जम्मू-कश्मीर में दुनिया के सबसे ऊंचे रेल पुल का लोकार्पण, लेकिन क्या यह PR का ‘पॉलिटिकल’ मंच था!
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अब नए विशेषण गढ़े जा रहे हैं — फोटो जीवी, फीता वीर, और अब नरेंदर सरेंडर भी। 6 जून 2025 को जम्मू-कश्मीर में ‘दुनिया के सबसे ऊंचे रेल पुल’ का उदघाटन हुआ, लेकिन पुल से बड़ी चर्चा उस ‘फोटो फ्रेम’ की हुई जिसमें सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री ही मौजूद थे।
PR बनाम पब्लिक स्पिरिट: अकेली तस्वीरों में कौन गायब था?
जिस समारोह में देश के हर वर्ग, स्थानीय नेताओं और प्रभावित नागरिकों की उपस्थिति स्वाभाविक मानी जाती, वहाँ मोदी जी अकेले नजर आए। ना जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, ना स्थानीय मंत्री, ना जनता — बस मोदी जी, फीता और कैमरे।
क्या यह जनता के लिए बना पुल था या प्रधानमंत्री के लिए बना PR ब्रिज?
भास्कर की तस्वीर और जनता का सवाल
दैनिक भास्कर ने इस एकल तस्वीर को अपने मास्टहेड पर छापा। यह चित्र एक राजनीतिक व्यंग्य बन गया — पीएम मोदी अकेले खड़े हैं, झंडा लहरा रहे हैं, जैसे कि वो युद्ध जीतकर लौटे हों। लेकिन जनता पूछ रही है:
- पुंछ के शहीदों से मिलने का समय नहीं मिला?
- पहलगाम हमले में मारे गए सुरक्षाकर्मियों के परिवारों से कोई एकजुटता नहीं?
- कश्मीर में अब भी डर का माहौल है, लेकिन PM सिर्फ फीता काटने पहुंचे?
पहलगाम हमला और प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति
22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ था जिसमें सुरक्षाबलों की मौत हुई थी। PM मोदी 45 दिनों तक कश्मीर नहीं पहुंचे। श्रीनगर तक जाना मुमकिन था, लेकिन वे सीधे पुल के उद्घाटन तक सीमित रहे।
क्या प्रधानमंत्री का कश्मीर दौरा सिर्फ कैमरों के लिए था?
क्रोनोलॉजी समझिए: किसका योगदान, किसका श्रेय?
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत और सांसद जयराम रमेश ने इस उद्घाटन की क्रोनोलॉजी भी सामने रखी:
- 1997: इस रेलवे परियोजना की पहली बार कल्पना की गई थी।
- 2002: अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इसका ब्लूप्रिंट पास किया।
- 2004–2014: मनमोहन सिंह सरकार के समय इसका निर्माण तेज़ हुआ।
- 2015 के बाद: काम कई बार रुका और फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ा।
लेकिन उद्घाटन का क्रेडिट सिर्फ एक शख्स ले रहे हैं — नरेंद्र मोदी।
राजनीतिक एकांतता या मनोवैज्ञानिक इंफिरियोरिटी कॉम्प्लेक्स?
मोदी जी की आदत रही है कि फोटो फ्रेम में कोई और चेहरा ना हो। ऐसे कई मौके याद हैं जब रेड कारपेट पर कोई गलती से भी साथ चलता दिखा, तो उसे हाथ से पीछे किया गया।
यह एक ‘PR राजनीति’ की मिसाल है, जहां सार्वजनिक योजनाएं भी निजी प्रचार का माध्यम बन जाती हैं।
निष्कर्ष: पुल की नींव सामूहिक थी, लेकिन फीता कट गया अकेले में
जहां एक ओर पुल बनाने में अनेक सरकारों और नागरिकों की मेहनत लगी, वहीं उसका श्रेय सिर्फ एक व्यक्ति को दिया गया। यही है आज की राजनीति की तस्वीर: फोटो में सिर्फ नेता, पर पृष्ठभूमि में पूरा देश।