June 14, 2025 8:21 pm
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विश्व गुरु मोदी के इस मिशन से कितना घिरा पाक

करोड़ों रुपए खर्च कर , 32 देशों में गए 59 लोगों के दल को क्यों नहीं मिली कोई Success. जहां बीजेपी की डिप्लोमेसी को “अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता” की छाया में दिखाने की कोशिश हो रही है, वहीं हकीकत यह है कि इन डेलिगेशनों को ज्यादातर देशों में केवल अंडर-सेक्रेटरी या दूतावास स्टाफ से ही मुलाकात मिली। NRI मीटिंग और भारतीय दूतावास में स्वागत ही ज़्यादातर "आउटरीच" का केंद्र रहे।

विदेश में भारत का ‘ऑपरेशन सिंदूर’: मोदी सरकार की ग्लोबल आउटरीच और उसका असली हासिल

ग्लोबल आउटरीच का ढोल और कोलंबिया की ताली

भारत सरकार ने हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को “सही संदर्भ” में प्रस्तुत करने के लिए 59 सांसदों का एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल 32 देशों में भेजा। करोड़ों रुपये खर्च कर किया गया यह प्रयास आखिरकार एक “सफलता” के रूप में पेश किया जा रहा है—कोलंबिया ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत की कार्रवाई पर अपनी पहले जताई संवेदना को “अनुचित” बताया।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इसे गर्व से अपने खाते में गिना, मानो खुद प्रधानमंत्री मोदी के दूत बनकर लौटे हों।

59 सांसद, 32 देश, 7 ग्रुप—ग्लोबल बिखराव

यह पहला मौका था जब मोदी सरकार ने संसद से चुनकर, खुद पसंदीदा सांसदों को (बहुतों को विपक्ष से उधार लेकर) दुनिया में भेजा। उद्देश्य था—भारत का पक्ष रखना और यह समझाना कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ आतंकवाद विरोधी था, न कि कोई भारत-पाक सैन्य तनाव।

डेलिगेशन का ग्रुप बंटवारा:

  1. बैजयंत जय पांडा (बीजेपी)
  2. रविशंकर प्रसाद (बीजेपी)
  3. श्रीकांत शिंदे (शिवसेना—शिंदे गुट)
  4. कनीमोई (DMK)
  5. शशि थरूर (कांग्रेस, लेकिन भूमिका विवादास्पद)
  6. सुप्रिया सुले (NCP—शरद पवार गुट)
  7. अन्य छोटे समूह

डिप्लोमेसी में विरोधाभास और अवसर

जहां बीजेपी की डिप्लोमेसी को “अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता” की छाया में दिखाने की कोशिश हो रही है, वहीं हकीकत यह है कि इन डेलिगेशनों को ज्यादातर देशों में केवल अंडर-सेक्रेटरी या दूतावास स्टाफ से ही मुलाकात मिली। NRI मीटिंग और भारतीय दूतावास में स्वागत ही ज़्यादातर “आउटरीच” का केंद्र रहे।

उल्लेखनीय दृश्य:

  • शशि थरूर का कोलंबिया से “सफलता” लाना और विपक्ष को छोड़ सरकार की भाषा बोलना
  • निशिकांत दुबे (बीजेपी सांसद) का कुवैत में जाकर फिलिस्तीन के लिए सहानुभूति और “हम सेकुलर हैं” जैसा बयान देना
  • सलमान खुर्शीद (कांग्रेस सांसद) का 370 पर मोदी सरकार का समर्थन करते हुए व्याख्यान देना
  • कनीमोई और सुप्रिया सुले की यात्राएं जो “कल्चरल इवेंट” जैसी दिखी

ट्रंप और पुतिन: मोदी का ग्लोबल नैरेटिव छीनते हुए

भारत के दो सबसे बड़े रणनीतिक साझेदार—अमेरिका और रूस—ने इस दौरान जो किया, वह मोदी सरकार की रणनीति को साफ झटका देने वाला है:

  • डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले 20 दिनों में 11 बार यह दावा किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़फायर उन्होंने करवाया, यह कहकर मोदी का क्रेडिट छीन लिया।
  • रूस, जिसे भारत हमेशा विश्वसनीय दोस्त मानता रहा, ने पाकिस्तान से 2.5 बिलियन डॉलर का डिफेंस डील साइन किया।
  • अमेरिका ने तुर्की (जो पाकिस्तान को हथियार देता रहा है) से 300 मिलियन डॉलर की मिसाइल डील कर ली।

इन घटनाओं के बाद, भारत का वैश्विक कूटनीतिक दबदबा गिरता हुआ दिखाई दिया।

देश के भीतर मिली “राजनीतिक सफलता”

मोदी सरकार को विदेश में भले ही ज्यादा सफलता न मिली हो, लेकिन देश के भीतर राजनीतिक हथियार ज़रूर मिला—कांग्रेस में फूट

  • शशि थरूर का व्यवहार खुद कांग्रेस के लिए चिंता का कारण बन गया।
  • ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भाजपा का नैरेटिव मज़बूत हुआ, और विपक्ष असमंजस में।

क्या यह विश्वगुरु बनने की राह है?

भारत की जनता के करोड़ों रुपये खर्च करके जो ग्लोबल मिशन चलाया गया, उसका वास्तविक फायदा फिलहाल बस इतना है:

  • एक कोलंबिया का बयान
  • कुछ मीडिया हेडलाइंस
  • और विपक्षी नेताओं की टूटती एकता

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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