गरम सिंदूर से लेकर मैसूर पाक तक, ट्रोल होने लगी बीजेपी ब्रिगेड
सच बताइए — क्या कभी आप इतने हँसे कि आंसू निकल आए? तो जान लीजिए, आप भारत में ही रह रहे हैं, जहां आजकल सटायर सर्प्लस है। हाँ, बिल्कुल, मोदी जी के रामराज में “व्यंग्य” अब सिर्फ अभिव्यक्ति का ज़रिया नहीं, बल्कि राष्ट्रीय धरोहर बनने के रास्ते पर है।
अगर मोदी सरकार के राज में कुछ सच में फल-फूल रहा है, तो वह है — व्यंग्य का फुल बकेट!
ब्लड से सिंदूर तक: 2014 से 2025 की “विकास” यात्रा
2014 में जब मोदी जी ने कहा था कि उनके खून में “बिज़नेस” है, तब किसी ने नहीं सोचा था कि 2025 आते-आते उनके ब्लड में गरम सिंदूर दौड़ने लगेगा।
“यह कोई मामूली ट्रांसफ्यूजन नहीं है। यह ‘राष्ट्रवाद का रक्त संचार’ है!”
अब हर मंत्रालय की नसों में कुछ खास दौड़ रहा है:
- विदेश मंत्री जयशंकर – नसों में लेज़र
- गडकरी – नसों में टोल टैक्स
- निर्मला जी – नसों में टैक्स
- रेल मंत्री – नसों में रील्स
और इस सिंदूरी सत्ता की नस-नस में फैला है व्यंग्य का ग्लूकोज ड्रिप।
पाककला का अपमान और मिठाइयों का ‘श्री श्रीकरण’
अब देखिए न, देश में “पाक” शब्द सुनते ही भक्तों को पाकिस्तान याद आने लगता है। तो पाककला भी डस्टबिन में। मायसूर पाक अब बन गया है “श्री श्री श्री मिठाई”, और आमपाक हो गया “गुना”।
आपके कहने पर जयपुर के हलवाइयों ने मिठाई से पाक हटा दिया, भक्तों ने व्हाट्सएप से पाक की परछाईं तक मिटा दी। अब “चीनी” भी खतरे में है, क्योंकि उसमें “चीन” है। चीनी बायकॉट कर के चीन को निपटाया जा रहा है — वही “घरेलू स्ट्राइक” जिसकी मोदी ब्रिगेड माहिर है।
बधाइयों में भी चयन नीति
बानु मुश्ताक को बधाई क्यों नहीं दी?
अरे भाई, गीतांजलि श्री को भी 2022 में नहीं दी थी। रवीश कुमार को रमन मैगसेसे मिला तब भी बधाई नदारद। क्योंकि बधाई भी अब भक्त सर्टिफाइड हो गई है। पीएम की बधाई अब सिर्फ उन्हीं को मिलती है जो ‘लाइन में हैं’।
बीजेपी की “फूलगोभीगाथा” और Extra Judicial Creativity
अब ज़रा कर्नाटक बीजेपी के पोस्टर को देखिए। 200 माओवादी मारे गए — और देश के गृहमंत्री अमित शाह हाथ में “फूलगोभी” लिए टॉम्बस्टोन के पास खड़े!
क्या सन्देश है!
“लाल सलाम कॉमरेड” — और जवाब में फूलगोभी!
भक्तों को शायद नहीं पता कि भागलपुर 1989 में मुसलमानों की लाशों को दफनाकर उनके ऊपर फूलगोभी की खेती की गई थी। आज वही प्रतीक Extra Judicial Pride का पोस्टर बन गया है।
पोस्टरबाज़ी में संवेदना नहीं, पोलराइज़ेशन है
22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के दिन, जब पूरे देश में मातम पसरा था, बीजेपी छत्तीसगढ़ ने पोस्टर में लिखा— “उन्होंने जात नहीं, धर्म पूछा।”
माने? पीड़ा की जगह प्रोपेगैंडा। इंसानियत की जगह ध्रुवीकरण।
भक्त आईक्यू और मनुस्मृति कॉन्फ्यूजन
अब अंत में… रामभद्राचार्य जी ने अम्बेडकर पर बयान दे मारा — “मनुस्मृति ही असली संविधान है, अम्बेडकर को हिंदी नहीं आती थी इसलिए जलाया।”
वाह!
मोदी जी, अब तो वियंग्य का “मैटर” भी सस्प्लाई से बाहर नहीं हो सकता। आप राज करें या रील बनाएं, हम व्यंग्य जरूर बनाएंगे।
निष्कर्ष: भक्तों से एक निवेदन
“अब जब खून चढ़वाने जाएं तो यह सुनिश्चित कर लें कि खून ही चढ़े… कहीं सिंदूर न चढ़ जाए!”
मोदी जी, आप राज करें, लेकिन व्यंग्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है — और जैसे आपके राज में हर चीज़ का पेटेंट हो रहा है, वैसा ही एक पेटेंट व्यंग्य के लिए भी बनाइए। Made in India, Made for India.