बच्चा पैदा होने की प्रक्रिया केवल महिला की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसमें पुरुष की भूमिका भी उतनी ही अहम होती है।यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें दोनों की जैविक भागीदारी जरूरी होती है।समाज में अक्सर यह धारणा बन जाती है कि यदि संतान नहीं हो रही है तो केवल स्त्री दोषी है, जबकि यह पूरी तरह गलत और भ्रामक सोच है।
वैज्ञानिक सोच या Scientific Temper का अर्थ है – हर बात को ज्ञान और तर्क के आधार पर समझना, अंधविश्वास और रूढ़ियों से दूर रहना। इसका मतलब है कि हम किसी भी विषय को आँख बंद करके न मानें, बल्कि उसे सवाल पूछकर, विश्लेषण करके समझें और केवल सत्य को स्वीकार करें।
हमारे देश में वैज्ञानिक सोच की हत्या हर दिन होती है — हर मोड़ पर, हर घंटे, हर मिनट। यह केवल कम पढ़े-लिखे लोगों तक सीमित नहीं है; पढ़े-लिखे, अमीर, गरीब — सब इसमें बराबर के भागीदार हैं। विडंबना यह है कि वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना भारतीय संविधान के अनुसार हमारा मौलिक कर्तव्य है, फिर भी समाज में इसके विपरीत चलन है।
बांझपन: दोष किसका?
इस वैज्ञानिक सोच की हत्या का सबसे बड़ा असर महिलाओं पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर एक महिला शादी के एक-दो साल बाद भी गर्भवती नहीं होती, तो लोग उसे “बांझ” (बांझ) कहना शुरू कर देते हैं। समय बीतने पर सारा दोष उसी पर मढ़ा जाता है — जैसे बच्चा न होना केवल महिला की समस्या है। परिवार वाले पति को दूसरी शादी करने की सलाह तक दे देते हैं।
लेकिन क्या विज्ञान भी यही कहता है?
बिलकुल नहीं।
विज्ञान क्या कहता है?
विज्ञान कहता है कि संतान न होना पुरुष और महिला — दोनों में से किसी की भी जैविक समस्या हो सकती है:
- 40% मामलों में कारण पुरुष से जुड़े होते हैं
- 40% मामलों में कारण महिला से जुड़े होते हैं
- 20% मामलों में कोई स्पष्ट कारण नहीं मिलता (जिसे मेडिकल भाषा में Idiopathic infertility कहा जाता है)
इसका अर्थ है कि समस्या कभी भी किसी एक के साथ नहीं जुड़ी होती — लेकिन दोष हमेशा महिला को ही क्यों दिया जाता है?
समाज की दोहरी मानसिकता
क्या आपने कभी सुना है कि कोई सास अपने बेटे को डॉक्टर के पास जांच कराने ले जाए? नहीं। समाज में यह धारणा है कि संतान न होना सिर्फ स्त्री की “कमज़ोरी” है। कई पुरुष, जिन्हें स्वयं समस्या होती है, दूसरी-तीसरी शादी कर बैठते हैं, लेकिन उन्हें कभी “बांझ” नहीं कहा जाता।
“बांझ” जैसे शब्द केवल महिलाओं के लिए क्यों?
हमें क्या करना चाहिए?
हमें “बांझ” जैसे अपमानजनक, लांछनकारी शब्दों को अपनी ज़ुबान और समाज की सोच से मिटा देना चाहिए। हर महिला और पुरुष को, जिनके संतान नहीं है, इस कलंक के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए।
समस्या को विज्ञान के दृष्टिकोण से समझना और तर्क के साथ उसका समाधान ढूंढ़ना ही वास्तविक वैज्ञानिक सोच है। यही दृष्टिकोण हमें एक संवेदनशील और जागरूक समाज की ओर ले जाएगा।
शब्दों से ज्यादा ज़रूरी है सोच।
और सोच वही वैज्ञानिक होनी चाहिए।