July 16, 2025 2:23 pm
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बिहार की वोटबंदी अब क्या देश भर में लोकतंत्र को लंगड़ी मारेगी

बिहार में चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट रिवीजन प्रक्रिया को विपक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता NRC की छुपी शुरुआत बता रहे हैं। क्या यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

वोटर लिस्ट रिवीजन या छुपा NRC? चुनाव आयोग की तैयारी पर उठे सवाल

“बिहार तो झांकी है, पूरा इंडिया बाकी है।”
यह वाक्य बिहार के गांव-गांव, चौराहों और सोशल मीडिया पर गूंज रहा है। वजह है चुनाव आयोग की Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया, जिसे विपक्ष और नागरिक समाज “वोटबंदी” और NRC की चुपचाप शुरुआत बता रहे हैं।

क्या हो रहा है बिहार में?

25 जून से बिहार में आठ करोड़ मतदाताओं के वोटर लिस्ट रिवीजन का अभियान शुरू हुआ है। चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार:

  • जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं था, उन्हें जनम प्रमाण पत्र, माता-पिता का जन्म प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र समेत 11 दस्तावेज़ जमा करने होंगे।
  • आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड – जिन्हें पहले पहचान का प्रमुख प्रमाण माना जाता था – अब मान्य नहीं हैं।
  • BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) या स्वयंसेवक घर-घर जाकर यह तय कर रहे हैं कि कौन वोटर है और कौन नहीं।

क्या यह सिर्फ बिहार तक सीमित है?

नहीं। 5 जुलाई 2025 को चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के Chief Election Officers को पत्र भेजकर कहा कि पूरे देश में Special Intensive Revision शुरू करने की तैयारी करें। यानी बिहार एक टेस्ट केस है। असम, बंगाल, तमिलनाडु समेत सभी राज्यों में यह प्रक्रिया जल्द लागू होने जा रही है।

NRC की वापसी?

2019 में NRC (National Register of Citizens) और CAA (Citizenship Amendment Act) के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन हुए थे। सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े थे। लेकिन अब SIR के जरिए NRC को पिछले दरवाजे से लागू करने का आरोप विपक्ष लगा रहा है।
वरिष्ठ वकील और सांसद कपिल सिब्बल ने साफ कहा:

“यह प्रक्रिया छुपा NRC है, जिसमें हर नागरिक को अपनी नागरिकता, वोट का अधिकार साबित करना होगा। लोकतंत्र में सरकार नागरिकों को चुनती है, नागरिक सरकार को नहीं चुनते। यह संविधान का अपमान है।”

सुप्रीम कोर्ट भी सवालों में उलझा

10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा:

“11 में से तीन डॉक्यूमेंट तो हमारे पास भी नहीं हैं। आधार, राशन कार्ड जैसे प्रमाण क्यों अमान्य हैं?”

लेकिन चुनाव आयोग ने अब तक इन दस्तावेजों को मान्य करने की कोई घोषणा नहीं की है। जमीन पर काम कर रहे BLO भी उलझन में हैं। हिंदू अखबार की पत्रकार विजेता सिंह ने लिखा:

“BLO बंगला बोलने वालों को बांग्लादेशी समझ रहे हैं। यह संवैधानिक प्रक्रिया नहीं, सीधा सांप्रदायिक और क्षेत्रीय भेदभाव है।”

फॉर्म सड़कों पर पड़े, लोगों की पहचान कूड़े में

पटना के कृष्णा घाट फ्लाईओवर से लेकर गांधी मैदान तक हजारों फॉर्म सड़कों पर फेंके मिले। लोगों ने अपने पहचान पत्र BLO को दिए लेकिन न कोई रसीद मिली, न कोई acknowledgment। अगर आपका फॉर्म गुम हो गया, तो आप यह भी साबित नहीं कर सकते कि आपने फॉर्म भरा था।
यह सिर्फ सिस्टम की विफलता नहीं, लोकतांत्रिक अधिकारों का अपमान है।

बिहारियों पर क्यों निशाना?

  • 2003 के बाद के वोटर:
    करोड़ों बिहारियों का नाम पहली बार 2003 के बाद वोटर लिस्ट में जुड़ा।
  • कामगारों, प्रवासियों पर असर:
    वे लोग जो बाहर कमाने जाते हैं, उनके पास माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र या जमीन के कागज़ नहीं होते।
  • महिलाओं पर संकट:
    बिहार के गांवों में अधिकांश महिलाओं के नाम पर जमीन या घर नहीं है। वे कैसे प्रमाण देंगी?

क्या यह लोकतंत्र की हत्या है?

यह प्रक्रिया एक व्यक्ति एक वोट के संवैधानिक अधिकार पर हमला है।
जहां आधार और वोटर आईडी तक अमान्य कर दिए जाएं, वहां गरीबों, दलितों, मुसलमानों, महिलाओं का वोट डालना लगभग असंभव कर देना – NRC और CAA का नया अवतार ही माना जा रहा है।

क्या बाकी राज्यों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है?

चुनाव आयोग का निर्देश साफ है – “बिहार के बाद पूरे देश में SIR लागू करो।”
यानी अब दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल – कोई भी सुरक्षित नहीं है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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