क्या आप भी उन लोगों में से हैं जो मानते हैं कि बेटा होना ज़रूरी है?
क्योंकि बेटा तो नाम रौशन करेगा, दहेज लाएगा, बुज़ुर्गों की सेवा करेगा?
और बेटी? वो तो “पराया धन” होती है – उसकी शादी करनी है, दहेज देना है…
हमारे समाज में आज भी यही सोच गहराई से बैठी है:
“बेटा हो तो लड्डू, बेटी हो तो मुंह लटकू!”
बेटा ज़रूरी क्यों?
कई परिवारों में जब पहला बच्चा बेटी होती है, तो लोग चुपचाप सह लेते हैं – क्योंकि उन्हें लगता है, अगला बेटा होगा। लेकिन जब दूसरी, तीसरी बार भी बेटी हो जाए, तो औरत को ताने दिए जाते हैं, उस पर दोष मढ़ा जाता है।
कुछ मामलों में पुरुष दूसरी शादी तक कर लेते हैं – सिर्फ बेटा पाने के लिए।
लेकिन क्या वाकई किसी औरत का हाथ होता है बेटी या बेटे को जन्म देने में?
लिंग निर्धारण: विज्ञान क्या कहता है?
जब पुरुष और स्त्री मिलते हैं, और निषेचन होता है, तब एक ज़ाइगोट (zygote) बनता है –
इसी ज़ाइगोट से भ्रूण (fetus) बनता है, और फिर शिशु।
अब ध्यान दें –
- महिला के अंडाणु (egg) में हमेशा X क्रोमोसोम होता है।
- पुरुष के शुक्राणु (sperm) में या तो X या Y क्रोमोसोम हो सकता है।
नतीजा?
- अगर पुरुष का X क्रोमोसोम वाला स्पर्म अंडाणु से मिलता है → XX = लड़की
- अगर Y क्रोमोसोम वाला स्पर्म मिलता है → XY = लड़का
इसका मतलब? लिंग का निर्धारण पुरुष के स्पर्म द्वारा होता है, न कि महिला द्वारा।
और इस पर न तो पुरुष का, न महिला का कोई नियंत्रण है। यह पूरी तरह से एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
फिर दोष सिर्फ औरत को क्यों?
जब बच्ची होती है, तो घर की औरतों – खासकर बहुओं – को ताने क्यों मिलते हैं?
जबकि वैज्ञानिक सच्चाई है कि बेटी या बेटा होना पुरुष के स्पर्म पर निर्भर करता है।
समाज, परंपराएं और धार्मिक मान्यताएँ बेटे को प्राथमिकता देती आई हैं –
लेकिन अब समय है इन्हें वैज्ञानिक सोच से चुनौती देने का।
सेक्स सेलेक्शन: एक गैरकानूनी और अमानवीय कृत्य
कुछ लोग बेटी नहीं चाहते, तो गर्भावस्था के दौरान लिंग परीक्षण कराते हैं।
अगर पता चलता है कि गर्भ में लड़की है, तो भ्रूण की हत्या कर दी जाती है।
इसे कहते हैं – Female Foeticide (स्त्री भ्रूण हत्या)।
यह पूरी तरह ग़ैरक़ानूनी और अपराध है।
लड़का-लड़की अनुपात की चिंता
जब समाज में लड़कों की संख्या लड़कियों से बहुत ज्यादा हो जाती है, तो इसके गंभीर परिणाम होते हैं –
- लड़कियों की तस्करी
- बढ़ते बलात्कार
- सामाजिक असंतुलन
अगर हर कोई “चार-चार लड़के पैदा करो” की राजनीति में फंसा रहेगा,
तो समाज में लड़कियों की कमी और असमानता और बढ़ेगी।
समाप्ति: अब बदलाव ज़रूरी है
- लड़की और लड़का एक समान हैं।
- किसी भी माँ को बेटी पैदा करने पर दोष देना अन्याय और अज्ञानता है।
- यह जानकारी हर औरत, हर सास, हर आदमी तक पहुँचना चाहिए।
- ताकि ताने नहीं, सम्मान मिले – हर बेटी को, हर माँ को।
✊ आइए, इस वैज्ञानिक सच्चाई को फैलाएं।
✊ और एक ऐसा समाज बनाएं जहाँ बेटा-बेटी में कोई भेद न हो।