July 10, 2025 8:11 am
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बिहार में वोटबंदी पर कोहराम, गांव-गांव में संग्राम

बिहार में विधानसभा चुनावों से ऐन पहले मतदाता सूचियों के संशोधन को लेकर उठा विवाद में हाल यह हो गया है कि खुद जमीन पर काम कर रहे अधिकारी परेशान हैं कि लोगों के पास दस्तावेज नहीं है और वहीं हर गांव में अब इस बात को लेकर कोहराम मचा है कि कैसे खुद को नागरिक साबित करें और अपना नाम वोटर लिस्ट से कटने से बचाएं।

लोगों के सामने खड़ा हो रहा वोट के साथ-साथ नागरिकता बचाने का सवाल

⚠️ क्या हो रहा है बिहार में?

बिहार में Special Intensive Revision (SIR) के नाम पर वोट बंदी का आरोप लग रहा है।
8 करोड़ मददाताओं में से करीब 2 करोड़ वोटरों के नाम सूची से हटाने की आशंका जताई जा रही है।
और यह सिर्फ बिहार का मामला नहीं है, बल्कि पूरे भारत के लोकतंत्र पर सीधा हमला है।

चुनाव आयोग का आदेश क्या है?

25 जून से शुरू हुई इस प्रक्रिया में:

  • 2003 के बाद वोटर लिस्ट में शामिल हुए लोगों को
    अपना जन्म प्रमाण पत्र देना होगा।
  • सिर्फ यही नहीं, माता और पिता के जन्म प्रमाण पत्र भी मांगे जा रहे हैं।
  • 11 दस्तावेजों की सूची जारी की गई है, जिनमें:
    • जाति प्रमाण पत्र
    • निवास प्रमाण पत्र
    • जमीन का कागज
    • मेट्रिक सर्टिफिकेट
    • पासपोर्ट
    • पेंशन सर्टिफिकेट
    • परिवार रजिस्टर आदि शामिल हैं।

👥 जनता का सवाल

बिहार के गांव-गांव में लोग पूछ रहे हैं:

“हमारे पास वोटर कार्ड, आधार कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड है –
फिर भी हम वोटर नहीं?”

  • महिलाएं पूछ रही हैं:
    “हमारे नाम पर कब जमीन थी, कब जाति सर्टिफिकेट था?
    हमारे नाम पर तो कुछ भी नहीं है, फिर वोट कैसे देंगे?”
  • मजदूर, जिनके पास आधार कार्ड, वोटर ID है,
    उनसे कहा जा रहा है:
    “ये अवैध हैं, दूसरा प्रमाण दो।”

💡 संविधान क्या कहता है?

बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था:

“हर व्यक्ति का वोट बराबर है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, लिंग का हो।”

लेकिन बिहार में चुनाव आयोग ने ही इस मूल अधिकार को चुनौती दे दी है।
लोग कह रहे हैं, यह Universal Franchise का सीधा उल्लंघन है।

🔥 राजनीतिक बवाल

🗣️ दीपांकर भट्टाचार्य (भाकपा माले महासचिव)

“यह वोट बंदी है।
2003 के बाद वोटर बने लोगों से माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र मांगना अमानवीय है।
यह नागरिकता साबित करने जैसा है, वोटर का नहीं।”

उन्होंने साफ कहा:

  • “BJP बिहार में जीत नहीं पाई, इसलिए वोटर सूची से 2 करोड़ नाम हटाने की तैयारी है।”

🗣️ तेजस्वी यादव (RJD)

“2014-2024 तक वोटर लिस्ट ठीक थी, अब अचानक क्यों गलत हो गई?
2024 में जिन्होंने वोट दिया, वे 2025 में क्यों नहीं दे सकते?”

🗣️ Congress

“चुनाव आयोग सरकार का गुलाम नहीं, संविधान का सेवक बने।
यह प्रक्रिया तुरंत रोकी जाए।
अदालत जाने का विकल्प खुला है।”

⚖️ चुनाव आयोग पर सवाल

  1. सिर्फ बिहार ही क्यों?
  2. 11 दस्तावेज क्यों मांगे?
  3. आधार, वोटर ID, मनरेगा कार्ड क्यों अमान्य?
  4. बारिश-बाढ़ के बीच लोग डॉक्यूमेंट कहां से लाएंगे?
  5. क्या चुनाव आयोग का काम वोट कराना है या नागरिकता जांचना?

🏞️ ग्राउंड रियलिटी: गांव-गांव में संघर्ष

रिपोर्ट के अनुसार:

  • Pinky Kumari (BLO) कहती हैं:

“ज्यादातर ग्रामीण अशिक्षित हैं, मैं खुद उनका फॉर्म भर रही हूं।
2003 लिस्ट के बाहर वालों के पास जरूरी कागज नहीं हैं।”

  • बिंदु देवी, जिन्हें 27 मार्च को ही नया वोटर ID मिला था, अब कह रही हैं:

“सरकार ने ही तो दिया था, अब क्यों गलत हो गया?”

  • मेघन मांझी (37 वर्षीय मजदूर):

“आधार कार्ड, वोटर ID, मनरेगा कार्ड – सब तो सरकारी हैं, फिर क्यों बेकार हैं?”

🔍 महिलाओं का संकट

महिलाएं कह रही हैं:

“हमारे नाम पर तो जमीन भी नहीं,
जाति प्रमाण पत्र भी नहीं।
क्या सरकार चाहती है, औरतें वोट ही न डालें?”

क्या है असली मकसद?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है:

  • BJP बिहार में बिना वोटर लिस्ट “सफाई” के जीत नहीं सकती।
  • यह NRC जैसी प्रक्रिया है, जिसमें गरीबों को बार-बार नागरिकता साबित करनी पड़ेगी।

🗣️ आन्दोलन की तैयारी

गांव-गांव, पंचायत-पंचायत में लोग नारे लगा रहे हैं:

“वोट हमारा अधिकार है, कोई नहीं छीन सकता।”

राजनीतिक दल चेतावनी दे रहे हैं कि:

  • “अगर प्रक्रिया वापस नहीं हुई, तो सड़कों पर संघर्ष होगा।”

💡 सवाल सिर्फ बिहार का नहीं

यह सवाल अब पूरे भारत के लोकतंत्र का है।
क्या सरकार वोटरों को चुनेगी या वोटर सरकार को?

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👉 क्या बिहार में वोट बंदी लोकतंत्र पर हमला है?
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भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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