कोयला से लेकर बॉक्साइट तक के खजाने को लूटने की अंधी दौड़ लगी है, सुधीर पटनायक से विशेष बातचीत
ओडिशा के भुवनेश्वर में एक पत्रकार से मिलना सिर्फ खबर जानने की प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि यह समझने की कोशिश भी थी कि कौन सी खबरें दिल्ली-मुंबई की मीडिया की नजरों से गायब रहती हैं। समदृष्टि पत्रिका के संपादक सुधीर पटनायक से बातचीत में यह स्पष्ट हुआ कि ओडिशा में विकास के नाम पर माइनिंग, विस्थापन और प्रदूषण ने आम लोगों के जीवन को किस हद तक प्रभावित किया है।
समदृष्टि का सफर
सुधीर पटनायक बताते हैं, “समदृष्टि 2005 से प्रकाशित हो रही है। 2006 में इसका औपचारिक पंजीकरण हुआ। इसका उद्देश्य था ओडिशा के उन सवालों को उठाना जिन्हें कोई नहीं उठाता।”
सवालों की लंबी सूची
2025 में ओडिशा की राजनीति बदल चुकी है। नवीन पटनायक की जगह अब भाजपा की सरकार है। पूछने पर कि इस बदलाव से क्या फर्क पड़ा, सुधीर पटनायक का जवाब था:
“अगर 2000 में आए थे, तो देखते कि क्या स्थिति थी। अब आपको बढ़िया बिल्डिंग, रोड, लाइट्स दिखेंगी। लेकिन जो नहीं दिखता, उसकी स्थिति नहीं बदली। गरीबों की हालत वही है, बल्कि बदतर हुई है।”
माइनिंग – विकास या विनाश?
ओडिशा के कई जिलों में माइनिंग ने ज़िंदगी को जहरीला बना दिया है। सुधीर पटनायक बताते हैं:
“माइनिंग का मुद्दा अभी तक आम लोगों का मुद्दा नहीं बन पाया। जो प्रभावित हो रहे हैं, वही विरोध कर रहे हैं। मिडल क्लास को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका नजरिया सिर्फ इतना है कि माइनिंग होगी तो नौकरी मिलेगी, ancillary industries आएंगी, फायदा होगा। लेकिन असल में फायदा सिर्फ कंपनियों को है।”
विकास का मतलब: सिर्फ तीन धातुएं
वे बताते हैं कि ओडिशा में विकास का मतलब सिर्फ तीन चीजें हैं:
- कोयला (Coal) – captive power plant के लिए।
- बॉक्साइट (Bauxite) – जिससे एल्यूमिनियम बनता है।
- लोहा (Iron) – स्पॉन्ज आयरन और स्टील के लिए।
इन धातुओं के लिए massive mining चल रही है, जिसमें न पानी की चिंता है, न पर्यावरण की।
प्रदूषण का भयावह स्तर
“स्पॉन्ज आयरन प्लांट सबसे ज़्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। जिन जिलों में ये लगे हैं, वहाँ सांस लेना मुश्किल हो गया है।”
मिडल क्लास की चुप्पी
“जो लोग माइनिंग से प्रभावित हैं, उनका कोई सुनने वाला नहीं। मिडल क्लास इतना aspirational और ambitious हो गया है कि उसे गरीबों की कोई चिंता नहीं। विरोध करने वाले विकास विरोधी कहे जाते हैं।”
कॉर्पोरेट का सीधा शासन
1990 के structural reforms के बाद mining sector में private players का सीधा दखल बढ़ा। पटनायक बताते हैं:
“अब स्थिति यह है कि cabinet का कोई रोल नहीं। Chief Minister को भी पता नहीं रहता, decisions सीधे PMO से आते हैं। federal structure सिर्फ किताबों में है।”
विरोध के केंद्र
सुधीर पटनायक ने बताया कि विरोध के बड़े केंद्र कौन से हैं:
- नियामगिरी (Niyamgiri) – जहां डोंगरिया कोंध आदिवासी अब भी वेदांता के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं।
- माली पर्वत (Mali Parbat) – यहां भी बॉक्साइट माइनिंग का विरोध जारी है।
- सुंदरगढ़ और क्योंझर – जहां आयरन ओर माइनिंग के खिलाफ प्रदर्शन जारी हैं।
आंदोलनों का स्वरूप
1985 के बाल्को आंदोलन से लेकर आज तक का फर्क बताते हुए वे कहते हैं:
“पहले आंदोलन सरकार के खिलाफ होते थे, अब सीधे कंपनियों के खिलाफ। पहले सरकारें सुनती थीं, अब कंपनियां तय करती हैं और सरकारें उनके आदेश का पालन करती हैं।”
आगे क्या?
सुधीर पटनायक की चिंता साफ है:
“माइनिंग सिर्फ आदिवासियों का मुद्दा नहीं है, यह सबका मुद्दा होना चाहिए। लेकिन जब तक मिडल क्लास अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगा, तब तक सरकारें भी नहीं सुनेंगी।”