July 10, 2025 8:42 am
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मजदूरों और किसानों की एकजुट हुंकार

9 जुलाई 2025 को देशव्यापी आम हड़ताल का आह्वान किया गया है। जानें मजदूरों-किसानों की प्रमुख मांगें, शामिल यूनियनें और इस हड़ताल का राजनीतिक-सामाजिक असर।

बिहार में वोटबंदी, मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के विरोध में आम हड़ताल से क्या पड़ेगा असर

9 जुलाई 2025 का दिन भारत के इतिहास में एक खास दिन बनने जा रहा है। इस दिन कोई त्योहार नहीं, बल्कि देशव्यापी आम हड़ताल है। आप पूछेंगे – हड़ताल? किसलिए? कौन कर रहा है? और क्यों?

हड़ताल क्यों हो रही है?

यह हड़ताल केंद्र की मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ है, खासकर चार लेबर कोड (श्रम संहिताएं) के विरोध में। मजदूर वर्ग का मानना है कि यह कोड उनके हितों के नाम पर लाए गए, लेकिन असल में कॉर्पोरेट मालिकों के हित साधने के लिए हैं।

कौन-कौन है इस हड़ताल में शामिल?

👉 केंद्रिय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच
👉 10 प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियन
👉 स्वतंत्र महासंघ और संगठन
👉 सयुंक्त किसान मोर्चा और ऑल इंडिया किसान सभा
👉 बैंक, बीमा, बिजली, सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी
👉 गिग वर्कर, सिविल सोसाइटी और वामपंथी राजनीतिक दल

विशेषकर बिजली क्षेत्र के 27 लाख कर्मचारी भी इस हड़ताल का हिस्सा होंगे, जिससे इसे ऐतिहासिक हड़ताल माना जा रहा है। बिहार में ‘वोटबंदी’ के खिलाफ भी इसी दिन जोरदार प्रदर्शन और चक्का जाम का आह्वान किया गया है।

हड़ताल की प्रमुख मांगे

चारों श्रम संहिताएं रद्द हों
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये मासिक तय किया जाए
ठेकाकरण की व्यवस्था खत्म हो
न्यूनतम पेंशन 9,000 रुपये मासिक सुनिश्चित हो
सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा – घरेलू कामगार, निर्माण मजदूर, प्रवासी श्रमिक, गिग वर्कर आदि
नई पेंशन योजना (NPS) समाप्त कर पुरानी पेंशन योजना लागू हो
बोनस और PF पात्रता की सीमाएं हटें, ग्रेच्युटी राशि बढ़े
महंगाई पर नियंत्रण, पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस पर एक्साइज ड्यूटी घटे
PDS सार्वभौमिक हो, MSP पर C2+50% की कानूनी गारंटी मिले
शहरी रोजगार गारंटी कानून लागू हो, मनरेगा में 200 दिन और 600 रुपये रोज़ की मजदूरी तय हो
सभी के लिए मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास का अधिकार सुनिश्चित हो
निजीकरण पर रोक लगे
अमीरों पर वैल्थ टैक्स और उत्तराधिकार टैक्स लागू हो
संविधान के मूल्यों – अभिव्यक्ति की आजादी, धार्मिक स्वतंत्रता, समानता पर हो रहे हमले रोके जाएं

इस हड़ताल को किसका समर्थन?

📝 CPI, CPIM, CPIML (Liberation), RSP और Forward Bloc जैसे प्रमुख वामपंथी दलों ने इसे मजदूर-किसान एकता का प्रतीक बताया है।
📝 सयुंक्त किसान मोर्चा और कृषि मजदूर संगठन भी साथ हैं।
📝 बिहार में भाकपा-माले ने वोटबंदी का मुद्दा जोड़ कर चक्का जाम का आह्वान किया है।

हड़ताल का असर

यह हड़ताल 20 मई को प्रस्तावित थी लेकिन पहलगाम आतंकी हमले और भारत-पाक तनाव के चलते स्थगित कर 9 जुलाई को रखा गया। इस हड़ताल में मजदूरों के साथ किसान, गिग वर्कर, सफेद कॉलर कर्मचारी और लोअर-मिडिल क्लास भी शामिल हैं, यानी यह पूरे भारत का स्वर बन रही है।

मीडिया की चुप्पी क्यों?

कॉर्पोरेट मीडिया इस पर या तो चुप है या इसे केवल ट्रैफिक जाम, फैक्ट्री बंद और आर्थिक नुकसान के तौर पर दिखाएगा। लेकिन यह सवाल नहीं उठाएगा कि मजदूरों-किसानों की मांगें क्या हैं और क्यों जायज हैं?

निष्कर्ष

9 जुलाई की आम हड़ताल, मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ मजदूर-किसान वर्ग की बड़ी हुंकार है। यह उनके सिर्फ हक की लड़ाई नहीं, बल्कि संविधान, लोकतंत्र और समानता के मूल्यों की भी लड़ाई है। सवाल है – क्या देश इस आवाज को सुनेगा?

मुकुल सरल

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