एक देश एक चुनाव, यानी चुनाव सरकार की जेब में
भारत में इन दिनों तीन नारों की गूंज तेज है – एक देश एक चुनाव, एक राष्ट्र श्रेष्ठ राष्ट्र, और दा हिंदू राष्ट्र। देखने में ये तीन अलग नारे लगते हैं, परंतु इनका गहरा संबंध है। जुलाई 2025 में जब संसद की स्थायी समिति में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ बिल पर चर्चा हो रही थी, उस समय चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने जो टिप्पणियां कीं, वह लोकतंत्र के लिए गंभीर चेतावनी थीं।
पूर्व चीफ जस्टिसों की चेतावनी
चारों पूर्व मुख्य न्यायाधीश – जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस खेहर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस यू यू ललित ने स्पष्ट कहा कि इस पूरे बिल में चुनाव आयोग को ‘अकूत शक्ति’ दी जा रही है। यानी चुनाव आयोग इतना शक्तिशाली हो जाएगा कि राज्यों के चुनाव कब हों, किसकी सरकार कब गिरे, यह सब उसके हाथ में होगा।
- जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान में इसकी मनाही नहीं है, लेकिन वर्तमान हालात में चुनाव आयोग पर जनता का भरोसा न के बराबर है।
- जस्टिस खेहर और गोगोई ने कहा कि इससे चुनाव आयोग लोकतंत्र का ‘सुपरबॉस’ बन जाएगा, जो खतरनाक होगा।
चुनाव आयोग पर विश्वास क्यों टूटा?
पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखा कि मोदी शासन में चुनाव आयोग एक जेबी संस्था बन गया है। बिहार में Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया से दो करोड़ से अधिक वोटरों को हटाने की तैयारी हो रही है। चुनाव आयोग ने खुद कहा कि “अगर पहले बता देते तो बिहारी बहुत चालाक होते, सारे डॉक्यूमेंट बना लेते।” यह बयान बताता है कि आयोग का उद्देश्य exclusion है न कि inclusion।
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन का असली उद्देश्य?
- लोकतंत्र पर केंद्रीकृत नियंत्रण – राज्य सरकारों की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी।
- विपक्ष का कमजोर पड़ना – क्षेत्रीय दल और गैर-भाजपा राज्य सरकारें असुरक्षित महसूस करेंगी।
- मोदी मॉडल का स्थायीकरण – चुनावी खर्च बचाने का तर्क झूठा है। असल में उद्देश्य है कि एक ही चुनावी रैली, एक ही बार प्रचार, और बहुसंख्यकवादी ध्रुवीकरण से हर स्तर की सत्ता पर कब्जा सुनिश्चित हो।
राहुल गांधी का सवाल
राहुल गांधी ने पूछा – “एक ही राज्य में छह महीने में लाखों वोटर कैसे बढ़ गए? यह लोकतंत्र का कौन सा मॉडल है?” बिहार में वोटर लिस्ट से दो करोड़ नाम हटाने की तैयारी और पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्यों में भी SIR लागू करने की चर्चा है।
संविधान और संघीय ढांचे पर खतरा
भारत एक संघीय लोकतंत्र है। राज्य सरकारों का कार्यकाल अलग-अलग समय पर समाप्त होता है। अगर सभी चुनाव एकसाथ होंगे, तो इसका अर्थ है – राज्यों की सरकारें भी केंद्र के इशारे पर गिरेंगी और बनेंगी। यानी संविधान का संघीय ढांचा टूट जाएगा।
क्या कहते हैं संविधान निर्माता?
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने कहा था – “जनता ही लोकतंत्र का माई बाप है। सरकार जनता को नहीं चुनती, जनता सरकार चुनती है।” लेकिन वन नेशन वन इलेक्शन में चुनाव आयोग ही तय करेगा कि कब, कहां, किसकी सरकार बनेगी और कितने समय के लिए।
निष्कर्ष
वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव ने लोकतंत्र को गहरे संकट में डाल दिया है। जब चुनाव आयोग की साख न्यूनतम स्तर पर हो, तब उसे ‘सुपरबॉस’ बनाने का प्रस्ताव लोकतंत्र की हत्या के समान है।