June 30, 2025 7:26 pm
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RSS + भाजपा को क्यों है secular + socialist से इतनी दिक्कत

दरअसल संघ के डीएनए में ‘हिंदू राष्ट्र’ और ‘मनुस्मृति’ का एजेंडा शामिल है, जिसमें दलितों, वंचितों और महिलाओं के लिए बराबरी की कोई जगह नहीं है। यही वजह है कि संघ हमेशा संविधान को अपनी राह में बाधा मानता रहा है

संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने की मांग – RSS की मंशा क्या है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने हाल ही में बयान दिया है कि संविधान की प्रस्तावना (Preamble) से ‘धर्मनिरपेक्ष’ (Secularism) और ‘समाजवादी’ (Socialism) शब्दों को हटाया जाना चाहिए। उनका यह बयान न केवल भाजपा की विचारधारा के अनुरूप है, बल्कि हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को आगे बढ़ाने का स्पष्ट संकेत भी देता है।

RSS का संविधान से पुराना विरोध

1949 में जब संविधान लागू हुआ, तबसे ही संघ और जनसंघ (भाजपा का पूर्व रूप) इसे भारतीय परंपरा के अनुकूल नहीं मानते आए हैं। उनका तर्क था कि संविधान विदेशी विचारधाराओं से प्रभावित है। दरअसल संघ के डीएनए में ‘हिंदू राष्ट्र’ और ‘मनुस्मृति’ का एजेंडा शामिल है, जिसमें दलितों, वंचितों और महिलाओं के लिए बराबरी की कोई जगह नहीं है। यही वजह है कि संघ हमेशा संविधान को अपनी राह में बाधा मानता रहा है।

धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद से परेशानी क्यों?

भले ही आज इन शब्दों का वास्तविक अर्थ और क्रियान्वयन कमजोर दिखता हो, लेकिन इनका अस्तित्व ही भाजपा-संघ की राजनीति के लिए चुनौती है।
सेक्युलरिज्म (धर्मनिरपेक्षता) – अल्पसंख्यकों के अधिकारों की गारंटी।
सोशलिज्म (समाजवाद) – अमीर-गरीब की खाई पाटने का वादा।

इसीलिए ये शब्द उनके हिंदुत्ववादी और कार्पोरेटपरस्त मॉडल में ‘अरचन’ बन जाते हैं।
आज अमीर-गरीब की खाई और बढ़ रही है। अदानी जैसे कार्पोरेट समूह का वर्चस्व बढ़ा है। मजदूर अधिकार, हड़तालें, न्यूनतम वेतन – सब कमजोर पड़ चुके हैं। बावजूद इसके, इन शब्दों का हटाया जाना इस बात का प्रतीक होगा कि भारत का संविधान अब जन कल्याण की जगह बहुसंख्यकवादी एजेंडे को महत्व देगा।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

कांग्रेस – संघ के इस बयान को उनके ‘संविधान विरोधी’ डीएनए का हिस्सा बताया।
राजद – लालू यादव ने कहा, RSS और भाजपा को लोकतंत्र और संविधान से नफरत है।
विपक्ष का सवाल – संविधान का मौलिक ढांचा छेड़ने की कोशिशें क्या 2025 के RSS शताब्दी वर्ष के लिए ज़मीन तैयार कर रही हैं?

इतिहास की क्रोनोलॉजी

  1. 42वां संविधान संशोधन (1976) – इंदिरा गांधी सरकार के समय ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द जोड़े गए।
  2. 2015 – सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने गणतंत्र दिवस विज्ञापन में ये शब्द हटाए।
  3. 2023 – नई संसद के उद्घाटन पर बांटी गई संविधान प्रतियों में भी ये शब्द नहीं थे।
  4. 2024 – सुप्रीम कोर्ट ने 42वें संशोधन की वैधता बरकरार रखी।
  5. 2025 – RSS के 100 साल पूरे होंगे। हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को खुलेआम लागू करने का सपना?

Water Testing और चुनावी राजनीति

बार-बार ये मुद्दे उठाकर भाजपा और संघ जांचते हैं कि कितनी प्रतिक्रिया होती है। जैसे बायक्स पर टोल टैक्स वापस लिया जाता है, वैसे ही अगर भारी विरोध हुआ तो बयान वापस। अगर विरोध कमजोर पड़ा तो कानून बदलना आसान हो जाएगा। यह रणनीति समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की वैचारिक जमीन भी तैयार करती है।

RSS का असली एजेंडा

यह लड़ाई लोकतंत्र बनाम बहुसंख्यकवाद की है। संविधान डलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों को बराबरी का हक देता है। हिंदू राष्ट्र के मॉडल में मनुस्मृति के मुताबिक वर्ग व्यवस्था प्रमुख होगी जिसमें बराबरी का कोई स्थान नहीं। यही वजह है कि संघ बार-बार इस तरह के बयान देता है ताकि देख सके – क्या सही समय आ गया है?

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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