बिहार वोटर लिस्ट केस में आदेश से क्या मिलेगी बिहारियों को राहत या जारी रहेगा वोटबंदी का संकट?
बिहार में वोट बंदी को लेकर देश भर में मचा हड़कंप फिलहाल रुका नहीं है। आज सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई, जहां चुनाव आयोग द्वारा चलाई जा रही Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठे। हालांकि अदालत ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई, लेकिन उसके आदेश ने साफ किया कि मामला उतना सीधा नहीं जितना गोधी मीडिया बता रहा है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले इस बात पर चिंता जताई कि चुनाव आयोग ने जिन 11 दस्तावेजों को जरूरी बताया है, उसमें आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड को क्यों बाहर रखा गया। अदालत ने कहा:
“आधार को बाहर करना उचित नहीं दिखता।”
यह टिप्पणी बिहार के आठ करोड़ मतदाताओं के लिए बड़ी राहत है। क्योंकि सबसे बड़ा सवाल यही था कि जिन गरीब, मजदूर, महिलाएं और ग्रामीण नागरिकों के पास सिर्फ आधार और वोटर आईडी है, वे अपनी नागरिकता कैसे साबित करेंगे?
अदालत ने दिया बड़ा निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि,
“भारत का नागरिक कौन है, यह तय करना चुनाव आयोग का काम नहीं। यह गृह मंत्रालय का कार्यक्षेत्र है। चुनाव आयोग का काम सिर्फ मतदाता सूची बनाना और चुनाव कराना है।”
लेकिन राहत अधूरी क्यों है?
- अंतरिम रोक नहीं लगी।
कोर्ट ने SIR प्रक्रिया पर फिलहाल कोई रोक नहीं लगाई। यानी 26 जुलाई तक यह प्रक्रिया जारी रहेगी और 28 जुलाई को फिर सुनवाई होगी। - 8 करोड़ बिहारियों पर तलवार लटकी।
विशेषकर वे 2 करोड़ लोग जिनका नाम 2003 के बाद मतदाता सूची में जोड़ा गया है, उनके लिए खतरा अभी टला नहीं। उन्हें अपने माता-पिता के जन्म प्रमाणपत्र समेत 11 दस्तावेज देने होंगे, जो ग्रामीण बिहार में लगभग असंभव है।
मोदी सरकार और गोदी मीडिया का नैरेटिव:
जहां बीजेपी और उसकी समर्थक मीडिया इसे विपक्ष की हार बता रहे हैं, वहीं याचिकाकर्ताओं और RJD नेता मनोज कुमार झा ने इसे लोकतंत्र की जीत कहा। मनोज झा बोले:
“यह बहुत बड़ी विजय है। इन्क्लूजन की प्रक्रिया बनी रहे, यह लोकतंत्र की मूल आत्मा है।”
ज़मीन से आ रही तस्वीरें:
- लोग पूछ रहे हैं, “बाप-दादा के प्रमाणपत्र कहां से लाएंगे?”
- महिलाएं कह रही हैं, “हमारे नाम पर कब जमीन थी, कब जाति प्रमाणपत्र बना, अब वोटर आईडी भी बेकार?”
- BLO अधिकारी खुद मान रहे हैं कि “लोगों के पास ज़रूरी कागज़ नहीं हैं। हम फार्म तो भर देंगे, लेकिन आगे क्या होगा, नहीं जानते।”
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:
- दीपांकर भट्टाचार्य (भाकपा-माले): “यह वोट बंदी है। 8 करोड़ बिहारियों को नागरिकता साबित करने पर मजबूर किया जा रहा है।”
- कांग्रेस: “आयोग संविधान की नहीं, सरकार की गुलामी कर रहा है। जरूरत पड़ी तो अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।”
अगले चरण में क्या होगा?
26 जुलाई तक SIR का पहला चरण पूरा होगा। उसके बाद 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई होगी। अगर आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी को मान्यता मिल जाती है, तो बिहार के करोड़ों मतदाताओं की चिंता दूर होगी। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो वोट बंदी के खिलाफ गली-गली, गांव-गांव में चल रहे आंदोलन और तेज हो सकते हैं।
आखिरी सवाल:
क्या चुनाव आयोग का यह आदेश लोकतंत्र के मूल अधिकार “वन वोट वन वैल्यू” को खत्म करने की साजिश है, या सचमुच चुनाव सुधार की कोशिश? फिलहाल, बिहार के गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए यह अस्तित्व का सवाल बना हुआ है।