लोकतंत्र से ध्यान भटकाने की साज़िश: ‘विदेशियों’ के नैरेटिव से वोटबंदी पर पर्दा
बिहार की राजनीति में इन दिनों एक नया ‘खेला’ शुरू हो गया है। चुनाव आयोग की विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया (SIR) के दौरान एक नया नैरेटिव गढ़ा जा रहा है – कि बिहार की वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार के लोग मौजूद हैं।
तेजस्वी यादव ने इस ‘सूत्रों’ से आ रही खबरों को खारिज करते हुए उन्हें ‘मूत्र’ करार दिया। उनका कहना था कि यह सूत्र नहीं, बल्कि ‘विसर्जन’ कर रहे हैं। तेजस्वी ने तंज कसते हुए कहा कि जो लोग पाकिस्तान, कराची, इस्लामाबाद पर ‘सूत्र’ चलाते हैं, वही अब बिहार में विदेशी घुसपैठ की कहानी सुना रहे हैं।
क्या है मामला?
- SIR प्रक्रिया के बीच प्रचार – वोटर लिस्ट से 2 करोड़ लोगों के नाम हटाए जाने की आशंका के बीच अचानक मीडिया में खबरें चलने लगीं कि बिहार की वोटर लिस्ट में नेपाली, बांग्लादेशी और म्यांमार के लोग घुसे हुए हैं।
- बीएलओ का जवाब – ग्राउंड रिपोर्ट में बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) ने कैमरे पर कहा कि “हमें कोई बांग्लादेशी, नेपाली, म्यांमार का नहीं मिला।”
- विपक्ष का आरोप – तेजस्वी यादव और भाकपा-माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि यह सब लोकतंत्र पर हमले से ध्यान भटकाने की साजिश है। जो लोग 2024 के लोकसभा चुनाव तक वैध थे, वे 2025 में अचानक विदेशी कैसे हो गए?
SIR और वोटबंदी का कनेक्शन
बिहार में 25 जून से SIR प्रक्रिया शुरू हुई।
- इसमें 11 दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जिसमें जन्म प्रमाण पत्र से लेकर माता-पिता के जन्म का प्रमाण भी शामिल है।
- गरीब, दलित, मुसलमान, महिला मतदाताओं के नाम कटने का खतरा बढ़ गया है।
- विपक्ष ने इसे वोटबंदी करार दिया।
- अब इस पूरी बहस को विदेशी घुसपैठिया नैरेटिव से भटकाया जा रहा है।
‘Dirty Game’ का आरोप
तेजस्वी यादव ने कहा:
“यह Dirty Game है। जब भी बीजेपी चुनाव हारती दिखती है, वह Voter Exclusion को Justify करने के लिए ऐसे फेक नैरेटिव खड़े करती है।”
भाकपा माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने भी कहा:
“अगर वाकई इतने विदेशी बिहार में हैं तो 11 साल से सत्ता में रहने वाली मोदी सरकार की नाकामी है। लेकिन हकीकत यह है कि यह Fake News है, ताकि SIR के असली मुद्दे से ध्यान हटाया जाए।”
हिंदु अखबार की रिपोर्ट और पत्रकारों की चिंता
हिंदु अखबार में छपी रिपोर्ट में दावा किया गया कि बिहार की वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार के लोग हैं। लेकिन रिपोर्टर ने BLO से पूछा तो उन्हें कोई सबूत नहीं मिला।
- सीनियर पत्रकारों ने चेताया कि ऐसी रिपोर्टिंग लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
- यह सीधे तौर पर सामाजिक ध्रुवीकरण और वोटर सप्रेशन (दबाव) की राजनीति को मजबूत करता है।
क्या है क्रोनोलॉजी?
- 2024 लोकसभा चुनाव – वोटर लिस्ट ठीक थी, विपक्ष चुप रहा।
- 2025 विधानसभा चुनाव से पहले – अचानक वोटर लिस्ट रिवीजन में करोड़ों के नाम कटने की प्रक्रिया शुरू।
- सवाल उठे – तो ‘विदेशी वोटर’ का नैरेटिव लाकर लोगों के बीच डर फैलाया गया।
विपक्ष का सवाल
- अगर 2024 तक वोटर लिस्ट ठीक थी, तो 2025 में यह नकली कैसे हो गई?
- किसका फायदा होगा, जब करोड़ों गरीब, प्रवासी, दलित, महिला वोटरों के नाम काट दिए जाएंगे?
🗣 निष्कर्ष
यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि कैसे चुनाव आयोग, सरकार और सत्ता समर्थक मीडिया लोकतंत्र पर हमले से ध्यान हटाने के लिए ‘विदेशी’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। बिहार में SIR यानी वोटबंदी के असली सवाल पर बहस दबाने की यह कोशिश है। लेकिन लोग अब जान चुके हैं कि लोकतंत्र के साथ इस खेला के पीछे असली मकसद क्या है।