जाति गणना पर तो राहुल के दबाव में झुकी लेकिन delimitation और आरक्षण का क्या होगा गणित
16 जून को मोदी सरकार जातिगत जनगणना (Caste Census) को लेकर आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी करने जा रही है। लेकिन यह घोषणा जितनी बड़ी है, उससे भी बड़ा है वह सवाल जो इस घोषणा की पृष्ठभूमि में खड़ा है: क्या यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम है, या एक गहरा राजनीतिक गेम प्लान?
राहुल गांधी का दावा और दबाव
राहुल गांधी देश के एकमात्र ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने जातिगत जनगणना को अपना केंद्र बिंदु बनाया। उन्होंने लगातार कहा कि “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” सिर्फ नारा नहीं, नीति होनी चाहिए।
उन्होंने साफ शब्दों में यह भी कहा था कि वह मोदी सरकार को झुकाकर रहेंगे — और अब ऐसा होता दिख रहा है।
लेकिन इसमें सवाल यह भी है: जनगणना 2021 में क्यों नहीं हुई? और अब जाकर 2027 से क्यों शुरू होगी?
6 साल की देरी का कारण: राजनीतिक रणनीति?
कोविड को वजह बताया गया, लेकिन सवाल वाजिब है — जब चुनाव, रैलियां, धार्मिक उत्सव, सब कुछ हो रहा था, तब जनगणना क्यों रुकी?
हिंदुस्तान टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित अखबारों ने भी संपादकीय में सरकार से यही पूछा है।
और अब जब 2027 से जनगणना होगी, तो क्या यह सिर्फ डेटा इकट्ठा करने की कवायद है, या इसके साथ delimitation यानी सीटों के पुनर्गठन की स्क्रिप्ट भी चल रही है?
दक्षिण बनाम उत्तर का समीकरण
M.K. स्टालिन, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री, ने साफ चेतावनी दी है कि जनगणना के नाम पर अगर दक्षिण भारत की लोकसभा सीटों में कटौती की गई तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।
नई संसद की इमारत में सांसदों की संख्या दोगुनी की गई है, जो सीधे संकेत देता है कि बीजेपी और RSS का गढ़—उत्तर भारत—जहाँ आबादी अधिक है, वहां से अधिक सीटें मिलेंगी और दक्षिण के राज्यों का प्रभाव घटेगा।
यह राजनीतिक प्रतिनिधित्व में असंतुलन लाने की कोशिश नहीं तो और क्या है?
राहुल गांधी की चेतावनी: ये सिर्फ डेटा नहीं है
राहुल गांधी लगातार कह रहे हैं कि यह सिर्फ संख्या की बात नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय की लड़ाई का आधार है। अगर हमें पता नहीं होगा कि किस जाति की कितनी आबादी है, तो हम यह भी तय नहीं कर सकते कि संसाधनों और अवसरों में कितनी भागीदारी होनी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा है कि 50% आरक्षण की जो सीमा है, उसे भी जातिगत जनगणना के आधार पर री-थिंक किया जाना चाहिए।
कांग्रेस बनाम बीजेपी: दो धारणाएं
- कांग्रेस इसे एक लोकतांत्रिक और सामाजिक न्याय का उपकरण मानती है।
- बीजेपी, विशेषकर मोदी सरकार, इसे एक राजनीतिक समायोजन और सत्ता बनाए रखने का तरीका बना रही है — विशेष रूप से 2029 लोकसभा चुनाव से पहले।
राहुल गांधी के दबाव में सरकार को झुकना पड़ा — यह विपक्ष की जीत है। लेकिन इसमें छिपा delimitation और आरक्षण के गणित का खेल सतर्क नजरों से देखा जाना ज़रूरी है।