एक तरफ वोटबंदी, दूसरी तरफ हिंदू राष्ट्र का कार्ड
बिहार में इस समय चुनावी सियासत का पारा चरम पर है। एक ओर चुनाव आयोग की वोटबंदी योजना ने लोगों को परेशान कर रखा है, तो दूसरी ओर बीजेपी अपने ‘हिंदू राष्ट्र’ के अजेंडे को और धार देने में जुट गई है। यही वजह है कि इन दिनों बिहार की राजनीति में संविधान, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मायने पर सीधा हमला होता दिख रहा है।
पटना के गांधी मैदान में हिंदू राष्ट्र का ऐलान
हाल ही में पटना के गांधी मैदान में हुए सनातन महाकुंभ में आरएसएस और बीजेपी नेताओं की मौजूदगी में एलान किया गया कि “अगर भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा तो पहला हिंदू राज्य बिहार होगा।” मंच पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे से लेकर बीजेपी विधायक और संत महंत तक मौजूद थे। इस ऐलान ने साफ कर दिया कि बीजेपी बिहार चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण का हर पत्ता खेलने को तैयार है।
बिहार के वोटर सवाल पूछ रहे हैं – हमारा जुर्म क्या है?
एक तरफ बिहार की जनता अपने वोटर लिस्ट में नाम बचाने के लिए बाढ़, बारिश और कागजों के जंगल से जूझ रही है। लोग जन्म प्रमाण पत्र, माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र, जमीन का कागज, जाति प्रमाण पत्र लेकर BLO और अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। दूसरी तरफ बीजेपी हिंदू राष्ट्र का नारा देकर बिहार चुनाव को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के ट्रैक पर लाने की कोशिश कर रही है।
लोगों के मन में सवाल है –
“मोधी जी, हमने कौन सा जुर्म किया था कि आप हमारे वोट का हक छीनना चाहते हैं?”
विपक्ष सड़क पर उतरने को तैयार
इंडिया गठबंधन की सभी पार्टियां इस वोटबंदी के खिलाफ लामबंद हैं। सुप्रीम कोर्ट में 10 जुलाई को सुनवाई होनी है। अगर अदालत से राहत नहीं मिली तो 9 जुलाई को भारत बंद का ऐलान और उसके बाद गांव-गांव, गली-गली आंदोलन की तैयारी है। यह लड़ाई सिर्फ वोटर लिस्ट से नाम बचाने की नहीं बल्कि भारतीय लोकतंत्र और संविधान बचाने की लड़ाई बनती जा रही है।
वोटबंदी बनाम हिंदू राष्ट्रवाद
बीजेपी का यह खेल दोतरफा है –
- वोटबंदी से गरीब, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, प्रवासी मजदूरों समेत करोड़ों बिहारियों का वोटर आईडी और मतदान अधिकार छीनना।
- हिंदू राष्ट्र के नारे से बहुसंख्यक वोट बैंक को संगठित करना।
यह रणनीति दिखाती है कि “मिशन बिहार” बीजेपी के लिए कितना अहम है, जिसमें लोकतांत्रिक और संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर सत्ता हासिल करने का हर दांव आजमाया जाएगा।
नतीजा क्या होगा?
सवाल बड़ा है –
क्या बिहार में वोटबंदी के खिलाफ लोग आंदोलन का बिगुल बजाएंगे?
क्या हिंदू राष्ट्र का सपना दिखाकर जनता के असल मुद्दों को दबाया जाएगा?
एक बात तय है – बिहार का यह चुनाव सिर्फ सत्ता बदलने का नहीं बल्कि संविधान, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को बचाने की परीक्षा भी होगा।