राहुल गांधी पर हमले और सत्ता के टूलकिट की बेशर्मी
राहुल गांधी—कांग्रेस के नेता और वर्तमान में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष—एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के निशाने पर हैं। भाजपा ने उन पर यह कह कर हमला बोला है कि वह “देश की नहीं, पाकिस्तान की भाषा” बोल रहे हैं। इसके लिए बाकायदा एक टूलकिट जारी किया गया है, जो बताता है कि भाजपा और उसके समर्थक राहुल गांधी की बातों को कैसे तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करें।
यह टूलकिट वाकई दिलचस्प है। अगर आप बहुत दुखी या उदास हैं तो एक बार रिपब्लिक टीवी पर अर्णब गोस्वामी को देख लीजिए। वहां आपको वह तमाशा मिलेगा, जिसमें भक्तगण पूरी ताक़त से इस टूलकिट को लागू करते हैं—बेवकूफी की भी हद होती है।
सुधीर चौधरी और ‘डीकोडिंग’ का मज़ाक
दूरदर्शन पर सुधीर चौधरी का आगमन भी चर्चा में है। करोड़ों रुपये के पैकेज के तहत DD News ने उन्हें ‘डीकोडिंग न्यूज’ नाम के कार्यक्रम के लिए हायर किया, लेकिन पहले ही एपिसोड में उन्होंने एक पुराना वीडियो—चार साल पुराना इजरायल का वीडियो—पेश कर दिया। जिसे वे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ बता रहे थे, वह दरअसल फर्जी था। गलती हो सकती है, मान लेते हैं। परंतु गलती जब सिस्टमेटिक हो जाए, तो वह एजेंडा बन जाती है।
टूलकिट की ऊँचाइयाँ: अर्णब गोस्वामी और अमित मालवीय
अमित मालवीय—भाजपा आईटी सेल के मुखिया—और अर्णब गोस्वामी, ये दो नाम फेक न्यूज़ के स्रोतों की सूची में शीर्ष पर हैं। अमित मालवीय का ट्वीट, जिसमें उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस का टर्की में दफ्तर है, उसी टूलकिट का हिस्सा था। अर्णब गोस्वामी ने भी वही बात अपने शो में दोहराई, बिना कोई तथ्य जांचे।
क्या पत्रकारिता इतनी सस्ती हो गई है कि कोई भी बात माइक पर उछाल दो और वह ‘नेशनल नरेटिव’ बन जाए?
पाकिस्तान को पहले सूचित किया गया?
इस सब विवाद की जड़ में एक बयान है—विदेश मंत्री एस. जयशंकर का। उन्होंने सार्वजनिक मंच से कहा कि भारत ने पाकिस्तान को पहले ही सूचित किया था कि हम केवल आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाएंगे, सैन्य या नागरिक ठिकानों को नहीं। इस बयान को राहुल गांधी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किया और पूछा कि क्या यह डिप्लोमैटिक विफलता नहीं है?
राहुल गांधी ने सवाल किया—अगर पाकिस्तान को पहले ही बता दिया गया था, तो क्या इस कारण भारत को नुकसान नहीं हुआ? क्या इस ऑपरेशन में हमने एयरक्राफ्ट गंवाए? और अगर ऐसा है, तो राष्ट्र को यह जानने का हक है।
राहुल के सवाल और भाजपा की बौखलाहट
पवन खेड़ा ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यही बयान पढ़ा और सवाल उठाया कि क्या यह सरकार की गुप्तचर विफलता नहीं है? राहुल गांधी के इन सवालों से भाजपा बौखला गई और उन्हें ‘पाकिस्तान की भाषा बोलने वाला’ बताने लगी। लेकिन सवाल तो फिर वही है—क्या जयशंकर ने गलत नहीं कहा था? और अगर कहा था, तो स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया?
कांग्रेस नेता विक्रम मिस्री ने साफ कहा कि पाकिस्तान को कोई सूचना नहीं दी गई थी। तो फिर जयशंकर का बयान क्या था?
विपक्षी नेताओं की उपेक्षा और ‘ऑल पार्टी डेलिगेशन’ की नौटंकी
इसी दौरान, सरकार ने एक ‘ऑल पार्टी डेलिगेशन’ गठित किया, जिसे विदेशों में भेजा जाना है। लेकिन ममता बनर्जी की पार्टी TMC ने इसका बहिष्कार किया। उन्होंने कहा कि पार्टी से कौन जाएगा, यह केंद्र तय नहीं कर सकता। यही बात CPI महासचिव डी. राजा ने भी उठाई—यह पूरी प्रक्रिया अपारदर्शी है।
क्या यह वही सरकार नहीं है जो ऑल पार्टी मीटिंग तक बुलाने से कतराती है? जो संसद को तकरीर के लायक नहीं समझती, लेकिन विदेशों में चेहरा चमकाने के लिए विपक्ष की ज़रूरत पड़ती है?
और फिर, इस डेलीगेशन में उन सांसदों को भी भेजा जा रहा है जो संसद में मुस्लिम सांसदों के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कर चुके हैं। रमेश बिधूड़ी और निशिकांत दुबे जैसे चेहरों को देश का प्रतिनिधि बनाकर विदेश भेजा जा रहा है। क्या यह भारतीय राजनीति का प्रतिनिधित्व है?
‘मुकबिरी’ का इतिहास और वर्तमान
पवन खेड़ा ने यह भी याद दिलाया कि इतिहास में भारत के नेताओं द्वारा की गई ग़लतियां किस तरह महंगी पड़ी हैं। मोरारजी देसाई का उदाहरण दिया गया—जिन्होंने पाकिस्तानी राष्ट्रपति जिया उल हक को भारतीय खुफिया एजेंसी की जानकारी लीक कर दी थी, जिसके बाद दर्जनों भारतीय एजेंट पाकिस्तान में मारे गए या लापता हो गए।
मोरारजी देसाई को पाकिस्तान ने ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ से नवाजा। क्या यह सम्मान था या ‘इनाम’?
आज जब जयशंकर का बयान पाकिस्तान को चेतावनी देने वाला प्रतीत होता है, तब यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या सरकार भी किसी पुराने इतिहास को दोहरा रही है?
निष्कर्ष: जब सच्चाई चुभती है
राहुल गांधी और पवन खेड़ा के सवाल सटीक हैं, ठोस हैं, और आंकड़ों व तर्कों से लैस हैं। इसी कारण सत्ता तिलमिला रही है। भाजपा यह बताने की कोशिश कर रही है कि सवाल पूछना ही राष्ट्रविरोध है। लेकिन असली राष्ट्रवाद यह है कि सत्ता से जवाबदेही की मांग की जाए।
आज जनता जानना चाहती है:
- ऑपरेशन में क्या हुआ था?
- क्या पाकिस्तान को सूचना दी गई थी?
- जयशंकर ने जो कहा, क्या वह सरकार की आधिकारिक लाइन है?
- और अगर नहीं, तो सरकार चुप क्यों है?
ये सवाल हैं, इनका जवाब आना चाहिए। जवाब अब भी नहीं आए, तो देश को एक बार फिर कीमत चुकानी पड़ सकती है।