5000 स्कूल बंद करने की तैयारी में योगी सरकार, सबसे ज़्यादा असर दलित और लड़कियों पर
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अब गरीबों के घर के बाद, उनके स्कूलों पर भी बुलडोज़र चला रही है। गोरखपुर से इसकी शुरुआत हो चुकी है। जहां शिक्षक संगठनों और छात्रों ने ‘Save Village Schools’ नाम से आंदोलन छेड़ दिया है।
क्या है मामला?
राज्य सरकार का प्लान है कि जिन प्राथमिक विद्यालयों (Primary Schools) में 20 या उससे कम बच्चे हैं, ऐसे लगभग 5000 स्कूलों को बंद या मर्ज (merge) किया जाए। सभी जिलों को इस संबंध में निर्देश जारी हो चुके हैं। इसका सीधा असर गाँवों के हज़ारों छात्रों और शिक्षकों पर पड़ने वाला है।
सरकार का दावा बनाम ज़मीनी हकीकत
सरकार का दावा है कि इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराई जा सकेंगी। लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि:
- उत्तर प्रदेश में 2 लाख से ज़्यादा शिक्षक पद खाली हैं।
- सरकारी स्कूलों में पानी, बिजली, शौचालय तक की सुविधाएं अधूरी हैं।
- अधिकतर स्कूलों में अलग से बालिकाओं के लिए टॉयलेट नहीं हैं।
विशेषज्ञों की चेतावनी
शिक्षा विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि:
- स्कूल बंद होने से ड्रॉप-आउट रेट बढ़ेगा।
- बाल श्रम और बाल विवाह जैसी समस्याएं भी बढ़ेंगी।
- यह शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून का उल्लंघन है।
RTE कानून क्या कहता है?
- कक्षा 1 से 5 तक का स्कूल बच्चे के घर से 1 किलोमीटर के दायरे में होना चाहिए।
- कक्षा 6 से 8 तक का स्कूल अधिकतम 3 किलोमीटर दूर हो सकता है।
- लेकिन विलय के बाद, बच्चे 2 से 5 किलोमीटर तक दूर स्कूल जाने को मजबूर होंगे — जबकि ग्रामीण इलाकों में परिवहन की कोई सुविधा नहीं है।
सबसे अधिक प्रभावित होंगे दलित, आदिवासी और लड़कियां
बंद होने वाले ज़्यादातर स्कूल ऐसे इलाकों में हैं जहां गरीब, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं। इनमें भी लड़कियों पर सबसे अधिक असर पड़ेगा क्योंकि:
- ग्रामीण परिवार अक्सर लड़कों को प्राइवेट स्कूल भेजते हैं, लेकिन लड़कियों को सरकारी।
- अगर स्कूल दूर हुआ, तो सुरक्षा, सामाजिक बंदिशें और आर्थिक कारणों से लड़कियों की पढ़ाई छूटने की आशंका बढ़ेगी।
सियासत गरमाई
समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस फैसले को “गरीबों की शिक्षा पर सीधा हमला” करार दिया है। उनका कहना है कि सरकार को पहले शिक्षकों की भर्ती करनी चाहिए, ना कि स्कूल बंद।
क्या सिर्फ प्राथमिक स्कूल ही निशाने पर हैं?
नहीं। सूत्रों के अनुसार, सरकार प्राथमिक के साथ-साथ उच्च प्राथमिक (कक्षा 6-8) स्कूलों को भी विलय के दायरे में ला सकती है। यानि, इससे शिक्षा की पूरी सरकारी बुनियाद हिल सकती है।
निष्कर्ष
सरकारी स्कूलों का यह संभावित विलय गरीबों, दलितों, लड़कियों और विकलांग बच्चों के भविष्य पर सीधा प्रहार है। जहां सरकार स्मार्ट सिटी और हेरिटेज कॉरिडोर पर अरबों खर्च कर रही है, वहीं शिक्षा की नींव को तोड़ना न सिर्फ असंवेदनशील है, बल्कि संविधान के शिक्षा-सम्मत सपनों का मज़ाक भी है।
बेबाक भाषा की यह रिपोर्ट आपसे यही सवाल करती है —
क्या एक लोकतंत्र सिर्फ अमीरों के स्कूल बचाएगा? या गांव के बच्चों का भी उतना ही हक़ है शिक्षा पर?