August 9, 2025 5:46 am
Home » समाज-संस्कृति » RSS और आदिवासी समाज: हिंदूकरण की कोशिश या अस्मिता पर हमला!

RSS और आदिवासी समाज: हिंदूकरण की कोशिश या अस्मिता पर हमला!

RSS आदिवासियों को हिंदू बताकर 'वनवासी' कहता है। क्या यह सांस्कृतिक अधिनायकवाद है? राम पुनियानी की पड़ताल में जानिए पूरा सच।

आदिवासियों के जंगलों पर कॉरपोरेट के कब्जे से जुड़ा हुआ है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मिशन

“डिकोडिंग आरएसएस” की इस कड़ी में हम एक बेहद अहम विषय पर चर्चा कर रहे हैं—RSS और भारत के आदिवासी समाज के बीच का संबंध। आरएसएस की विचारधारा आदिवासियों को एक ‘भटके हुए हिंदू’ के रूप में पेश करती है, जो ‘धर्मांतरण से बचने के लिए जंगलों में चले गए’।

लेकिन क्या आदिवासी सच में हिंदू हैं? या यह एक राजनीतिक परियोजना है जो आदिवासियों की अस्मिता को खत्म करने की साजिश है?

आदिवासी कौन हैं? आरएसएस क्या कहता है?

आरएसएस का तर्क है कि आदिवासी वास्तव में “वनवासी” हैं—यानी वो लोग जो मूलतः हिंदू थे लेकिन धर्मांतरण और भय के चलते जंगलों में चले गए।

पर सच्चाई क्या है?

  • जनसंख्या जेनेटिक्स के अनुसार, भारत की मूल आबादी आर्यों के आगमन से पहले की है।
  • आर्य 3000 साल पहले आए, जबकि आदिवासी उनसे भी 4000-6000 साल पहले इस भूभाग में मौजूद थे।
  • आदिवासी समाज मूलतः प्रकृति पूजा, पूर्वजों की उपासना और स्वतंत्र सांस्कृतिक पहचान वाला समूह रहा है।

🧭 वनवासी कल्याण आश्रम और RSS का ‘घुसपैठ मॉडल’

1952 में RSS ने ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ की स्थापना की। इसका मकसद था:

  1. आदिवासियों को ‘हिंदू समाज’ का हिस्सा बताना
  2. ईसाई मिशनरियों के खिलाफ नफरत फैलाना
  3. आदिवासी इलाकों में चुनावी लाभ हासिल करना

1980 के बाद, RSS की गतिविधियां आदिवासी इलाकों में और आक्रामक हो गईं।

🔥 घर वापसी और नफरत की राजनीति

RSS और विश्व हिंदू परिषद द्वारा चलाया गया ‘घर वापसी अभियान’ सीधे-सीधे धर्मांतरण विरोधी आंदोलन था। इस आंदोलन के तहत आदिवासियों को बताया गया कि वे “भटके हुए हिंदू” हैं और उन्हें वापस “घर” लौट आना चाहिए।

इसमें शामिल रहे:

  • डांग (गुजरात) में स्वामी असीमानंद
  • मध्य प्रदेश में आसाराम समर्थक
  • ओडिशा में स्वामी लक्ष्मणानंद

🩸 हिंसा की कहानियां: स्टेन्स हत्याकांड और कंधमाल दंगे

1999 में ओडिशा में ग्राम स्टेन्स की हत्या—जो कुष्ठ रोगियों के बीच सेवा कार्य कर रहे थे—हिंदुत्व संगठनों द्वारा ईसाई विरोधी हिंसा का चरम था।

2008 में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या को लेकर माओवादी जिम्मेदारी लेने के बावजूद, ईसाइयों पर हमला किया गया। कंधमाल में भयावह दंगे हुए, जहां हजारों आदिवासी ईसाई परिवारों को पलायन करना पड़ा।

🧘‍♀️ RSS की ‘सामाजिक इंजीनियरिंग’: शबरी और हनुमान की छवि

RSS ने आदिवासी मानस में जगह बनाने के लिए शबरी और हनुमान को ‘प्रतीक देवी-देवता’ बनाकर पेश किया:

  • शबरी—गरीब, समर्पित महिला जो राम को बेर खिलाती है
  • हनुमान—राम के सेवक के रूप में ‘भक्ति और बलिदान’ का प्रतीक

यह रणनीति आदिवासियों को ‘सेवक और अधीन वर्ग’ के रूप में जोड़ने का प्रयास था।

🏭 कॉर्पोरेट-सरकार गठजोड़ और खनिज लूट

RSS की आदिवासी नीति का एक और पहलू है—खनिज संसाधनों पर नियंत्रण। आदिवासी क्षेत्रों में सोना, बॉक्साइट, कोयला जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों की भरमार है।

कॉर्पोरेट समूह इन इलाकों में नक्सलवाद और धार्मिक बहस के नाम पर अस्थिरता पैदा कर, स्थानीय लोगों को विस्थापित कर रहे हैं।

📜 संविधान क्या कहता है?

  • भारत का संविधान आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) के रूप में मान्यता देता है।
  • हर नागरिक को धर्म चुनने की स्वतंत्रता है।
  • आदिवासी धर्म हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है, यह एक स्वतंत्र सांस्कृतिक-धार्मिक इकाई है।

🔚 निष्कर्ष:

“हिंदू राष्ट्र” की कल्पना के तहत RSS द्वारा आदिवासियों पर थोपे गए पहचान के ढांचे, न केवल संविधान की भावना के खिलाफ हैं, बल्कि ये भारत की सांस्कृतिक विविधता को खत्म करने का सुनियोजित प्रयास हैं।

आदिवासी आदिवासी हैं — न हिंदू, न मुसलमान, न ईसाई। उन्हें उनकी संस्कृति, जमीन, अधिकार और अस्मिता के साथ जीने दीजिए।

राम पुनियानी

View all posts

ताजा खबर