विश्वगुरु की विश्व कूटनीति फ्लॉप, कैसे चक्रव्यूह में घिरते जा रहे हैं मोदी?
“सरेंडर… सरेंडर… सरेंडर…”—ये सिर्फ एक राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि आज के समय की सबसे तीखी टिप्पणी है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति और राजनीतिक रणनीति पर। कश्मीर की यात्रा के बीच प्रधानमंत्री के चारों ओर जो अंतरराष्ट्रीय और घरेलू घटनाएं घिरती जा रही हैं, वे “काल चक्र” की तरह सामने आ रही हैं।
ट्रंप-पुतिन का ‘सरेंडर’ अलर्ट
डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच जो सीज़फायर हुआ, वह उनके निजी हस्तक्षेप से हुआ। यह बयान तब और विस्फोटक हो गया जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया। पुतिन के एक शीर्ष सलाहकार ने कहा कि ट्रंप और पुतिन के बीच बातचीत में यह स्पष्ट हुआ कि ट्रंप की मध्यस्थता से ही भारत-पाक संघर्ष थमा।
ऐसे में सवाल उठता है—क्या मोदी सरकार ने अमेरिका के दबाव में आकर ऑपरेशन सिंदूर का पटाक्षेप किया?
विजय माल्या का “बॉम्ब” और अरुण जेटली पर खुलासे
बात यहीं नहीं रुकी। अब भगोड़ा कारोबारी विजय माल्या भी मैदान में आ गया है। पॉडकास्ट के ज़रिए उसने दावा किया कि 2015 में भागने से पहले उसने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को सूचित किया था। वह तो बैंकों से “सेटलमेंट” की गुहार भी लगा रहा था।
माल्या की चुप्पी नौ साल बाद टूटी और मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर गई। अगर वह सरकार की जानकारी में देश से भागा था, तो फिर उसकी संपत्तियाँ ज़ब्त करने और ‘भगोड़ा’ घोषित करने की प्रक्रिया क्या सिर्फ दिखावा थी?
भारत की ‘अकेली’ विदेश नीति?
पुतिन और ट्रंप के बीच 75 मिनट की बातचीत में भारत की कूटनीति को दरकिनार कर दिया गया। रूस, जिसे भारत हमेशा से अपना ‘ऑल वेदर फ्रेंड’ मानता रहा है, अब अमेरिका के सुर में सुर मिलाता नज़र आ रहा है।
यह उस सरकार के लिए बड़ा झटका है, जिसने पिछले 11 सालों में 90 से अधिक देशों की यात्राएँ कीं और हर मंच पर ‘विश्वगुरु भारत’ का डंका बजाया।
सोशल मीडिया पर भक्तों का सेलिब्रेशन, लेकिन…
देश के भीतर हालात भी दिलचस्प हैं। ट्रंप और एलन मस्क के बीच चल रही भिड़ंत पर भारतीय भक्त मंडली गदगद है। वे इसे ट्रंप की “सजा” के रूप में देख रहे हैं। एक्स प्लेटफॉर्म (पूर्व ट्विटर) पर Mr. Sinha जैसे यूज़र्स मोदी को “एकला चलो” के प्रतीक बताते हुए ट्रंप के धोखे का हिसाब चुकता मान रहे हैं।
राहुल गांधी का ‘नरेंदर सरेंडर’ और ओवैसी का अप्रत्याशित समर्थन
कश्मीर से लेकर दिल्ली तक ‘नरेंदर सरेंडर’ का नारा गूंज रहा है। खास बात यह रही कि AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी राहुल गांधी के बयान पर चुप्पी नहीं साधी। इंटरनेशनल डिप्लोमेसी पर मोदी सरकार की चुप्पी और घरेलू मुद्दों पर गुमराही अब विपक्ष को ही नहीं, जनता को भी अखर रही है।
निष्कर्ष: जब सत्ता थकने लगे, तो आलोचना एक अवसर होती है
विदेश नीति में अकेले पड़ना, पुराने मित्रों की उपेक्षा और भगोड़े कारोबारियों की आवाज़ें—ये सब दर्शाते हैं कि मोदी सरकार अब रक्षा की मुद्रा में है। शायद यही समय है आत्ममंथन का। क्योंकि ‘नरेंदर सरेंडर’ सिर्फ एक स्लोगन नहीं, बल्कि सत्ता के समक्ष खड़ा होता हुआ एक सवाल है।