ों में उलझी हैं, लेकिन मौत का असली मूल्य कौन तय करेगा?
सरफराज की मौत से यह भी साफ है कि:
- स्वास्थ्य सेवाएं कॉर्पोरेट मुनाफे के अधीन हैं,
- और गरीब की ज़िंदगी बैटरी और डीज़ल पर निर्भर।