कांवड़ यात्रा के नाम पर यह कैसी आस्था जो भय पैदा करती है
सावन का महीना आते ही उत्तराखंड, हरिद्वार से लेकर दिल्ली और यूपी के शहरों में कावड़ यात्रा शुरू हो जाती है। इस यात्रा का मूल अर्थ था – भगवान शिव को जल अर्पित करना। किंतु आज यह यात्रा आस्था से अधिक उपद्रव, हिंसा और नफरत फैलाने का जरिया बन गई है।
हर साल भय का माहौल क्यों?
हर साल सावन में सड़कें जाम, दुकानें बंद, स्कूल कॉलेजों की छुट्टी, पुलिस प्रशासन का सरेंडर, और जनता का खौफ – यही तस्वीर बन चुकी है। सोचने की बात है कि जिस भोलेनाथ ने विष पीकर अमृत बचाया, उसके नाम पर यह नफरत का विष क्यों उगला जा रहा है?
धर्म और राजनीति का गठजोड़
पिछले 10-12 वर्षों में, खासकर 2014 के बाद, कावड़ यात्रा का पॉलिटिसाइजेशन और मस्क्युलर प्रदर्शन बढ़ा है। डीजे ट्रक, भगवा झंडे, हथियार जैसे त्रिशूल, और सड़कों पर हुड़दंग – ये सब दिखाते हैं कि हिन्दुत्व राजनीति ने इस यात्रा को अपने एजेंडे का हिस्सा बना लिया है।
आस्था के नाम पर फूल बरसाने वाली सरकारें और पुलिस, वही सरकारें गरीबों की बस्तियां उजाड़ने में देर नहीं लगातीं। दिल्ली में रेखा गुप्ता सरकार का कावड़ समितियों को लाखों का अनुदान और दूसरी ओर जनता पर बुलडोजर – यह विरोधाभास सोचने पर मजबूर करता है।
हिंसा का नया टूल
कावड़ यात्रा का यह रूप दलित, पिछड़े, बेरोजगार नौजवानों को हिंसा की ट्रेनिंग देने वाला बन गया है। जिन नौजवानों को नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य चाहिए, उन्हें धार्मिक हुड़दंग की आदत डलवाई जा रही है। सोचिए, क्या यही उनका भविष्य है? क्या यही हिन्दू धर्म का आदर्श है?
शिव का कौन सा स्वरूप?
यह कैसी भक्ति है जिसमें प्याज तक से आस्था खंडित हो जाती है, और मुस्लिम ढाबे वालों पर हमले किए जाते हैं? यह कैसी भक्ति है जिसमें कार तोड़ना, राहगीरों को पीटना और पुलिस तक को चुनौती देना शामिल है?
तीर्थ बनाम शक्ति प्रदर्शन
देवघर, झारखंड के रास्ते पर इतनी हिंसा क्यों नहीं होती? वहां भी तो जल चढ़ाने जाते हैं, लेकिन यहां पश्चिमी यूपी, हरियाणा, दिल्ली रूट पर क्यों उपद्रव चरम पर रहता है? इसका जवाब साफ है – हिन्दुत्व का शक्ति प्रदर्शन। डीजे, ट्रॉली, और धमाल – सब इस पॉलिटिक्स का हिस्सा हैं।
आस्था या राजनीति का हथकंडा?
इन नौजवानों में से कितने बीजेपी नेताओं के बेटे हैं? कितने सांसदों, मंत्रियों, आरएसएस प्रमुखों के बेटे इस हुड़दंग में शामिल हैं? जवाब है – शायद कोई नहीं। यह राजनीति सिर्फ गरीब, दलित, पिछड़े नौजवानों को मोहरा बनाती है ताकि सत्ता की गद्दी सुरक्षित रहे।
निष्कर्ष
कांवड़ यात्रा का आस्था से हिंसा की ओर झुकाव देश के संविधान, शांति, भाईचारे और खुद हिन्दू धर्म की आत्मा के खिलाफ है। अगर इसे रोका नहीं गया, तो यह समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए बड़ा खतरा साबित होगा।