RSS के भागवत की dictionary में भारतीय शब्द क्यों नहीं
यह सवाल अब बार-बार सामने आ रहा है — क्या मोहन भागवत के शब्दकोश में “भारतीय” शब्द है ही नहीं? यह सवाल तब और ज़्यादा गंभीर हो जाता है जब संघ प्रमुख अपने हर भाषण में सिर्फ़ “हिंदू”, “हिंदू संस्कृति”, “हिंदू राष्ट्र” की बात करते हैं, लेकिन “भारत”, “भारतीय”, या “नागरिक” जैसे सर्वसमावेशी शब्द नदारद रहते हैं।
हाल ही में संघ के मुखपत्र “Organiser” को दिए गए साक्षात्कार में मोहन भागवत ने फिर से दोहराया —
“The nature and the sanskriti of this culture are Hindu, therefore this is Hindu Rashtra.”
TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने इस पर दो टूक जवाब दिया:
“Sorry Mr. Bhagwat, the nature and the culture of this nation is proudly Indian — in its myriad religions, peoples and traditions. This will never be a Hindu Rashtra.”
क्या मोहन भागवत संविधान विरोधी वक्तव्य दे रहे हैं?
जब भागवत कहते हैं कि भारत को धर्म आधारित राज्य बनना चाहिए, तो यह सीधा-सीधा संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ़ जाता है। क्योंकि संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने साफ चेतावनी दी थी:
“If India ever becomes a Hindu Rashtra, it will be the biggest disaster.”
भागवत कहते हैं कि दुनिया को “एक धर्म आधारित प्रणाली” चाहिए। वे धर्म को पंथ नहीं, बल्कि “सत्य, करुणा, तपस्या” मानते हैं — पर सवाल यह है कि वह कौन-सी शासन प्रणाली है जो धर्म आधारित होकर विविधता में विश्वास रखेगी?
सेना के नाम पर संघ की ‘हिंदू’ सोच
RSS प्रमुख ने इंटरव्यू में कहा कि “सीमा पर शत्रुओं से निपटने के लिए हिंदुओं को मज़बूत होना होगा।”
सवाल है — भारत की सेना क्या केवल हिंदुओं की है? क्या उसमें सेवा दे रही कर्नल सोफिया कुरैशी या व्योमिका सिंह को उनका “हिंदू न होना” सैनिक योगदान से कमतर बना देता है?
यह बयान भारतीय सेना की धर्मनिरपेक्ष परंपरा का अपमान है। क्या यह इशारा है कि एक “हिंदू बटालियन” बनाई जाए?
भागवत का बयान और हिंसा की ज़मीन पर RSS की वास्तविकता
अलीगढ़ में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल जैसे RSS से जुड़े संगठनों ने वसूली के नाम पर आम नागरिकों पर कहर ढाया। F.I.R में यह दर्ज है।
तो क्या भागवत का “हिंदू मज़बूती” वाला विचार यही है — कि “मज़बूती” का मतलब है हिंसा?
अंतरराष्ट्रीय मंच पर ‘चुप्पी’ क्यों?
इसी दौरान बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने बहरीन में बयान दिया — “भारत में न तो बहुसंख्यकवाद है, न ही अल्पसंख्यकवाद।”
वहीं, भारत में वे मुसलमानों के खिलाफ लगातार ज़हर उगलते रहे हैं।
तो क्या हिंदू राष्ट्र की बात सिर्फ़ भारत में ‘भक्तों’ के लिए होती है, विदेशों में वोट बैंक के लिए चुप्पी साध ली जाती है?
‘इंडिया’ शब्द का RSS विरोध
भागवत ने अपने साक्षात्कार में कहीं भी “India” या “Indian” का इस्तेमाल नहीं किया। क्या यह जानबूझकर किया गया है?
संघ का विज़न “हिंदू राष्ट्र” है — “अखंड भारत” से लेकर “एक संस्कृति, एक भाषा, एक धर्म” के सपने तक। लेकिन यह सपना भारतीय संविधान की आत्मा के बिल्कुल उलट है।
निष्कर्ष: ये लड़ाई शब्दों की नहीं, सोच की है
इस पूरे इंटरव्यू और प्रतिक्रिया श्रृंखला से एक बात बिल्कुल साफ है —
RSS “भारत” को नहीं, “हिंदू राष्ट्र” को प्राथमिकता देता है।
पर यह देश संविधान से चलता है, संघ से नहीं।
और यही वजह है कि बार-बार लोगों को, संसद को, मीडिया को यह सवाल उठाना पड़ेगा कि —
“क्या 140 करोड़ भारतीय नागरिकों में केवल हिंदू ही हैं? क्या संविधान की गारंटी हर धर्म, जाति, विचार को बराबरी से स्थान नहीं देती?”