एक चुटकी सिंदूर की क़ीमत वसूलने देशभर में घूमेंगे BJP के योद्धा
“एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू” – ये डायलॉग ओम शांति ओम से निकलकर अब भारतीय राजनीति की गली-गली गूंज रहा है। और इसे गूंजाने वाली कोई और नहीं, बल्कि खुद भारतीय जनता पार्टी है, जो अब इसे राष्ट्रवाद के सिंदूर में रंगकर हर घर में भेजने की तैयारी में है।
बीजेपी के लिए सिंदूर अब सुहाग की निशानी नहीं, बल्कि सियासत की रणनीति बन चुका है। ओपरेशन सिंदूर के बहाने जो राजनैतिक मोर्चेबंदी हो रही है, वह बताती है कि बीजेपी सिर्फ एक चुटकी नहीं, पूरी डिब्बी वसूलने के मूड में है—100% कीमत के साथ।
बीजेपी का “हर घर सिंदूर” अभियान
9 जून से बीजेपी एक महीने तक हर घर जाएगी, और महिलाओं को “उपहार” स्वरूप सिंदूर देगी। इसमें सभी मंत्री और सांसद रोज 15-20 किलोमीटर की पदयात्रा करेंगे। हर दरवाज़े पर खटखटाकर, हर महिला को सिंदूर थमाकर बीजेपी यह संदेश देगी – “सिंदूर की कीमत सिर्फ हम जानते हैं।”
अब सवाल यह है कि क्या यह वाकई एक सैन्य अभियान का सम्मान है या उसका राजनीतिक दोहन?
धर्म, प्रचार और फिल्मी डायलॉग का कॉकटेल
गृह मंत्री अमित शाह कह रहे हैं – “जो लोग एक चुटकी सिंदूर की कीमत नहीं जानते थे, उन्हें ऑपरेशन सिंदूर ने सिखा दिया।”
क्या यह बयान एक गंभीर आतंकवादी हमले के बाद आया हुआ जिम्मेदार स्टेटमेंट है या फिर एक स्क्रिप्टेड डायलॉग जो किसी प्रोपेगेंडा फिल्म से सीधे निकाला गया लगता है?
सवाल है – पहलगांव आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री ने क्यों नहीं शोक-संतप्त परिवारों से मुलाकात की? क्यों वे सीधे बिहार और फिर गुजरात चले गए? क्यों अमित शाह और केंद्र सरकार अब तक यह नहीं बता पाए कि हमलावर कौन थे और कहां से आए?
जब सैन्य ऑपरेशन से सियासी सेल्फी ली जाती है
बीजेपी के पोस्टर्स अब खुलेआम बता रहे हैं कि “ऑपरेशन सिंदूर” उनकी लोकप्रियता के ग्राफ को ऊपर ले गया। इस ऑपरेशन को चुनावी लाभ में तब्दील करने की कोशिश हर सभा, हर भाषण, हर घर तक पहुंचाई जा रही है।
क्या यह सैन्य बलों का अपमान नहीं कि उनकी कार्रवाई को एक राजनीतिक प्रचार की सामग्री बना दिया जाए?
औरतें, सिंदूर और राजनीतिक पाखंड
बीजेपी मानकर चल रही है कि हर हिंदू महिला सिंदूर लगाती है। लेकिन सच तो यह है कि:
- हर महिला सिंदूर नहीं लगाती,
- सिंदूर एक व्यक्तिगत धार्मिक परंपरा है,
- और इस देश में हर धर्म, जाति, परंपरा के लोग रहते हैं।
यह ‘हर घर सिंदूर’ अभियान, इस विविधता पर एक समानता का भगवा रंग थोपने जैसा नहीं तो और क्या है?
बीजेपी की राजनीति: मौत पर भी मार्केटिंग
पहले पुलवामा, फिर बाला कोट, और अब पहलगांव के जवाब में चलाया गया ऑपरेशन सिंदूर—हर बार मौत को वोट में बदला गया।
रोज़ सवाल पूछने वालों को चुप कराने के लिए “पॉलिटिक्स मत करो” कहा जाता है, लेकिन खुद बीजेपी हर मौके को वोट बैंक की राजनीति में तब्दील कर देती है।
क्या यही “सिंदूर की कीमत” है?
देश के गृह मंत्री कहते हैं – “हमने उन्हें सिंदूर की कीमत सिखाई।” लेकिन यह सवाल कौन पूछेगा:
- आतंकवादी पहलगाम में कैसे घुसे?
- हमले के बाद 30 दिन बीत गए, आरोपी कहां हैं?
- मृतकों के परिवारों से मिलना जरूरी नहीं था क्या?
निष्कर्ष: सिंदूर की राजनीति से सुरक्षा की शर्मनाक चुप्पी तक
जब सैनिकों की शहादत पर पोस्टर बनते हैं, जब आतंकवादी हमले के जवाब को पार्टी प्रचार बना दिया जाता है, जब एक धार्मिक प्रतीक को वोटिंग स्ट्रेटेजी बना दिया जाता है, तो यह सवाल पूछना जरूरी है:
“क्या सरकार जवाब देगी या अगला स्लोगन देगी?”