June 15, 2025 11:03 am
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प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ़्तारी: क्या यह सच बोलने की सज़ा है?

यह वही व्यक्ति हैं जिनकी शैक्षणिक योग्यता और प्रतिष्ठा को लेकर देश के प्रख्यात इतिहासकार प्रो. इरफ़ान हबीब समेत 1200 से अधिक शिक्षाविदों ने हस्ताक्षर कर अपील की है कि अली खान को निशाने पर लेना, उन्हें गिरफ़्तार करना दरअसल एक साजिश है — एक मुसलमान को सच बोलने की सज़ा देने की, और यह बीजेपी के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है।

महमूदाबाद, जिनकी उम्र 42 वर्ष है, उन्हें आखिर क्यों गिरफ़्तार किया गया? और इस गिरफ़्तारी के पीछे भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का क्या गेम प्लान है? यह सवाल इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इस गिरफ़्तारी की प्रक्रिया को सबने देखा — किस तरह अशोका यूनिवर्सिटी, जो एक प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय है, जहां हज़ारों-लाखों रुपये की फीस लेकर छात्र-छात्राओं को पढ़ाया जाता है, वह यूनिवर्सिटी अपने ही पॉलिटिकल साइंस विभाग के प्रमुख को सुरक्षा नहीं देती।

यह वही व्यक्ति हैं जिनकी शैक्षणिक योग्यता और प्रतिष्ठा को लेकर देश के प्रख्यात इतिहासकार प्रो. इरफ़ान हबीब समेत 1200 से अधिक शिक्षाविदों ने हस्ताक्षर कर अपील की है कि अली खान को निशाने पर लेना, उन्हें गिरफ़्तार करना दरअसल एक साजिश है — एक मुसलमान को सच बोलने की सज़ा देने की, और यह बीजेपी के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है।

वायरल पोस्ट और ‘जय हिंद’

गिरफ़्तारी से पहले प्रो. अली खान ने 8 मई को एक सोशल मीडिया पोस्ट लिखी थी। इस पोस्ट की अंतिम पंक्ति थी — “जय हिंद”। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस गिरफ़्तारी के विरोध में एक विस्तृत पोस्ट लिखी और उसमें अली खान की वही पोस्ट भी संलग्न की, ताकि लोगों को तथ्यों के साथ यह स्पष्ट हो सके कि इस व्यक्ति ने आखिर लिखा क्या था, और उसके लिए उसे क्यों गिरफ़्तार किया गया।

दोहरा मापदंड: सेना का अपमान और कार्रवाई

असल मुद्दा कुछ और है। बीजेपी और उसके तमाम नेता सार्वजनिक मंचों से सेना के बारे में विवादास्पद टिप्पणियाँ करते हैं। उदाहरण के लिए, मध्यप्रदेश के एक मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ कहा कि वह “पाकिस्तान के आतंकवादियों की बहन” हैं। इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने में भी हाईकोर्ट के निर्देश की ज़रूरत पड़ी, जिसमें जबलपुर हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि मंत्री ने सेना और संविधान का अपमान किया है।

हालांकि, एफआईआर में भी धाराएँ हल्की लगाई गईं। आज तक उस मंत्री के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

वहीं दूसरी ओर, एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की एक सामान्य पोस्ट पर इतनी तेज़ और संगठित कार्रवाई?

अगर आप बीजेपी के हैं, तो सब माफ़?

मध्यप्रदेश के डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा ने भी खुले मंच पर कहा कि “सेना मोदी जी की चरण वंदना कर रही है”, लेकिन उनके खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

बीजेपी नेताओं के लिए सब कुछ ‘allowed’ है, लेकिन एक मुसलमान प्रोफेसर की एक तटस्थ और देश के पक्ष में कही गई बात पर तुरंत गिरफ्तारी हो जाती है।

एफआईआर की साजिश: हरियाणा महिला आयोग की भूमिका

इस मामले में एफआईआर हरियाणा महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया की शिकायत पर दर्ज की गई, साथ ही योगेश जठेड़ी की शिकायत पर — जो बीजेपी युवा मोर्चा के जनरल सेक्रेटरी हैं।

यहीं नहीं, हरियाणा के सोनीपत की महिला पुलिस अधिकारी नाज़नीन बसीन को इसलिए ट्रांसफर कर दिया गया क्योंकि उन्होंने बिना ‘राजनीतिक इशारों’ के काम करने की कोशिश की। रेनू भाटिया ने खुद स्वीकार किया कि ट्रांसफर उनकी नाराज़गी के कारण हुआ।

ऑपरेशन सिंदूर और अंतरराष्ट्रीय छवि

गिरफ़्तारी के समय ही प्रधानमंत्री मोदी ऑपरेशन सिंदूर के नाम पर दुनिया भर में अपनी सरकार की विदेश नीति का प्रचार करने के लिए संसद प्रतिनिधिमंडल भेज रहे थे।

ऐसे समय में जब एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रोफेसर को निशाना बनाया जा रहा है, यह पूरी तरह से विरोधाभासी लगता है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने अली खान के लिए एक प्री-अररस्ट प्ली दायर की है।

सोशल मीडिया पोस्ट: देशद्रोह या देशभक्ति?

जिस पोस्ट को लेकर यह सारा विवाद है, उसमें पाकिस्तान के खिलाफ भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का समर्थन किया गया है। उसमें लिखा गया था कि:

“The optics of the two women soldiers presenting their findings is important, but optics must translate to reality on the ground. Otherwise, it’s just hypocrisy.”

बीजेपी ने इस वाक्य को ‘देशद्रोह’ करार दिया, जबकि देशभर के प्रोफेसर, शिक्षक संघ, जेएनयू शिक्षक संघ और विपक्षी दल इस पोस्ट को भारत के पक्ष में बता रहे हैं।

देश का माहौल और अभिव्यक्ति की आज़ादी

इंडियन एक्सप्रेस के संपादकीय में साफ़ लिखा गया है कि:

“Ali Khan Mahmoodabad की गिरफ्तारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक ‘चिलिंग इफेक्ट’ है।”

प्रो. इरफ़ान हबीब ने साफ़ कहा कि उस पोस्ट में ना महिला विरोधी, ना देश विरोधी एक भी शब्द नहीं था।

पवन खेड़ा, महुआ मोइत्रा, ओवैसी, टीएमसी और कई विपक्षी नेता एकमत हैं कि यह एक सांप्रदायिक और राजनैतिक हमला है।

निष्कर्ष

जब एक प्रसिद्ध, शांत और विवेकशील प्रोफेसर को इस तरह से साज़िशन फँसाया जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि यह सिर्फ किसी एक व्यक्ति को चुप कराने की कोशिश नहीं, बल्कि पूरे समाज को डराने और दबाने की रणनीति है।

और यह केस, इस समय भारत में सच बोलने की कीमत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक दमन का एक जीवंत उदाहरण बन चुका है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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