July 10, 2025 8:20 am
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वोटबंदी – बिहार तो झांकी है, आगे पूरा देश बाक़ी है

चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट रिवीजन प्रक्रिया बिहार के बाद पश्चिम बंगाल और असम में लागू होने वाली है। जानिए इस वोटबंदी के पीछे का सच और विपक्ष क्यों कह रहा है कि यह लोकतंत्र की हत्या है।

चुनाव आयोग का नया फरमान क्या लोकतंत्र पर हमला नहीं?

बिहार में जो वोटबंदी का खेल चल रहा है, वह महज एक झांकी थी, असली कहानी तो पूरे देश में फैलने वाली है।
9 जुलाई को पटना की सड़कों पर जनसैलाब उमड़ पड़ा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, RJD नेता तेजस्वी यादव और भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इस ‘वोटबंदी’ के खिलाफ जन आक्रोश रैली को संबोधित किया। विपक्ष का सीधा आरोप है – यह सिर्फ बिहार नहीं, लोकतंत्र पर हमला है।

क्या है मामला?

बिहार में चुनाव आयोग ने 25 जून से 26 जुलाई तक स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) शुरू किया है। इस प्रक्रिया में आठ करोड़ मतदाताओं की घर-घर जाकर जांच हो रही है। आयोग कह रहा है कि आधार कार्ड, वोटर ID, मनरेगा जॉब कार्ड जैसे दस्तावेज पर्याप्त नहीं हैं। अब 11 नए दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।

“आधार निराधार हो गया। कोई दस्तावेज सच्चा नहीं, अब नए 11 दस्तावेज चाहिए।”

यही नहीं, भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग अब पश्चिम बंगाल और असम में भी यही प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी में है। सूत्रों के मुताबिक बंगाल में BJP नेताओं ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि घुसपैठियों को हटाने के लिए यह ‘ज़रूरी’ है।

क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया है?

इस ‘वोटबंदी’ के जरिए विपक्ष के मुताबिक सरकार बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान के मूल अधिकार – यूनिवर्सल फ्रेंचाइज को ही छीन रही है। संविधान ने हर भारतीय नागरिक को वोट देने का समान अधिकार दिया है, चाहे वह दलित हो, मुसलमान हो, महिला हो या आदिवासी। लेकिन अब हर वोटर को नागरिकता साबित करनी होगी।

“अगर 2024 में ये वोटर प्रधानमंत्री चुन सकता है, तो 2025 में वह घुसपैठिया कैसे हो गया?”

आधार कार्ड पर उठते सवाल

आधार को सबसे सुरक्षित पहचान दस्तावेज बताया गया था। फिंगरप्रिंट, आइरिस स्कैन, बायोमेट्रिक डेटा – सब कुछ लिया गया। लेकिन अब चुनाव आयोग कह रहा है कि आधार, वोटर ID, मनरेगा कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, बैंक दस्तावेज किसी की वैलिडिटी नहीं है।

सवाल यह भी है – अगर आधार इतना बेकार था, तो सरकार ने उसे हर चीज़ से क्यों जोड़ा?
राशन, पेंशन, बैंक खाता, ट्रेन टिकट, यहां तक कि मनरेगा की दिहाड़ी मजदूरी तक के लिए आधार जरूरी कर दिया गया, फिर वोट के लिए क्यों नहीं मान्य?

विपक्ष का आरोप – यह सिर्फ बिहार नहीं

भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा, “बिहार तो झांकी है, पूरा इंडिया बाकी है।”
भास्कर की रिपोर्ट बताती है कि अगले चरण में उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हिमाचल, गोवा, मणिपुर, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी वोटर लिस्ट की यही ‘विशेष समीक्षा’ होगी। चुनाव आयोग का लक्ष्य है कि 2029 लोकसभा चुनाव से पहले यह प्रक्रिया पूरे देश में पूरी कर ली जाए।

क्या है 11 दस्तावेजों की सूची?

  • जन्म प्रमाणपत्र
  • स्कूल/यूनिवर्सिटी सर्टिफिकेट
  • जाति प्रमाणपत्र
  • जमीन या मकान के दस्तावेज
  • पेंशन ऑर्डर
  • पासपोर्ट
  • एनआरसी
  • परिवार रजिस्टर
  • राज्य निवास प्रमाणपत्र (जो आधार से वेरिफाई होगा)
  • सरकारी PSU ID
  • अन्य सरकारी अधिकृत पहचान पत्र

ग्रामीण बिहार की महिलाएं पूछ रही हैं – “हमारे पास क्या है? ना घर हमारे नाम, ना जमीन, बस वोटर ID और आधार था, अब वो भी बेकार।”

लोकतंत्र पर बड़ा हमला

चुनाव आयोग ने साफ कर दिया है कि बिहार के बाद बंगाल और असम का नंबर है। बंगाल में BJP के नेता पहले ही कह चुके हैं कि “घुसपैठिये हटाने के लिए यह जरूरी है।”

लेकिन सवाल है, अगर 11 साल से BJP की केंद्र सरकार सत्ता में है और फिर भी घुसपैठिये हैं, तो गृह मंत्री और प्रधानमंत्री जिम्मेदारी क्यों नहीं लेते?

अंतिम सवाल

क्या यह प्रक्रिया नागरिक अधिकार सुनिश्चित करने के लिए है या बहुसंख्यक वोटर लिस्ट से चुन-चुन कर अल्पसंख्यक, गरीब, आदिवासी और दलित वोटरों को हटाने की तैयारी है?

विपक्षी पार्टियां अब इसे न्यायालय में चुनौती देने की तैयारी कर रही हैं। लेकिन बिहार से जो तस्वीरें आ रही हैं, वे बताती हैं कि इस बार लड़ाई सिर्फ वोट बचाने की नहीं, संविधान बचाने की भी है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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