कांग्रेस नेता के एक डायलॉग से क्यों हिल गई बीजेपी?
“ट्रंप का फोन आया और नरेंदर सरेंडर हो गए।” — मध्यप्रदेश के भोपाल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जैसे ही ये वाक्य बोला, भारतीय राजनीति में मानो बिजली दौड़ गई। सोशल मीडिया से लेकर टीवी स्टूडियो तक, एक ही वाक्य ने बहस, बहाव और बवाल को जन्म दे दिया है।
राहुल गांधी का ये संवाद केवल एक व्यंग्य नहीं था — ये बीजेपी, नरेंद्र मोदी, आरएसएस और यहां तक कि कांग्रेस के अपने ढांचे पर भी एक तीखा हमला था।
ऑपरेशन सिंदूर और 10 मई का ‘सीज़फायर’
राहुल गांधी का यह बयान उस संदर्भ में आया जब 10 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम से एक सैन्य ऑपरेशन अचानक रोक दिया गया और एक रात में सीज़फायर की घोषणा हुई। राहुल गांधी ने इस पर सीधा सवाल दागा — क्या अमेरिका के दबाव में यह सीज़फायर हुआ? और क्या प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प के कहने पर “सरेंडर” कर दिया?
उनकी बात को बल मिलता है ट्रंप के पुराने बयानों से, जिनमें वो बार-बार दावा कर चुके हैं कि भारत-पाक सीज़फायर में उनका हाथ है, और उन्होंने इसे एक ट्रेड डील के बदले में करवाया था।
सावरकर से लेकर 1971 तक की तुलना
राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए बीजेपी की वैचारिक जड़ों को भी खंगाल डाला। उन्होंने कहा, “बीजेपी और आरएसएस के डीएनए में माफ़ीनामा और सरेंडर है।” साथ ही 1971 की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तुलना मोदी से करते हुए उन्होंने कहा कि जब अमेरिका का सातवां बेड़ा हिंद महासागर में आया था, तब इंदिरा गांधी ने डटकर कहा था, “जो करना है करो, मैं पीछे नहीं हटूंगी।”
जब अपनी पार्टी को भी नहीं बख्शा
राहुल गांधी यहीं नहीं रुके। उन्होंने अपनी पार्टी कांग्रेस पर भी तीखा कटाक्ष किया — “पार्टी में दो नहीं अब तीन तरह के घोड़े हो गए हैं — एक जो लड़ने को तैयार हैं, दूसरे जो थक चुके हैं, और तीसरे जो छुपकर बीजेपी के लिए बैटिंग कर रहे हैं।” इस बयान को पार्टी के भीतर चल रहे खींचतान और कथित ‘अंदरूनी भाजपा समर्थकों’ पर राहुल गांधी की सीधी प्रतिक्रिया माना जा रहा है।
बीजेपी का जवाब: बौखलाहट और पुराना स्क्रिप्ट
बीजेपी की ओर से शहज़ाद पूनावाला और संबित पात्रा जैसे प्रवक्ताओं को उतारा गया, जिन्होंने इसे “देश का अपमान”, “पाकिस्तानी प्रपगैंडा”, और “राजनीतिक अपरिपक्वता” बताया। लेकिन जानकारों का कहना है कि इस बार बचाव में आई टीम कमजोर और थकी हुई नज़र आई। कई बड़े नाम जैसे अमित मालवी या गोदी मीडिया की प्रमुख मंडली अब तक चुप्पी साधे हुए हैं।
मीडिया की चुप्पी और सोशल मीडिया की आग
टाइम्स ऑफ इंडिया से लेकर इंडियन एक्सप्रेस तक — ज्यादातर अख़बारों ने राहुल के इस पंच लाइन “नरेंदर सरेंडर” को या तो गायब कर दिया, या बेहद ढके-छुपे ढंग से छापा। वहीं सोशल मीडिया पर इस संवाद ने तूफान ला दिया — ट्विटर पर #NarenderSurrender ट्रेंड करता रहा।
G7 से बाहर, ट्रंप से व्यापार, और चुप्पी का जवाब?
लेख का अंतिम सवाल यही है — जब अमेरिका मोदी सरकार के साथ की गई ट्रेड डील की घोषणा करता है, जब सीज़फायर की तारीखें अमेरिकी ब्यौरों से मिलती हैं, और जब ट्रंप खुलेआम कहते हैं कि उन्होंने भारत-पाक शांति करवाई, तब भारत के प्रधानमंत्री संसद को, जनता को और देश को जवाब क्यों नहीं देते?
राहुल गांधी का यह डायलॉग एक तीर से कई निशाने लगाता है — सत्ता, विचारधारा, चुप्पी और आत्मसमर्पण के खिलाफ एक करारा हमला। यह डायलॉग एक नई राजनीतिक भाषा का संकेत भी हो सकता है — जहां सीधेपन, व्यंग्य और चुनौती एक साथ हो।