बिहार पर क्यों है बीजेपी की नज़र? चुनावी रणभूमि में ऑपरेशन सिंदूर और जाति जनगणना का खेल
तीन करोड़ प्रवासी बिहारी और 142 सीटों का मिशन
बिहार पर भाजपा की बेताबी नई नहीं है, लेकिन 2025 के इस चुनाव में उसकी बेचैनी खास है। नरेंद्र मोदी खुद चुनावी प्रचार के लिए तीन बार बिहार आ चुके हैं — और वो भी तब, जब देश में कश्मीर के पहलगांव में आतंकी हमला हुआ था।
22 अप्रैल को हमला हुआ, 24 अप्रैल को वे सऊदी अरब से लौटे, और कश्मीर जाने की बजाय सीधे बिहार की धरती पर पहुंच गए।
यानी चुनाव, उनके लिए राष्ट्र सुरक्षा से भी बड़ी प्राथमिकता है।
भाजपा का ऑपरेशन प्रवासी बिहारी: डाटा, जाति और वोट
भाजपा की एक बेहद सुनियोजित योजना सामने आई है जिसमें:
- 150 नेता
- 14 प्रश्नों वाला सर्वे फॉर्म
- 2.75 करोड़ प्रवासी बिहारी लक्ष्य
इनसे न केवल जाति, पेशा और निवास स्थान की जानकारी ली जाएगी, बल्कि उनसे सीधे पूछा जाएगा — क्या आप भाजपा का समर्थन करते हैं?
यानी यह सिर्फ सर्वे नहीं, एक डेटा आधारित वोट रणनीति है।
नीतीश कुमार: मुख्यमंत्री हैं, पर प्रभावहीन
20 वर्षों में 9 बार मुख्यमंत्री बनने वाले नीतीश कुमार अब भाजपा के ‘पार्टनर’ हैं, लेकिन सत्ता की चाबी दिल्ली के हाथ में है। भाजपा बिहार को पूरी तरह अपने कब्ज़े में लेना चाहती है।
नीतीश कुमार का राजनीतिक अस्थिर रवैया (पलटीबाज़ी) और हालिया व्यवहार (माथे पर घड़ा रखना आदि) भाजपा के लिए एक मौका बन गया है।
जातीय जनगणना और ऑपरेशन सिंदूर: दोहरी रणनीति
भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने साफ कहा कि भाजपा बिहार में दो बड़े नैरेटिव चला रही है:
- जातीय जनगणना की घोषणा — ताकि समाज को जातियों में बांट कर वोट साधे जा सकें।
- ऑपरेशन सिंदूर — एक सांप्रदायिक अभियान जो महिलाओं के नाम पर नफरत की राजनीति को भुनाता है।
मोदी की रैलियों की पोल खुली?
पटना का रोड शो हो या विक्रमगंज की सभा — मोदी की सभाओं में अपेक्षित भीड़ नहीं जुटी। मीडिया रिपोर्ट्स बता रही हैं कि भाजपा की पकड़ कमजोर है।
शहाबाद जैसे इलाकों में पार्टी की ज़मीन खिसक रही है, और बिहार के मतदाता नीतीश-मोदी गठजोड़ को अब भरोसेमंद नहीं मानते।
महागठबंधन की चुनौती: तेजस्वी यादव और वामदलों का समन्वय
बिहार में तेजस्वी यादव और भाकपा (माले) एक मज़बूत गठबंधन के साथ मैदान में हैं। राहुल गांधी की सभाएं भी बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित कर रही हैं।
राहुल गांधी ने साफ किया:
- हर गरीब महिला को ₹2500 महीना मिलेगा
- शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार पर खास योजना
- Adani-Ambani को मिलने वाली छूट खत्म होगी
भाजपा के लिए बिहार क्यों निर्णायक है?
यदि भाजपा बिहार जीतती है, तो:
- झारखंड और पश्चिम बंगाल में उसके लिए रास्ता साफ होगा
- उत्तर भारत में उसकी पूर्ण वर्चस्व की स्थिति बन जाएगी
यही है ‘बड़ी लड़ाई’, जिसमें भाजपा ‘डाटा’, ‘धर्म’ और ‘जाति’ के कार्ड खेल रही है।
निष्कर्ष: बिहार की ज़मीन पर चुनावी युद्ध शुरू हो चुका है
बिहार का चुनाव सिर्फ सीटों का नहीं, सत्ता और नैरेटिव की लड़ाई है। भाजपा अपने डाटा और धर्म के तीर चला रही है, लेकिन महागठबंधन की ज़मीन पर पकड़ और जनता की बेचैनी इस बार क्लाइमेक्स में बड़ा मोड़ ला सकती है।