क्या बिहार में वोट चोरी से चुनाव आयोग BJP को जिता रहा है?
“हमारे पास Atom Bomb है। अगर ये फूटा, तो चुनाव आयोग कहीं नहीं दिखाई देगा।” — राहुल गांधी के इस बयान ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया है। बिहार में मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम कटने की घटना ने न केवल चुनाव आयोग की साख पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर ही गहरे शक के बादल मंडरा रहे हैं।
क्या हो रहा है बिहार में?
बिहार, जहां वोटरों की संख्या घट रही है, देश का इकलौता राज्य बन गया है। जनवरी 2025 में 7.9 करोड़ मतदाता थे, लेकिन एक महीने चले स्पेशल इन्टेन्सिव रिवीजन (SIR) के बाद यह संख्या घटकर 7.2 करोड़ हो गई है। यानी सिर्फ एक रिवीजन के बाद 65.6 लाख मतदाता सूची से गायब कर दिए गए। कांग्रेस, CPI-ML और अन्य विपक्षी दल इसे “वोट डिलीशन प्रोग्राम” कह रहे हैं — और वो भी बहुत खास समुदायों के खिलाफ।
किसे निशाना बनाया गया है?
अगर आप हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया जैसी मुख्यधारा की मीडिया की रिपोर्टिंग देखें, तो साफ़ है कि मुस्लिम बहुल ज़िलों में सबसे अधिक नाम हटाए गए हैं।
उदाहरण के लिए:
- किशनगंज: 11.8% वोट घटे
- पूर्णिया: 12.1%
- अररिया, कटिहार, भागलपुर, गोपालगंज — सभी मुस्लिम या दलित बहुल इलाके हैं
किशनगंज बिहार का एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला है और यहां से बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए हैं। यह दावा किया जा रहा है कि यहां “बांग्लादेशी घुसपैठिए” हैं — एक पुरानी संघी थ्योरी जिसे वोटर डिलीशन का आधार बना दिया गया है।
राहुल गांधी का आरोप: “हम नहीं छोड़ेंगे”
राहुल गांधी ने साफ शब्दों में कहा है कि कांग्रेस के पास पूरे सबूत हैं, किस सीट पर कितनी वोटिंग हुई, किस ज़िले में कब वोट घटे और कैसे डिलीशन हुआ। उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए सवाल उठाया कि वहां पिछले 6 महीनों में 1 करोड़ नए मतदाता जुड़ गए, लेकिन बिहार में उसी अवधि में लाखों घटा दिए गए। क्यों?
उन्होंने यह भी मांग की कि CCT कैमरों की फुटेज जारी की जाए ताकि यह साबित हो सके कि वोटर बढ़ाने या घटाने की प्रक्रिया में कोई धांधली नहीं हुई।
विपक्ष का खुला हमला
CPI-ML सांसद राजाराम सिंह और सुदामा प्रसाद ने भी आरोप लगाया है कि “यह मुस्लिमों और दलितों को चुनाव से बाहर करने की एक सोची-समझी साजिश है।” पार्टियों ने यह भी कहा कि कई जगहों पर ट्रैक्टर, मृतक लोगों और पालतू जानवरों के नाम भी वोटर लिस्ट में हैं — और असली नागरिक बाहर हैं।
क्या है चुनाव आयोग की भूमिका?
चुनाव आयोग इस पूरी प्रक्रिया में न केवल असंवेदनशील दिखाई दे रहा है, बल्कि पूरी तरह से पक्षपाती भी। न तो कोई स्पष्टीकरण, न ही पारदर्शिता। ना ही आयोग इस बात का जवाब दे रहा है कि किस आधार पर इतने बड़े स्तर पर वोटरों के नाम काटे गए।
यह सिर्फ बिहार की कहानी नहीं है
अगर आज बिहार में यह हो रहा है, तो कल यह देश के अन्य राज्यों में होगा। वोटर डिलीशन, डेमोग्राफिक इंजीनियरिंग, मुस्लिम और दलित समुदायों का फ्रेंचाइज़ से वंचित किया जाना — यह एक सुनियोजित लोकतंत्र-विरोधी रणनीति बनती जा रही है।
और ऐसे में राहुल गांधी का ‘Atom Bomb’ सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा की एक चेतावनी भी है।