June 30, 2025 11:17 pm
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मंदिर से जाने लगे VISA की सिफारिश तो क्या बात है

चिल्कूर बालाजी वीज़ा टेंपल और वैज्ञानिक सोच पर सवाल। क्या विज्ञान के शहर में अंधविश्वास की जगह है? जानिए पूरी सच्चाई इस लेख में।

“केले के पेड़ से सिर्फ केला ही निकलेगा, अमरूद नहीं” — यही है वैज्ञानिक सोच

क्या आपने कभी सोचा है कि कोई बाबा केले के पेड़ से अमरूद निकाल दे? नहीं न? यही बात वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Temper) सिखाता है — हर चीज़ को तर्क और प्रमाण के आधार पर समझना और मानना।

लेकिन आज भी भारत जैसे विज्ञान और टेक्नोलॉजी में तेज़ी से बढ़ते देश में ऐसे मंदिर मौजूद हैं, जहां लोग वीज़ा पाने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। हैदराबाद के पास स्थित चिल्कूर बालाजी टेंपल को आमतौर पर “वीज़ा टेंपल” कहा जाता है — एक ऐसा स्थान जहां हजारों लोग वीज़ा अप्लाई करने के बाद जाते हैं और भगवान से वीज़ा लगने की मन्नत मांगते हैं।

हैदराबाद: टेक हब या अंधविश्वास का अड्डा?

हैदराबाद को भारत का साइंस और टेक्नोलॉजी हब माना जाता है। शहर में आईटी कंपनियाँ, रिसर्च सेंटर और बड़ी यूनिवर्सिटीज़ हैं। लेकिन उसी शहर के 40 किलोमीटर बाहर एक ऐसा मंदिर है, जहां उच्च शिक्षित युवा — जो इंजीनियर, डॉक्टर्स, और साइंटिस्ट बनने जा रहे हैं — 108 बार चक्कर काटते हैं ताकि भगवान उनकी वीज़ा “approve” करवा दें।

वीज़ा की प्रक्रिया में बालाजी मंदिर का क्या रोल?

  • क्या चिल्कूर बालाजी मंदिर और अमेरिका के यूएस कांसुलेट के बीच कोई डायरेक्ट रिश्ता है?
  • क्या बालाजी भगवान एक सूची बनाकर यूएस कांसुलेट भेजते हैं?
  • अगर वीज़ा भगवान दिला सकते हैं, तो अप्लिकेशन फॉर्म भरने और इंटरव्यू देने की क्या ज़रूरत?

अगर किसी का फाइनेंशियल स्टेबिलिटी, एजुकेशन बैकग्राउंड या डॉक्युमेंट्स ठीक नहीं हैं, तो क्या भगवान यह सब मैनेज कर लेंगे?

जब इंजीनियर्स भी छोड़ देते हैं तर्क का साथ

यह चिंता का विषय है कि वे लोग, जो टेक्नोलॉजी और साइंस में पढ़े-लिखे हैं, वही ऐसे अंधविश्वासों में विश्वास करते हैं। ये वही युवा हैं जो बाहर जाकर वैज्ञानिक रिसर्च या टेक्नोलॉजी का हिस्सा बनते हैं, और फिर भी 108 चक्कर लगाकर वीज़ा मांगने मंदिर जाते हैं।

यह दिखाता है कि एजुकेशन का सीधा रिश्ता वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं बनता — जब तक सोच में बदलाव न आए।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: एक संवैधानिक ज़िम्मेदारी

भारत के संविधान में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवता और सुधारवादी सोच को अपनाए और बढ़ावा दे।

जब हम बिना सवाल किए अंधविश्वासों को अपनाते हैं, तो हम न केवल अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे हटते हैं, बल्कि विज्ञान और समाज दोनों को धोखा देते हैं।

क्यों ज़रूरी है सवाल पूछना?

  • क्या वीज़ा मंदिर जैसे अंधविश्वास वैज्ञानिक सोच को खत्म नहीं कर रहे?
  • क्या हम चर्चा से बचते हुए इन विश्वासों को मज़बूत नहीं कर रहे?
  • क्या यह हमारे युवा वर्ग को पाखंड की ओर नहीं ले जा रहा?

निष्कर्ष: उठाइए आवाज़, बनिए वैज्ञानिक सोच के वाहक

बेबाक भाषा की इस मुहिम में हम आपको यही संदेश देना चाहते हैं:
“प्रश्न कीजिए, चर्चा कीजिए, और तर्क पर आधारित सोच को अपनाइए।”
कोई भी परंपरा या विश्वास जो प्रमाण और तर्क पर खरा न उतरे, उसे चुनौती देना ज़रूरी है। तभी हम एक वैज्ञानिक, प्रगतिशील और संवेदनशील समाज की ओर बढ़ सकते हैं।

चंदना चक्रवर्ती

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