आरक्षण पर दांव चल राहुल गांधी क्या काट पाएंगे ऑपरेशन सिंदूर पर BJP का ध्रुवीकरण
बिहार की धरती, जिसे आंदोलनों की जननी कहा जाता है, एक बार फिर सियासी मंथन का केंद्र बन चुकी है। इस बार केंद्र में हैं—राहुल गांधी। दरभंगा में उनके हालिया दौरे और आंदोलनकारी तेवर ने बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है।
दरभंगा में राहुल गांधी की हुंकार
राहुल गांधी ने जब दरभंगा में एसटी-एसटी छात्रावास का दौरा किया, तो वो किसी आम राजनेता की तरह नहीं बल्कि एक आंदोलनकारी के रूप में दिखाई दिए। उन्होंने कहा, “बिहार पुलिस ने मुझे रोकने की कोशिश की, लेकिन आपकी शक्ति मेरे पीछे है, इसलिए कोई ताकत मुझे रोक नहीं सकती।” यह बयान न केवल उनका आत्मविश्वास दिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि बिहार में वे खुद को एक जननेता की तरह पेश कर रहे हैं।
जातिगत जनगणना और आरक्षण: कांग्रेस का नया एजेंडा
राहुल गांधी ने मंच से साफ़ किया कि उनकी पार्टी अब सामाजिक न्याय को चुनावी एजेंडे का केंद्र बनाने जा रही है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का नाम लेकर दावा किया कि जन दबाव में उन्होंने जातिगत जनगणना की घोषणा करनी पड़ी। लेकिन राहुल गांधी यहां नहीं रुके—उन्होंने तीन प्रमुख मांगों की घोषणा की:
- जातिगत जनगणना की निष्पक्ष और पूर्ण रिपोर्ट।
- निजी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में आरक्षण की व्यवस्था।
- SC-ST सब-प्लान को कानूनी जामा पहनाकर उसका क्रियान्वयन।
इन घोषणाओं के जरिए कांग्रेस ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह अब आरक्षण को केवल नारेबाज़ी तक सीमित नहीं रहने देगी, बल्कि ज़मीन पर उसका क्रियान्वयन भी सुनिश्चित कराना चाहती है।
बाबा साहेब की तस्वीर और जय भीम के नारे
राहुल गांधी बाबा साहब अंबेडकर की तस्वीर लिए मंच पर पहुंचे और ‘जय भीम’ के नारों के साथ लोगों को संबोधित किया। यह प्रतीकात्मकता नहीं बल्कि एक रणनीति थी—बिहार की सामाजिक न्याय की राजनीति को पुनर्जीवित करने की कोशिश।
विपक्ष में नई ऊर्जा?
राहुल गांधी के साथ मंच पर तेजस्वी यादव और भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य जैसे नेता भी थे। दीपांकर ने राहुल को दरभंगा में छात्रों से मिलने से रोकने की कोशिशों की कड़ी निंदा की और इसे तानाशाही करार दिया। इससे यह संकेत मिला कि ‘इंडिया गठबंधन’ अब पहले से अधिक सशक्त और समन्वित नजर आ रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर बनाम आरक्षण
भाजपा जहाँ महिला मतदाताओं को साधने के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे सांस्कृतिक प्रतीकों का उपयोग कर रही है, वहीं कांग्रेस सामाजिक न्याय, शिक्षा में आरक्षण और संविधान-सम्मत समानता के मुद्दों को केंद्र में ला रही है। यह दो विपरीत ध्रुव हैं—एक ओर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, दूसरी ओर सामाजिक समावेश।
क्या यह दांव असर करेगा?
राहुल गांधी का यह आक्रामक तेवर और सामाजिक न्याय पर केंद्रित एजेंडा निश्चित रूप से चर्चा का विषय बना है। लेकिन यह तभी कारगर होगा जब कांग्रेस इस एजेंडे को ज़मीन पर संगठित और निरंतर रूप से आगे बढ़ाए। बिहार की जनता आंदोलन की ताकत जानती है—अब देखना यह है कि वह इस आंदोलनकारी राहुल को कितनी मंज़ूरी देती है।
निष्कर्ष:
बिहार में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। अगर कांग्रेस जातिगत जनगणना और आरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर गंभीरता से ज़मीनी स्तर पर काम करती है, तो राहुल गांधी का यह दांव वाकई गेम चेंजर साबित हो सकता है।