जून की मिठास, सेहत और सुंदरता से भरी दावत
हर साल जून आते ही कश्मीर की वादियों में एक अलग ही रंग बिखर जाता है—चेरी का लाल रंग। इन दिनों गान्दरबल, शोपियां और श्रीनगर के बागानों में चेरी के पेड़ इतने लदे होते हैं कि डालियां झुक जाती हैं। ऐसा लगता है जैसे कुदरत ने खुद अपनी सबसे खूबसूरत मिठास इन वादियों को सौंप दी हो।
गान्दरबल की ‘गुटली बाकी’ चेरी – स्वाद में अव्वल, सेहत में बेमिसाल
गान्दरबल की एक खास किस्म की चेरी — ‘गुटली बाकी’ — इन दिनों सोशल मीडिया पर छाई हुई है। इसकी पहचान होती है इसकी मखमली बनावट, गहरा लाल रंग और कम गुठली। इसको देखकर न सिर्फ आंखें सुकून पाती हैं बल्कि दिल भी मचल उठता है चखने के लिए।
चेरी सिर्फ स्वाद की बात नहीं है, यह एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन सी, आयरन और पोटैशियम से भरपूर होती है। यह शरीर को ठंडक देती है, पाचन में मदद करती है और त्वचा के लिए भी फायदेमंद मानी जाती है।
कश्मीर में चेरी की विविधता
कश्मीर में चेरी की कई किस्में पाई जाती हैं:
- मखमली
- सिया (गहरे रंग वाली)
- यलाची (हल्की गुलाबी और लाल के बीच का रंग)
- डबल (दोहरी परत वाली)
इन सभी किस्मों की अपनी अलग लोकप्रियता है और स्थानीय बाज़ार से लेकर अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक इनकी ज़बरदस्त मांग है।
आंकड़ों में कश्मीर की चेरी
- 15 लाख मीट्रिक टन चेरी हर साल कश्मीर में पैदा होती है।
- जम्मू-कश्मीर में 2317 हेक्टेयर क्षेत्र में चेरी की खेती होती है।
- गांदरबल, शोपियां और श्रीनगर प्रमुख उत्पादन क्षेत्र हैं।
चेरी की खेती न केवल किसानों की आय का बड़ा स्रोत है बल्कि कश्मीर की स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी इसका अहम योगदान है।
चेरी सीजन: मिड मई से जून एंड तक
चेरी का यह शानदार मौसम मई के मध्य से शुरू होकर जून के अंत तक चलता है। इस दौरान कश्मीर की घाटियों में चेरी उत्सव जैसा माहौल होता है। बागानों में रंग-बिरंगे फलों से भरे पेड़, उनसे गिरती हल्की बूँदें, और खेतों में काम करते लोग — यह सब कुछ मिलकर एक बेहद खूबसूरत और स्वादिष्ट अनुभव बनाते हैं।
🍒 तो क्या आप तैयार हैं?
कश्मीर की चेरी आपको बुला रही है — न सिर्फ स्वाद के लिए, बल्कि ताजगी, सेहत और सुकून के लिए भी। आइए, कश्मीर के चेरी बागानों में घूमें, मीठे फलों का लुत्फ उठाएं और कुछ पल इस स्वर्ग जैसी वादी में खुद को खो दें।