IIT Madras के निदेशक से लेकर IIT Baba तक खतरनाक ढंग से अंधविश्वास की गंगा बह रही है
वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Temper) का अर्थ है — हर बात को तर्क, प्रमाण और विवेक से परखना। कोई भी विश्वास या धारणा सिर्फ इसलिए नहीं माननी चाहिए कि वह पारंपरिक है, धार्मिक है या किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने कही है। संविधान के अनुसार, यह हर भारतीय नागरिक की मौलिक जिम्मेदारी है कि वह वैज्ञानिक सोच अपनाए और उसका प्रचार करे।
हम कहाँ चूक रहे हैं?
आज जब हम दुनिया की बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धियों की चर्चा करते हैं, तब यह देखना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की शीर्ष शैक्षणिक संस्थाओं के वरिष्ठ अधिकारी अंधविश्वास फैलाते नज़र आते हैं। उदाहरण के तौर पर, एक प्रमुख IIT के निदेशक ने हाल ही में यह बयान दिया कि:
“गाय का गोबर और गोमूत्र खाने या पीने से बीमारियां नहीं होतीं। यह एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल है।”
यह बयान एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दिया गया है जो देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक संस्थानों में से एक का नेतृत्व करता है। जब इस स्तर पर बैठे लोग ही विज्ञान की धज्जियाँ उड़ाएं, तो आम जनता से तर्क की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
गोमूत्र और गोबर: तथ्य बनाम भ्रांति
जहां एक तरफ वैज्ञानिक प्रमाण यह बताते हैं कि गोमूत्र और गोबर का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है, वहीं दूसरी ओर इनका महिमामंडन कर उसे औषधि की तरह प्रचारित किया जा रहा है। COVID-19 महामारी के समय ब्लैक फंगस जैसी घातक बीमारी का सीधा संबंध गोबर और उसके धुएं से देखा गया।
क्या यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण है?
संस्थानों की साख पर सवाल
आज IIT जैसे संस्थानों से उम्मीद की जाती है कि वे देश को वैज्ञानिक दिशा देंगे। लेकिन अगर वही संस्थान ‘IIT बाबा’ जैसे तमाशों में शामिल हो जाएं — जहां fancy dress में लोग बाबाओं की तरह मंच पर आते हैं, अपनी लतों को साधु-संस्कृति में ढाल देते हैं — तो यह विज्ञान की हत्या है, और हमारी सामूहिक विफलता भी।
क्या करना चाहिए हमें?
- सवाल पूछें।
जब भी कोई तर्कहीन या अंधविश्वासी बात सामने आए — चाहे वह कितनी ही बड़ी हस्ती द्वारा कही गई हो — उस पर सवाल उठाइए। - चुनौती दें।
किसी भी गैर-वैज्ञानिक सलाह, दावा या प्रवचन को चुनौती देना, हमारा संवैधानिक कर्तव्य है। - सोच को वैज्ञानिक बनाएं।
गोबर, गोमूत्र, और अन्य “चमत्कारी उपायों” को प्रामाणिक दवा के रूप में प्रचारित करना बंद कीजिए, और लोगों को विज्ञान आधारित स्वास्थ्य पद्धतियों से जोड़िए। - संस्थानों को जवाबदेह बनाइए।
IITs, IIMs, और अन्य शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वे प्रमाण, शोध और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर बोलें — न कि अंधविश्वास फैलाएं।
निष्कर्ष
अगर हम सच में वैज्ञानिक समाज बनना चाहते हैं, तो सिर्फ तकनीक या आधुनिक शिक्षा से नहीं होगा — उसके लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण ज़रूरी है।
हमें धर्म और संस्कृति के नाम पर फैलाए जा रहे अंधविश्वास को पहचानना और उससे टकराना सीखना होगा।
अंधश्रद्धा से विज्ञान की रक्षा कीजिए। वैज्ञानिक सोच को अपनाइए। आवाज़ उठाइए।